शुचि कर्णिक,
उस शाम जब मौसम खुशनुमा था और आसमान में सातों रंग बिखरे थे अपनी इंद्रधनुषी आभा लिए हुए, तब एक गाना मेरे ज़ेहन में गूंजने लगा… ‘मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने बुने, सपने सुरीले सपने’
यह गाना आनंद फिल्म का है जो अपनी कहानी, गीतों और कलाकारों के अभिनय आदि सभी लिहाज से एक बेहतरीन फिल्म थी। यह गीत जो हम बचपन से सुनते आए हैं फिर एक बार मुझे उस दौर में ले गया जब पसंदीदा गीतों को कैसेट्स में रिकॉर्ड करवाया जाता था। तब पापा ने उनकी पसंद के कई गाने रिकॉर्ड करवाए थे। तब न तो वह उम्र थी कि गीत के बोल और उनमें व्यक्त भावों की गहराई समझ पाते और ना ही इन चीजों को ध्यान से सुनने का धैर्य पर इतना जरूर था कि गाहे-बगाहे ये सुरीले गीत, इनकी मेलोडियस धुनें कानों में पड़ती रहतीं।
गायक न सही अच्छा सुनकार बनने की नींव इन्हीं गानों को सुनते सुनते तैयार होती गई। इनमें ज़िंदगी का फ़लसफा, इश्क मुहब्बत, सुख-दुख, आशा निराशा जैसी भावनाओं को गीतकारों ने इतनी खूबसूरती से शब्दों में गूंथा है कि हमारा जीवन इन फूलों की सुगंधित माला बन गया है। कुछ गीत हमारी ज़िंदगी में इस तरह शामिल हैं कि दिनचर्या इनके बिना अधूरी लगती है। ऐसे कितने ही गीत हैं जो हमारे दिल के करीब हैं, हमारी सुबह की शुरुआत से पूरा दिन हमारा साथ निभाते चलते हैं। इनमें- ‘कई बार यूं भी देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है’, ‘रिमझिम गिरे सावन सुलग- सुलग जाए मन’, ‘जब भी कोई कंगना बोले’, जैसे सुरीले गीत शामिल हैं।
फेहरिस्त बहुत लंबी है। शब्द और सुरों के लिहाज़ से हमारी दौलत बेशुमार है। जब मन डूब रहा हो या मन के आकाश पर उदासी के बादल छाए हों तब 'कहां तक ये मन को अंधेरे छलेंगें' सुन लीजिए।
यह गीत मन में अनंत ऊर्जा भर देगा। एक और बहुत खूबसूरत नग़मा है जो मैं अक्सर सुनती हूं 'बड़ी सूनी सूनी है जिंदगी ये जिंदगी', ‘मिली’ फिल्म के इस गीत को आप एकांत में आंखें बंद करके सुनें, किशोर का कातर स्वर, अमिताभ की बेबसी और इन सबसे ऊपर योगेश की कलम से छलकता दर्द आपको सूनेपन की खोह में धकेल देगा,पर फिर भी इस वेदना से आप जुड़ते चले जाएंगे और अपने ही किसी ग़म को जीने लगेंगे। उस दौर के गीतकारों की यही ख़ासियत थी कि हर गीत सच्चाई की चाशनी में डूबा होता था।
पिछले दिनों जब हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार योगेश जी का निधन हुआ तब हमारे एक पारिवारिक मित्र ने हमारा ध्यान इस तरफ खींचा कि अक्सर हम जिन गीतों को गुनगुनाया करते हैं उनमें से ज्यादातर योगेश जी ने लिखे हैं।
उसी शाम हमारे इन्हीं मित्र द्वारा योगेश जी को एक सुरीली संगीतमय भावांजलि दी गई। जब भी हम कोई गीत सुनते हैं मन उस गीत के दरिया के भीतर गोता लगा आता है और चंद मोती अपने ख़ज़ाने में शामिल कर लेता है। ऐसे ही चंद मोती हमें योगेश जी की बदौलत हासिल हुए हैं।
गीत संगीत को सुनकर जो आनंद हमें मिलता है उसको बयां करने में कई बार शब्दकोश में उपलब्ध शब्द कम महसूस होते हैं। यूं भी संगीत तो एहसास है जिसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। कुछ गीत ऐसे होते हैं जो आत्मा को भिगो देते हैं और कुछ आनंद के सागर में डुबो देते हैं। जो भी हो मन का ख़जाना समृद्ध होता जाता है। ऐसे ही कुछ गीत ज़ेहन में हमेशा गूंजते रहते हैं हर बार एक नया अर्थ लिए। ग़म हो तो ये गीत दुख के पहाड़ को काटकर खुशी की पगडंडियां बना देते हैं और जब हम प्रसन्न हों तो कुछ गीत सुनकर हम परम आनंद की अनुभूति करते है।
...और देखिए योगेश जी हमारी शामों को कितना खूबसूरत और रंगीन बना गए। आज फिर शाम ढल रही है योगेश जी के इस गीत के साथ... कहीं दूर जब दिन ढल जाए...