धारा 370 तो गई पर स्नेह धारा का बहाव नहीं रुकना चाहिए...

स्मृति आदित्य
कश्मीर पर तकनीकी, राजनीतिक और संवैधानिक पक्षों से इतर यह एक भावुक पोस्ट है। बचपन से पढ़ा, कश्मीर भारत का स्वर्ग है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है तो फिर समझ नहीं आया कि वह अलग क्यों है अब तक..धीरे-धीरे 370 और कश्मीर से जुड़े कई पक्ष सामने आए लेकिन एक छटपटाहट उनसे जुड़ने की, उन्हें अपने से जोड़ लेने की हमेशा बनी रही। 
 
वहां जब भी विस्फोट हुए तो मन यहां झुलसा है। वहां आंतक फैला है तो मन यहां उद्वेलित हुआ है। वहां का तनाव यहां हमारी शिराओं में बहा है। 
 
वहां की केसर क्यारियों की महक हम यहां महसूस करते हैं। वहां के सेब यहां की सेहत में लालिमा घोलते हैं। 
 
वहां की झील और शिकारे यहां रूमानिय‍त रचते हैं। वहां का पवित्र सादगी भरा रक्तिम सौंदर्य यहां से आदर और स्नेह बटोरता है। 
 
पश्मीना की गर्मी में वहां की सुहानी बयार हम यहां अनुभव करते हैं। वहां का कहवा यहां पीकर बर्फीली वादियों में विचरण करते हैं।
 
वह हमसे अलग कब था मैं सोचती हूं..
 
वास्तव में आतंकवाद के प्रेत ने, इतिहास की कुछ नादानियों ने हमारे कश्मीरी बंधुओं को बहुत छला है और उनकी आत्मा को बहुत छीला है। 
 
हमें समझना होगा कि एक देश और एक राष्ट्र में अंतर होता है। देश भौगोलिक समाओं से बनता है, नदी, पहाड़, झरने, जमीन, पठार और हरियाली से बनता है पर एक राष्ट्र वहां रहने वालों लोगों के एक साथ जीने-रहने और साथ सुख-दुख बांटने के संकल्प से बनता है। एक साथ खुशी, भावना, आचरण, संस्कार और सरल जुड़ाव से बनता है। 
 
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद हमें राष्ट्र की परिभाषा ही याद रखनी है देश, प्रदेश और सीमाओं की बात सियासी लोगों को करने दीजिए। हम आम नागरिक है हमें अपने अपनों को अपनी भावनाओं की मजबूती से जोड़े रखना है। हमें प्यार की छलछल करती नदी बनना होगा न कि छिछले बरसाती नाले जो अपने शब्दों और कुत्सित विचारों से सोशल मीडिया पर उफन रहे हैं।
 
 हम सब एक जैसे नहीं हो सकते क्योंकि देश में हर तरह के हर सोच के लोग हैं पर हम जो अच्छा सोच सकते हैं, अच्छा समझ सकते हैं अच्छा चिंतन कर सकते हैं वे इस वक्त अपनी जिम्मेदारी से पीछे न हटे। चाहे मोदी जी आपकी पसंद न हो चाहे अमित शाह आपके चहेते न हो पर इस समय देश एक स्वर में एक आवाज मांग रहा है।  
 
हमें यह भी समझना होगा कि देश के हर नागरिक की तरह अमन और चैन की जिंदगी पर उनका भी हक है जो बरसों से घाटी में खून और हिंसा के माहौल में जी रहे थे। हमें उनके मानस में यह बोना है कि एक ही जीवन है और इस जीवन में भी आपको धरा के सबसे सबसे खूबसूरत हिस्से पर जन्म लेने का सौभाग्य मिला है। इसे व्यर्थ के खूनखराबे में बर्बाद न करें। आजादी का सही अर्थ समझें। कौन है जो आपको मोहरा बना रहा है और कौन है जो आपको अपना बना रहा है। फर्क समझिए...  
 
अब हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है मुख्य धारा से उनके हुनर को जोड़ें। अब हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए उन्हें स्थान देने की। रोजगारोन्मुख शिक्षा से कार्यक्रम आरंभ कर उन्हें व्यावसायिक बुलंदी पर पहुंचाना भी हमारी वरीयता में शामिल होना चाहिए। 
 
सरकार कोई जादूगर नहीं है कि सत्ता में आते ही चारों तरफ सब कुछ बेहतर हो जाए लेकिन बदतर से बेहतरी की तरफ बढ़ने के इरादे अगर नजर आए तो अपनी छोटी-छोटी विचारधाराओं से ऊपर आकर साथ चलने में ही समझदारी है। देव और दानव, शैतान और शालीन हर युग में थे और रहेंगे पर हमें अच्छाई की रेखा इतनी लंबी कर देनी है कि दानवी शक्तियां सिमट जाए.. हमें अपनी शालीनता का ग्राफ इतना ऊंचा कर देना होगा कि शैतानी तत्व अपने घृणित मंसूबों में कामयाब न हो पाए ...

सोच के स्तर पर थोड़ा थोड़ा हम सबको बदलना है क्योंकि राष्ट्रहित किसी एक के लिए नहीं हम सबके लिए सर्वोपरि है। धारा 370 तो गई पर प्रेम की धारा का बहाव नहीं रुकना चाहिए...  आइए एक खुशनुमा सुबह के लिए हम सब गुनगुनाएं .. ये वादियां, ये फिज़ाएं बुला रही हैं तुम्हें...  
 

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