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नतीजे लिखेंगे सिंधिया की भाजपा में भावी भूमिका की पटकथा?

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श्रवण गर्ग

, शुक्रवार, 6 नवंबर 2020 (19:33 IST)
बिहार के साथ-साथ लोग अब यह भी जानना चाहते हैं कि मध्यप्रदेश की 28 सीटों के लिए तीन नवम्बर को पड़े मतों के नतीजे क्या निकलने वाले हैं? बिहार से भिन्न, मध्य प्रदेश के चुनावों की विशेषता यह रही है कि भाजपा के पास तो जनता को रिझाने के लिए कोई मुद्दा था ही नहीं, कांग्रेस ने भी ‘बिकाऊ वर्सेस टिकाऊ' और ‘ग़द्दारी’ को ही प्रमुख मुद्दा बना लिया और वह कुछ हद तक चल भी निकला। इसीलिए ,नतीजे चौंकाने वाले भी आ सकते हैं। दिल्ली के नेताओं को आने वाले नतीजों का कुछ पूर्वानुमान हो गया होगा इसीलिए भाजपा और कांग्रेस का कोई भी ‘बड़ा’ बिहार की तरह सभाएं लेने मध्य प्रदेश नहीं पहुंचा।

मध्य प्रदेश के नतीजों में जनता के लिए यही जानना दिलचस्पी का विषय रह गया है कि सिंधिया के जो प्रमुख समर्थक शिवराज मंत्रिमंडल में अभी ऊंची जगहें बनाए हुए हैं (या मतदान के पहले तक थे) उनमें से कुछ या काफ़ी अगर हार जाते हैं, जैसी कि आशंकाएं भी हैं, तो ‘महाराज’ और भाजपा इसके लिए सार्वजनिक रूप से किसे और पीठ पीछे किसे दोषी ठहराने वाले हैं? दबी ज़ुबान से यह भी कहा जाता है कि भाजपा के ही कई बड़े नेता, विशेषकर ग्वालियर-चम्बल इलाक़े के, ऐसा कम ही चाहते रहे हैं कि उप चुनावों के बाद एक कथित धर्म निरपेक्ष पार्टी कांग्रेस को छोड़कर नए-नए भगवाधारी हुए महत्वाकांक्षी सिंधिया उनके कंधों से ऊंचे नज़र आने लगें।

बिहार के चुनाव परिणामों को लेकर जैसे बड़ा मुद्दा अब यह बन गया है कि दस नवम्बर के बाद नीतीश कुमार और भाजपा के बीच सम्बंध कैसे रहने वाले है, वैसा ही कुछ मध्य प्रदेश में सिंधिया समूह और भाजपा के बीच केवल आठ महीने पूर्व क़ायम हुए समीकरणों को लेकर भी कहा जा रहा है। सिंधिया-समर्थकों की बड़ी जीत या कड़ी हार दोनों ही स्थितियां मध्य प्रदेश में भाजपा की राजनीति को आने वाले समय में काफ़ी तनावपूर्ण बनाकर रखने वाली है।

नीतीश कुमार ने यह घोषणा तो कर दी है कि यह उनका आख़िरी (विधान सभा?) चुनाव है पर ऐसा कोई इरादा नहीं ज़ाहिर किया है कि वे हरेक परिस्थिति में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में बने रहेंगे। पर सिंधिया तो स्पष्ट कह चुके हैं कि वे अब भाजपा में ही बने रहने वाले हैं। अतः उप चुनावों के नतीजे न सिर्फ़ उनके समर्थकों का ही मध्य प्रदेश की भावी राजनीति में भविष्य तय करेंगे, स्वयं सिंधिया की भाजपा के केंद्रीय स्तर पर बहु-प्रतीक्षित भूमिका की पटकथा भी लिखने वाले हैं।

बिहार में अगर यह सम्भव नहीं नज़र आ रहा है कि नीतीश की जद (यू) को भाजपा के मुक़ाबले ज़्यादा सीटें मिल पाएंगी, तो मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के मुक़ाबले भाजपा उम्मीदवारों की ज़्यादा सीटों पर जीत होती नज़र नहीं आ रही है। इसके कारण भी भाजपा को अपनी अंदरूनी चुनावी रणनीति में ही तलाश करना पड़ेंगे।

बिहार और मध्य प्रदेश, दोनों जगहों में अगर किसी एक में भी सरकार भाजपा के हाथ से निकल जाती है तो एनडीए के साम्राज्यवाद को महाराष्ट्र के बाद दूसरा बड़ा धक्का लगने वाला है और उसकी गूंज अगले साल बंगाल के चुनावों में भी सुनाई पड़ेगी। राजस्थान का प्रयोग हाल में विफल हो ही चुका है। मध्य प्रदेश में भाजपा को हो सकने वाले नुक़सान के संकेत उप चुनावों में प्रचार के दौरान ही दिखने लगे थे।

मसलन, मध्य प्रदेश में उन तमाम स्थानों के भाजपा कार्यकर्ता अपने आपको उन नए ‘भगवा’ प्रत्याशियों के पक्ष में काम करने के लिए आसानी से तैयार नहीं कर पाए, जिन्होंने 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकटों पर लड़कर उन्हें (भाजपा उम्मीदवारों को) ही हराया था। संदेह उठता है कि इन कार्यकर्ताओं ने इन नए ‘उम्मीदवारों’ की जीत के लिए पहले की तरह ही अपनी जान की बाज़ी लगाई होगी!

उन्हें सम्भवतः यह भय भी रहा हो कि ये नए लोग अगर जीत कर मंत्री-विधायक बन जाते हैं तो फिर ग्राम, ब्लॉक और ज़िला स्तर तक फैली भाजपा-संघ कार्यकर्ताओं की जो समर्पित फ़ौज है वह इन ‘नयों’ का मार्गदर्शन और नेतृत्व कैसे स्वीकार कर सकेगी? उप चुनावों में पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ काम को लेकर कुछ वरिष्ठ नेताओं को हाल में जारी हुए कारण बताओ नोटिस यही संकेत देते हैं कि बाग़ियों के विद्रोह की स्थिति अगर किसी एक विधानसभा क्षेत्र में भी थी तो इनकार नहीं किया जा सकता कि वह कुछ और या अधिकांश सीटों पर नहीं रही होगी।

मध्य प्रदेश में चुनाव परिणाम चाहे जो भी निकलें, भरे कोरोनाकाल में जिस राजनीतिक अराजकता और प्रशासनिक अस्थिरता की शुरुआत आठ महीने पहले मार्च में दल-बदल के घटनाक्रम के साथ हुई थी, हो सकता है वह दस नवम्बर के बाद अगले सोलह महीने और चले। उसके बाद तो नए चुनावों के पहले का राजनीतिक पतझड़ प्रारम्भ हो जाएगा। जनता को कोरोना के लॉकडाउन के साथ-साथ एक लम्बा राजनीतिक-प्रशासनिक लॉकडाउन भी झेलना पड़ सकता है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर चुनाव नतीजों के बाद मध्य प्रदेश और बिहार दोनों में ही भाजपा के लिए एक जैसी राजनीतिक स्थितियां कायम हो जाएं। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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