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आत्ममुग्धता : तेजी से बढ़ता एक सामाजिक रोग

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गरिमा संजय दुबे

डॉ. गरिमा संजय दुबे
 
ग्रीक पुराणों के अनुसार एक राजा का नाम है, नार्सीसस जिसे अपने आप से प्रेम हो जाता है इतना प्रेम कि उसे अपने आगे सब बौने और भद्दे लगते है । आत्ममुग्धता के इस चरम को मनोविज्ञान में एक बीमारी की तरह माना गया और मनोविज्ञान के अपने शोध के लिए विश्वविख्यात सिग्मंड फ्रायड महोदय ने "ऑन नार्सिसिज़्म" शीर्षक से एक निबंध भी लिखा था। बाद में इसे मनोविज्ञान के पाठ्य क्रम का एक हिस्सा बनाया गया और आज एक महत्वपूर्ण धारणा के तौर पर यह शोध का विषय है ।
 
भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को विनम्र रहना सिखाया जाता है। अपनी तारीफ़ होने पर संकोच करने की सीख दी जाती है किन्तु आजकल इन गुणों को स्मार्ट होना नहीं माना जाता। विशेषकर अमरीकी संस्कृति में किसी के तारीफ़ करने पर या आई एम् डूइंग वेल, या आई डिज़र्व इट ,कहने का तरीका प्रचलन में है जबकि भारत में किसी उपलब्धि पर विनम्र होना सिखाया जाता है। किंतु आधुनिकीकरण की इस दौड़ में स्मार्ट बनने या केवल दिखने की चाह में अपने आप पर गर्व करना सिखाया जाने लगा है। गर्व सकारात्मक है किंतु निरीक्षण के अभाव में आज इस आत्ममुग्धता की बीमारी के रोगी बड़ी संख्या में बढ़ रहें हैं। इसे मनोविज्ञान की भाषा में NPD याने नार्सीसस पर्सनेलिटी डिसऑर्डर कहा जाता है।
 
क्या है NPD?
 
नार्सीस्टिक पर्सनेलिटी डिसऑर्डर (narcissistic personality disorder) मनोवैज्ञानिक बीमारी है किन्तु अक्सर इससे ग्रसित व्यक्ति और उसके आस पास के लोग भी इसे सिर्फ अहंकार या आजकल की भाषा में कहें तो एटिट्यूड समझ कर उस व्यक्ति से दूरी बना लेते हैं। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के मन में अपने खुद के प्रति इतना अधिक आत्ममुग्धता का भाव रहता है कि उसे दुनिया में हर तरफ बुराई ही बुराई नज़र आती है। इस तरह के व्यक्ति को अपने से अधिक खूबसूरत, अपने से अधिक बुद्धिमान, श्रेष्ठ और ज्ञानी कोई और नज़र नहीं आता। हर व्यक्ति वस्तु और विचार की बुराई करना और उसे नकारना इनकी प्रवृत्ति होती है। डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसे लोग किसी के दोस्त नहीं हो सकते न ही परिवार में इनका सम्मान होता है, क्योंकि मै ही सर्वश्रेष्ठ हूं का भाव अत्यधिक प्रबल होने की वजह से ये सभी को अपना गुलाम समझते हैं और इनका पारिवारिक और सामाजिक जीवन बिखरा हुआ रहता है।
 
