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31 मार्च : मीना कुमारी की पुण्यतिथि पर विशेष

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रीमा दीवान चड्ढा

मीना कुमारी ....अदाकारा..शायरा..31मार्च पुण्यतिथि...आप सबने जाना है फिल्मों के ज़रिए  ..लफ्ज़ों में मीना ने क्या कहा...सब नहीं जानते... मीना के अशआर क्या कहते हैं..जानते हैं इस एक कोशिश से .....मीना ने दर्द को लफ्ज़ दिए ....सुर, स्वर भी .....सौंप दी पूंजी सारी .....दोस्त गुलज़ार को ......गुलज़ार ने लोगों तक नज़म, ग़ज़ल सब पहुंचाई..... 
 
 .गुलज़ार ने खु़द लिखा   ......
 
शहतूत की शाख़ पर बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे 
लम्हा लम्हा खोल रही है 
पत्ता पत्ता बीन रही है......
 
मीना.....पैदा हुई.....ज़िंदगी के नाम पर .....ज़िंदगी .....सांसों की मोहलत होती है ...जो मिलती है मुहब्बत की निशानी के रूप में ....हर औरत का जन्म मगर मुरादें पूरी करने को नहीं होता .....कुछ औरतों के हिस्से आती हैं अभिशप्त ज़िंदगी....एक कन्या के रूप में जन्म तो हो पर कन्या होने के अपराध में अनाथालय की सीढ़ियां नसीब हो जहां हज़ारों चीटियां जिस्म पर रेंग जाए और मुख से निकलती चीखों के बावजूद ज़िंदा रह जाए एक जान......
      
धूप में सेंकी छांव की चोटें
छांव में देखे धूप के छाले.....
                                       तिरस्कार, तंज और तकलीफ का सहारा लिए जिस्म पल जाए ...मन किताबों तक दौड़े ...स्कूल जाने को तरसे और तन कैमरे के सामने खड़ा कर दिया जाए...अभिनय...... दुख, तकलीफ, पीडा, दर्द, तिश्नगी और प्रेम का ....करने की ज़रूरत कहां ...जहां ज़िंदगी ने जन्म से अभिनय किया हो वहां किस बात की कोशिश ......सब कुछ नैसर्गिक ...हुस्न की तरह ....आंखों ने बयां किए खूबसूरती के कितने इतिहास .....पानी भरती रह गईं नायिकाएं .....सौन्दर्य तन का ही नहीं मन का भी तभी न देह बोलती थी हर अंग से ...अभिनय कला की ऊंचाई को छूता था ....आंसू सब कह देते थे .....न बहें तब आंखों में उदासी ओढ़ करते थे अभिनय...
            हंसी कितनी मादक .....कितनी मोहक ....पर ज़रा सी टेढ़ी होती तो लबों से कह देती दर्द की दास्तान ....लफ्ज़ कहां होते थे लबों पर .....ख़ामोशी कहती थी जाने कहां का हुनर था इनके पास ..
......
बेबी, बेबी नाज़, महज़बीं, मीना, मय, नर्गिस, साहबजान,....... नाम ....कलाकार का .....39 बरस की ज़िंदगी .....कला के नाम दर्ज़ खूबसूरत नाम फिल्मों के .....पाकिज़गी .....रूह की थी ....जो चलती रही ....सरे राह.....कहीं कोई मिल जाए ....हमसफ़र .....पर तन्हा-तन्हा चांद रहा तन्हा-तन्हा जीवन का आसमां ....लफ्ज़ों ने कहा....
.
चांद तन्हा है आसमां तन्हा 
दिल मिला है कहां कहां तन्हा.....
राह देखा करेगा सदियों तक 
छोड़ जाएंगे ये जहं तन्हा......
 
