Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कैफी आजमी 10 मई पुण्यतिथि : इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कराना...

हमें फॉलो करें कैफी आजमी 10 मई पुण्यतिथि :  इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कराना...
webdunia

स्मृति आदित्य

नर्म नाजुक शब्दों से सजे न जाने कितने ऐसे गीत हैं जिनसे कैफी आजमी की सौंधी महक आती है। संजीदा और सलीकेदार शायरी में मधुर गीत रचकर कैफी इस दुनिया से रुखसत हो गए। उनकी कलम से झरे खूबसूरत बोलों की रंगत, खुशबू और ताजगी आज भी वैसी ही है। कैफी की कलम का करिश्मा ही था कि वे ‘जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें’, जैसी कलात्मक रचना के साथ सहज मजाकिया ‘परमिट, परमिट, परमिट....परमिट के लिए मरमिट’ लिखकर संगीत रसिकों को गुदगुदा गए। 
 
कैफी (असली नाम : अख्तर हुसैन रिजवी) उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मिजवान में सन 1915 में जन्मे। गांव के भोलेभाले माहौल में कविताएं पढ़ने का शौक लगा। भाइयों ने प्रोत्साहित किया तो खुद भी लिखने लगे। 
 
किशोर होते-होते मुशायरे में शामिल होने लगे। वर्ष 1936 में साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और सदस्यता ग्रहण कर ली। धार्मिक रूढि़वादिता से परेशान कैफी को इस विचारधारा में जैसे सारी समस्याओं का हल मिल गया। उन्होंने निश्चय किया कि सामाजिक संदेश के लिए ही लेखनी का उपयोग करेंगे। 
 
1943 में साम्यवादी दल ने मुंबई कार्यालय शुरू किया और उन्हें जिम्मेदारी देकर भेजा। यहां आकर कैफी ने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन किया। 
 
जीवनसंगिनी शौकत से मुलाकात हुई। आर्थिक रूप से संपन्न और साहित्यिक संस्कारों वाली शौकत को कैफी के लेखन ने प्रभावित किया। मई 1947 में दो संवेदनशील कलाकार विवाह बंधन में बंध गए। शादी के बाद शौकत ने रिश्ते की गरिमा इस हद तक निभाई कि खेतवाड़ी में पति के साथ ऐसी जगह रहीं जहां टॉयलेट/बाथरूम कॉमन थे। यहीं पर शबाना और बाबा का जन्म हुआ। 
 
बाद में जुहू स्थित बंगले में आए। फिल्मों में मौका बुजदिल (1951) से मिला। स्वतंत्र रूप से लेखन चलता रहा। कैफी की भावुक, रोमांटिक और प्रभावी लेखनी से प्रगति के रास्ते खुलते गए और वे सिर्फ गीतकार ही नहीं बल्कि पटकथाकार के रूप में भी स्थापित हो गए। ‘हीर-रांझा’ कैफी की सिनेमाई कविता कही जा सकती है। सादगीपूर्ण व्यक्तित्व वाले कैफी बेहद हंसमुख थे, यह बहुत कम लोग जानते हैं। 
 
वर्ष 1973 में ब्रेनहैमरेज से लड़ते हुए जीवन को एक नया दर्शन मिला - बस दूसरों के लिए जीना है। अपने गांव मिजवान में कैफी ने स्कूल, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और सड़क बनवाने में मदद की।
 
उत्तरप्रदेश सरकार ने सुल्तानपुर से फूलपुर सड़क को कैफी मार्ग घोषित किया। 10 मई 2002 को कैफी यह गुनगुनाते हुए इस दुनिया से चल दिए : ये दुनिया, ये महफिल मेरे काम की नहीं...। 
 
कैफी के प्रमुख गीत 
* मैं ये सोच के उसके दर से उठा था...(हकीकत)
* है कली-कली के रुख पर तेरे हुस्न का फसाना...(लालारूख) 
* वक्त ने किया क्या हसीं सितम... (कागज के फूल) 
* इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कराना... (शमा) 
* जीत ही लेंगे बाजी हम तुम... (शोला और शबनम)
* तुम पूछते हो इश्क भला है कि नहीं है... (नकली नवाब)
* राह बनी खुद मंजिल... (कोहरा) 
* सारा मोरा कजरा चुराया तूने... (दो दिल)
* बहारों...मेरा जीवन भी संवारो... (आखिरी रात)
* धीरे-धीरे मचल ए दिल-ए-बेकरार... (अनुपमा)
* या दिल की सुनो दुनिया वालों... (अनुपमा)
* मिलो न तुम तो हम घबराएं... (हीर-रांझा)
* ये दुनिया ये महफिल... (हीर-रांझा)
* जरा-सी आहट होती है तो दिल पूछता है... (हकीकत)
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या कर्नाटक में 'केरला स्टोरी' की अफ़वाह हारेगी नहीं?