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आखि‍र क्‍यों ‘विवाह’ हमेशा से ‘विवाद और मजाक’ का विषय रहा है?

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

बालज़ाक ने सच ही कहा है- सम्पूर्ण मानव विज्ञान में विवाह सम्बन्धी ज्ञान ही सबसे कम विकसित है
जैसे-जैसे मानव समाज विकसित कहलाये जा रहा है, वैसे-वैसे बढ़ते तलाक अकबर इलाहाबादी के इस शेर पर खरी उतर रहीं हैं- बे-पास के तो सास की भी अब नहीं है आस, मौकूफ़ शादियां भी हैं अब इम्तहान पर’

हाल ही में मेलिंडा-गेट्स का टूटा रिश्ता भी इसी की कहानी कह रहा है। हम उस समाज में रह रहे हैं जहां मानव सभ्यता, समाचारों में तलाकों और वैवाहिक संबंध विच्छेदों को प्रमुखता से प्रचारित कर उनके महंगे सस्ते होने का गणित लगा कुंठातुष्टि कर्री नजर आती है। सारे विश्व में आज भी विवाह को लेकर तरह-तरह के विचार पाले जाते हैं, जैसे विवाह ही शायद सबसे विवादित शब्द हो।

शतपथ ब्राह्मण (५/२/१/१०) में कहा गया है कि–
यावज्जायां न विदन्ते... असर्वो हि तावद् भवति.’
मनुष्य जब तक पत्नी नहीं पाता, तब तक अपूर्ण रहता है।
रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाइ, पाइन बेरी परत है, ढोल बजाइ बजाइ’ ऐसा रहीम दोहावली में लिखा है।

‘विवाहित जीवन वैसी ही साधनावस्था है, जैसी कोई दूसरी’ गांधी जी ने कहा (स्त्रियों की समस्याएं /85) साथ ही ‘गांधी वाणी’ में यह भी कहा कि- ‘आज हम जिसे विवाह कहते हैं, वह विवाह नहीं उसका आडम्बर है। जिसे हम भोग कहते हैं वह भ्रष्टाचार है’

धनकुबेरों के होते तलाक और बढती संख्या ने यह तो सिद्ध कर दिया है कि धन से सुख-सुकून और रिश्ते कभी नहीं पाए जा सकते। ज्यादातर सूक्ति-लोकोक्ति, लेखन में विवाह का महत्व और मजाक दोनों बनाया गया है। उस पर भी उसके फलित होने न होने का सारा ठीकरा पत्नी के माथे फोड़ा गया है।

ज्याँ एन्तोइने पेते को ही देखें- ‘अच्छी स्त्री से विवाह जीवन-रुपी तूफ़ान में बंदरगाह के समान है, बुरी स्त्री से विवाह बंदरगाह में तूफ़ान के सामान’ क्यों यही बात स्त्रियों के लिए भी तो है न। उनसे तुम्हें हमदर्दी नहीं? हम तो वो आधी आबादी हैं जो अपना नाम भी बिना किसी तकलीफ के परिवर्तित कर लिया करतीं हैं। यहां जेन आस्टिन का कहा कि ‘विवाह से सुख पूर्णतया संयोग की ही बात है’ (प्राइड एंड प्रेज्युडिस,6) से सहमत हुआ जा सकता है।
हेनरी वार्ड बीचर (प्रावर्ब्स फ्रॉम प्लाईमाउथ पल्पिट) में कहते हैं कि- ‘ठीक पत्नी मिलने पर मनुष्य के पर लग जाते हैं। परन्तु गलत पत्नी मिलने पर वह जंजीरों में बांध जाता है’

बाताओ अब इनकी विद्वत्ता का क्या करें? ऐसा तो अच्छा पति मिलने न मिलने पर पत्नियों के साथ भी तो घटित होता है। तभी तो लैंगडन मिचेल (दि न्यूयार्क आइडिया,2) में कह बैठे- ‘विवाह तीन भाग प्रेम और सात भाग पापों की क्षमा है’ और इसे भी तो नकार नहीं सकते कि ‘विवाह एक रिश्वत है जिससे गृह्दासी यह समझने लगती है कि वह गृहस्वामिनी है’

लूकस ने तो विवाह को वास्तु घोषित किया- ‘स्त्री के लिए विवाह करना महत्वपूर्ण वस्तु है परन्तु पुरुष के लिए विवाह एक धक्का पहुंचाने वाली बुरी वस्तु है’ (रीडिंग, राइटिंग एंड रिमेम्बरिंग,3) जैसे दुकान से बिकने वाली कोई चीज है विवाह।

कोल्ले सिबर ने तो (दि‍ गबिल गैलेंट,1/2) ओह! विवाह की अंगूठी के छोटे से वृत्त में यंत्रणाएं वास करतीं है” तक कह डाला है और लेंगडेल मिचेल (दि न्यूयार्क आइडिया,3) में क्या ही मजेदार कहा है- ‘आधुनिक अमेरिकी विवाह तो एक तारों का बाड़ा है। स्त्री तार है और पति लोग खंभे हैं’

राबर्ट बर्टन (दि एनाटॉमी ऑफ मेलंकोली, 2/4/2/1) भी कहां पीछे रहने वाले- ‘कोई व्यक्ति विवाहित ही नहीं हुआ, तो यह उसका नरक है। दूसरा व्यक्ति विवाहित है तो यह उसकी विपत्ति है’ मतलब नरक तुम्हारा और विपत्ति औरतें। वाह!

इन सबके बावजूद विवाह संसार को महान सभ्य बनाने वाला है- राबर्ट हाल का कथन सुकून देता है तो ‘विवाह संस्था पृथ्वी पर महत्तम शिक्षणात्मक संस्था है’- चैनिंग पोलोक विश्वास जगाता है।

पर हम हिन्दुस्तानियों के लिए विवाह शिव-पार्वती के वैवाहिक आदर्शों से भरी कथा है। हर जन्म एक-दूसरे को पाने की कामना का मिथक भी भरपूर है। भले ही इस जन्म में साथ के नरक भोग रहे हों। फिर भी टामस फूलर के इस कथन को मानना ही होगा कि ‘वर्तमान काल में मनुष्य का भाग्य या निकृष्टतम दुर्भाग्य उसका/उसकी, पति/पत्नी ही होती है।’

यहां जानना जरुरी है कि इस कथन में भी केवल पति के प्रति ही इनकी सहानुभूति थी जिसे मैंने बदल कर पत्नी के साझेदारी के साथ प्रस्तुत किया है...ऐ सुनो दुनिया वालों, जमाना बदल गया है...और अब हम औरतें भी।

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