लता सुर संगीत का साक्षात विग्रह हैं, हैं इसलिए कि वे कभी थीं नहीं हो सकती।
हम उस युग में हुएं हैं जिसमें लता जी के स्वर गूंजे हैं, इससे बड़ी जीवन की सार्थकता क्या होगी, जिसने लताजी को न सुना वो जन्मा ही नहीं, विश्वास नहीं हो रहा, विधाता क्या कभी कोई दूसरी लता का सृजन कर सकेगा ? और क्या सुर की वैसी विशुद्ध, दीर्घ साधना कोई कर सकेगा भला?
युगों में कोई एक लता होतीं हैं, उनका व्यक्तित्व इतना विराट है कि शब्द भला कितना दम भरें। नमन हे संगीतमयी आत्मा, ईश्वर का दरबार अब उन सुरों से गुंजित होगा, मनुष्यों के हिस्से में इतना ही था, किंतु जितना था वह अक्षय कोष है। सरस्वती साधिका ने जाने को बसंत ही चुना, किंतु धरती का बसंत सूना हो गया, नहीं नहीं उनके सुर हैं न हमारे साथ जो सजते रहेंगें हर अवसर पर।
पता था एक दिन ऐसा होगा, किंतु लता जी नहीं रहेंगी किसी दिन कभी मन मानने को तैयार नहीं होता था, किंतु वो रहेंगी सदा अपने सुरों के साथ, आने वाली पीढ़ियों को सुर का अर्थ समझाती साधना का मर्म बताती, संगीत की आत्मा का साक्षात्कार करवाती वे सदा रहेंगीं...