एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में भ्रष्टाचार खत्म करने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ देश के एक प्रमुख बैंक में 11400 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है। लोग अभी ठीक से समझ भी नहीं पाए थे कि हीरों का व्यवसाय करने वाले नीरव मोदी ने इतनी बड़ी रकम के घोटाले को अंजाम कैसे दिया कि रोटोमैक पेन कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी के भी 5 सरकारी बैंकों के लगभग 500 करोड़ का लोन लेकर फरार होने की खबरें आने लगीं हैं।
हो सकता है कि आने वाले दिनों में ऐसे कुछ और मामले सामने आएं, क्योंकि कुछ समय पहले तक बैंकों में केवल खाते होते थे, जिनमें पारदर्शिता की कोई गुंजाइश नहीं थी और ई बैंकिंग तथा कोर बैंकिंग न होने से जानकारियां भी बाहर नहीं आ पाती थीं, लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैंकों के लिए मौद्रिक नीतियों का निर्धारण करने वाला बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट ने बैंकों में पारदर्शिता के लिए कुछ नियम बनाए हैं, जिनके कारण बैंकों के सामने अपने खातों में पारदर्शिता लाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के भी इस साल जनवरी में सूचना देने के अपने फार्मेट में बदलाव करने से इस घोटाले का मार्च तक सामने आना वैसे भी लगभग निश्चित ही था। ऐसा नहीं है कि देश के किसी बैंक में कोई घोटाला पहली बार हुआ हो। नोटबंदी के दौरान बैंकों में जो हुआ वो किसी से छिपा नहीं है, आम आदमी बाहर लाइनों में खड़ा रहा और अंदर से लेने वाले नोट बदलकर ले गए। इसी प्रकार किसी आम आदमी या फिर किसी छोटे-मोटे कर्जदार के कर्ज न चुका पाने की स्थिति में बैंक उसकी संपत्ति तक जब्त करके अपनी रकम वसूल लेते हैं लेकिन बड़े-बड़े पूंजीपति घरानों के बैंक से कर्ज लेने और उसे नहीं चुकाने के बावजूद उन्हें नए कर्ज पर कर्ज दे दिए जाते हैं।
नीरव मोदी के मामले में पीएनबी जो कि कोई छोटा-मोटा नहीं देश का दूसरे नंबर का बैंक है, ने भी कुछ ऐसा ही किया। नहीं तो क्या कारण है कि 2011 से नीरव मोदी को पीएनबी से बिना किसी गारंटी के गैरकानूनी तरीके से बिना बैंक के सॉफ्टवेयर में एंट्री करे लेटर ऑफ अंटरटेकिंग (एलओयू) जारी होते गए और इन 7 सालों से जनवरी 2016 तक यह बात पीएनबी के किसी भी अधिकारी या आरबीआई की जानकारी में नहीं आई? हर साल बैंकों में होने वाले ऑडिट और उसके बाद जारी होने वाली ऑडिट रिपोर्ट इस फर्जीवाड़े को क्यों नहीं पकड़ पाई? क्यों इतने बड़े बैंक के किसी भी छोटे या बड़े अधिकारी ने इस बात पर गौर नहीं किया कि हर साल बैंक से एलओयू के जरिए इतनी बड़ी रकम जा तो रही है, लेकिन आ नहीं रही है?
यहां यह जानना रोचक होगा कि बात एक या दो एलओयू की नहीं बल्कि 150 एलओयू जारी होने की है। इससे भी अधिक रोचक तथ्य यह है कि एक एलओयू 90-180 दिनों में एक्सपायर हो जाता है और अगर कोई कर्ज दो साल से अधिक समय में नहीं चुकाया जाता तो बैंक के ऑडिटर्स को उसकी जानकारी दे दी जाती है तो फिर नीरव मोदी के इस केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ? इतना ही नहीं एक बैंक का चीफ विजिलेंस अधिकारी बैंक की रिपोर्ट बैंक के मैनेजर को नहीं बल्कि भारत के चीफ विजिलेंस कमीशन को देता है, लेकिन इस मामले में किसी भी विजिलेंस अधिकारी को 7 सालों तक पीएनबी में कोई गड़बड़ दिखाई क्यों नहीं दी? इसके अलावा हर बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की टीम में एक आरबीआई का अधिकारी भी शामिल होता है, लेकिन उन्हें भी इतने साल इस घोटाले की भनक नहीं लगी?
लेकिन आश्चर्य है कि जनवरी 2018 में यह घोटाला सामने आने से कुछ ही दिन पहले नीरव मोदी को इस खेल के खत्म हो जाने की भनक लग गई, जिससे वो और उसके परिवार के लोग एक-एक करके देश से बाहर चले गए? लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि नीरव मोदी को नीरव मोदी बनाने वाला कौन है? क्या कोई किसान या फिर आम आदमी नीरव मोदी बन सकता है? जवाब तो हम सभी जानते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे देश के बैंकों में कर्ज देने का सिस्टम न हो, लेकिन कुछ मुट्ठीभर ताकतों के आगे पूरा सिस्टम ही फेल हो जाता है।
जिस प्रकार पीएनबी के तत्कालीन डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी सिंगल विंडो ऑपरेटर मनोज खरात को गिरफ्तार किया है और यह जानकारी सामने आई है कि पीएनबी के कुछ और अफसरों की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया, यह स्पष्ट है कि सारे नियम और कानून सब धरे के धरे रह जाते हैं और करने वाले हाथ साफ करके निकल जाते हैं, क्योंकि आज तक कितने घोटाले हुए, कितनी जांचें हुईं, अदालतों में कितने मुकदमे दायर हुए, कितनों के फैसले आए? कितने पकड़े गए? कितनों को सजा हुई? आज जो नाम नीरव मोदी है कल वो विजय माल्या था। दरअसल आज देश में सिस्टम केवल बैंकों का ही नहीं न्याय व्यवस्था समेत हर विभाग का फेल है, इसलिए सिस्टम पस्त लेकिन अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।