    इश्क ने मारा ...ऐसा मारा ..कमाल से किया प्यार.....रूह तक भीग गई ...टूट कर प्यार किया ....बेइंतहां .....मांगा क्या....चाहा क्या ...प्यार करने वाला साथी साथ रहे ....साथ न मिला ....न साथी मिला....मीना ने लिखा 
 
दिल सा जब कोई साथी पाया 
बेचैनी भी वह साथ ही लाया
 
कमाल ...कमाल के शौहर हुए ...मालिकाना हक की तरह बीवी पर हक जमाने वाले ....मीना ने लिखा –
 
जैसे जागी हुई आंखों में चुभे कांच के ख्वाब 
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
 
ज़िंदगी सफलता के शिखर पर थी ...फिल्मों ने पुरस्कारों से नवाज़ा ....शोहरत ,दौलत और नाम की बेशुमारियां ......दिल की तन्हाइयां पर भरी न जा सकीं ...
 
ये रात ये तन्हाई 
ये दिल के धड़कने की आवाज़
ये सन्नाटा......
 
कलम ने रूह के दर्द को लफ्ज़ों का सहारा दिया ....मीना बहती रही....मय की तरह....
 
निकाह.....अरमानों के पंख......मन उड़ऩे लगा ....
 
हया से टूट के आह कांपती बरसात आई
आज इकरार ए जुर्म कर ही लें वो रात आई
धनुक के रंग लिए बिजलियां सी आंखों में 
कैसी मासूम उमंगों की यह बारात आई.....
 
निकाह के बाद खूबसूरत लम्हों में लिख़ा....
 
महकते रंग भरे हो गए दिन रात मेरे
मेरे मोहसिन, तेरी खुश्बू, तेरी चाहत के तुफैल  
 
नर्म दिल महज़बीं जब फिल्मों के लिए मीना बनी तो लफ्ज़ों ने कहा....
 
रूह का चेहरा किताबी होगा 
जिस्म का वर्क उन्नाबी होगा
शरबती रंग से लिखो आंखे
और एहसास शराबी होगा......
 
मिला आसमां पर ....आसमां कितना ....ज़रा सा ....औरत कला की ऊंचाई पर ...कलाकार का मन ....शायरा ..संवेदनशील ....नर्म दिल ....पर जन्म से तड़पते मन को नहीं मिला सुकूं थोड़ा सा ...दिल की विरानियां बयां हुईं पर कितनी कब कहां दफ्न हुईं ....किसे है पता.....तलाक तलाक तलाक .....
ख़ंज़र से लफ्ज़ ....
 
रूह ने कहा –
 
तलाक तो दे रहे हो नज़र-ए-कहर के साथ 
जवानी भी मेरी लौटा दो मेहर के साथ .......
 
                       दर्द से आशना होती मीना....
ज़िन्दगी के रंग .....सुख बदा ही नहीं था किस्मत में ....दुबारा निकाह......औरत कितनी बेबस .....कितनी मजबूर ...उफ्फ.....
 
रूह ने तड़प कर कहा .....
 
तुम क्या करोगे सुनकर मुझसे मेरी कहानी
बेलुत्फ़ ज़िंदगी के किस्से हैं फीके फीके .....
 
लम्हा-लम्हा बिख़रती इक रूह मौत की शहनाई सुनने को बेताब हो गई .....मीना ने मय के प्यालों से दोस्ती कर ली....जिस्म के कतरे-कतरे ने आंसुओं से कहने की कोशिश की ....शराब ने ग़म लील लिया होता तो हर कोई पी लेता ....शराब ने मीना को पीना शुरू कर दिया था ...रफ्ता-रफ्ता जिस्म जां से जुदा होता हुआ .......
 
दर्द की अपनी रवायत रही ....लफ्जों में यूं बयां हुए ......
 
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे 
बैठे हैं रस्ते में बयाबां-ए-दिल सजाकर
शायद इसी तरफ से इक दिन बहार गुज़रे
अच्छे लगते हैं दिल को तेरे गिले भी लेकिन 
तू दिल ही हार गुज़रा, हम जान हार गुज़रे
तू तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे 
कांधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे 
मेरी तरह संभाले कोई तो दर्द जानूं
इक बार दिल से होकर परवरदिगार गुज़रे.....
 
कांधे पे अपने सर रख के अपना मज़ार गुज़रे ....
और गुज़र गई एक कलाकार....शायरा ....दर्द पीते पीते.......
 
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सड़कों की सहर होती है 
एक मरकज़ की तलाश, एक भटकती खुशबू 
कभी मंज़िल कभी तम्हीदें सफर होती है ...


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