अंतर है सेल्फ रिस्पेक्ट, सेल्फ एस्टीम और NPD में
 
यह कहा जाता है कि आत्मविश्वास, स्वाभिमान और गर्व अच्छी भावनाएं है। किंतु आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास, स्वाभिमान और अभिमान, गर्व और घमंड में एक पतली सी सीमा रेखा होती है जिसे अक्सर लोग पहचान नहीं पाते। आत्मविश्वासी स्वाभिमानी और गर्व के भाव से भरा व्यक्ति अपनी क्षमताओं से परिचित होता है, वह निडर और साहसी होता है किंतू साथ ही साथ वह यह भी जानता है कि वह अंतिम व्यक्ति नहीं है जो सुन्दर, ज्ञानी, धनी और श्रेष्ठ है। वह ज्ञान के उस अनंत अथाह सागर की असिमितता से परिचित हो हर समय नया सीखने को तत्पर रहता है और बहुत कुछ हासिल कर लेने के बाद भी उसकी विनम्रता और सहजता कम नहीं होती बल्कि बढ़ती ही है। आज की भाषा में कहे तो वह बहुत डाउन टू अर्थ होता है। अपने साथ दूसरों के आगे बढ़ने की राह खोलता हुआ,किसी अन्य की उपलब्धि पर जलन से न भरने वाला, और अपनी उपलब्धि को विनम्रता से लेने वाला ही असल में आत्म विश्वासी और स्वाभिमानी होता है। दुनिया भर के तमाम सफल लोगों में यह सारी खूबियां आपको मिल जाएगी।
 
वहीँ NPD का शिकार व्यक्ति अपनी क्षमताओं को बढ़ा चढ़ा कर बताने, ईर्ष्या, द्वेष, बनावट का सहारा ले अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश में हास्यास्पद हो जाता है। एक सर्वे के मुताबिक़ तमाम तरह के अपराध के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण पाए जाते हैं जिनमें से NPD भी एक कारण है। अपनी आत्मुग्धता को दूसरों की नज़र में सम्मान न मिलते देख इस तरह के व्यक्ति अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं और धीरे-धीरे इनमें आपराधिक प्रवत्तियां जन्म लेने लगती है। 
 
इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति सबसे अलग यूनिक और एक्सक्लूसिव दिखने की चाह से भी ग्रस्त रहता है। और इस चाहत में हर एक्सक्लूसिव चीज़ उसे अपनी तरफ खिंचती है और वह अपनी जेब पर ध्यान दिए बिना ही अनाप-शनाप खर्च कर अपने शौक पूरे करता है क्योंकि उसे हर कहीं आकर्षण का केंद्र बनना है। इस प्रक्रिया में वह खुद भी तनाव ग्रस्त रहता है, उसके आसपास वाले भी। इस आत्ममुग्धता से उपजे तनाव को दूर करने के लिए वह बाज़ार की तरफ दौड़ता है और फिर नया तनाव, यह एक अंतहीन सिलसिला बन कब उसके व्यक्तित्व में गंभीर नकारात्मकता पैदा कर देता है उसे पता ही नहीं चलता। वे इस सच से अनजान ही रहते हैं कि आतंरिक सुंदरता भी कोई शै है और व्यक्तित्व का अपना प्रभाव होता है। 
 
इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों में आत्मविश्वास की कमी होती है और उसी कमी को बनावट का सहारा ले वे आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं। लोग भी ऐसे लोगों की फितरत पहचान उन्हें झूठी सच्ची तारीफ़ों की नियमित खुराक दे उनके इस भाव को और पुष्ट कर अपना स्वार्थ साध लेते हैं।
 
अपने आप पर अत्यधिक ध्यान देने, तारीफ़ों के अत्यधिक भूखे, सबके जीवन में अत्यधिक दख़लअंदाज़ी करना, दूसरों के रहन-सहन, रिश्ते आदि पर भी ज़रूरत से ज्यादा नज़र रखना और उनमे खामियां निकालना ताकि उन्हें अपने से कमतर साबित कर सकें, दूसरों की खिल्ली उड़ाना यह भी कुछ सामान्य लक्षण है जो इस रोग की तरफ इशारा करते हैं।
 
हम सभी में आलोचना करने की प्रवृत्ति होती ही है किंतु दिन रात अपनी प्रशंसा व दूसरों की खामियों की चर्चा करना NPD के लक्षण हो सकते हैं। सावधान कहीं यह डिसऑर्डर आपको अपनी गिरफ्त में तो नहीं ले रहा।

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