गली,मोहल्ला, घर इंदौर, सुंदर साफ शहर इंदौर, सूरज की किरणों से चमचमाता इंदौर, चांद की रोशनी से रोशन है इंदौर....जब जब ये सुन कर सुबह सुरीली होती थी आज इसी इंदौर के उत्सव प्रेमी और अति उत्साही कुछ नागरिकों ने शर्म से हम इन्दौरियों का सर नीचा कर दिया।
इंदौर की सूरज-चांद सी प्रतिष्ठा पर यह अति उत्साह, राहु-केतु के प्रभाव से लगे हुए ग्रहण के सामान है। खगोलीय ग्रहण का प्रभाव तो कुछ समय में समाप्त हो जाता है किंतु इस नादानी से लगे हुए ग्रहण की कीमत कितने परिवारों को अपनी जान से हाथ धो कर चुकानी पड़ सकती है कोई नहीं जानता। माना कि आप उत्सव प्रेमी हैं, माना कि आप उत्साही हैं, माना कि आप जोशीले हैं पर इसका मतलब ये नहीं कि आप बन्दूक की गोली अपनी ही तरफ नली रख कर चला लें। अति उत्साह में कौरवों ने भी जयद्रथ को सुरक्षा के चक्रव्यूह से निकल दिया था। नतीजा था सिर्फ मौत। अति उत्साह में आपने इंदौर का सुरक्षा चक्र तोड़ दिया इसे मुर्खता न कहा जाए तो और क्या कहा जाए?
बाना पहिरे सिंह का, चले भेड़ की चाल
बोली बोले सियार की कुत्ता खावे फाल
सिंह का वेश पहन कर जो भेड़ की चाल चलता है उसे कुत्ता जरुर फाड़ खाता है। यही इन नागरिकों पर सटीक बैठता है। जब माननीय प्रधानमंत्री जी ने जनता कर्फ्यु और ताली थाली का आग्रह किया था तभी सोशल मिडिया पर इस बात की शंका व्यक्त की गई थी कि कुछ “एबले इन्दौरी” हर बार जैसे उत्साह में हमेशा की तरह राजबाड़े पहुंच सकते हैं।
तुम मूर्खों ने उसे सच कर दिखाया कि तुम न केवल एबले हो वरन महा मुर्ख भी हो।
अंग्रेजी लेखक अलेक्जेंडर पोप ने सन 1711 में अपनी कविता में लिखा था- “fools rush in where angels fear to tread.” अर्थात् चलने के लिए जहां स्वर्ग दूतों के डर में मूर्खों की भीड़। जहां बुद्धिमान जाना नहीं चाहते वहां मूर्ख दौड़ कर जाते हैं और कल यही हुआ हमारे इंदौर में भी।
मूर्खों की पहचान में हमारे यहां कहा है कि 'मूर्खस्य पंच चिह्नानी गर्वो दुर्वचनं मुखे, हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते...
मूर्खों की पांच निशानियां होतीं हैं- अहंकारी होते हैं, मुंह में बुरे शब्द होते हैं, जिद्दी होते हैं, बुरी शक्ल बनाए रहते हैं, और दूसरों की बात कभी नहीं मानते।
इनमें से बहुमत गुणों का कल प्रदर्शन किया हमारे इन्दौरियों ने। जिन्होंने विश्व के नक़्शे पर इंदौर को स्वच्छता का ताज पहना कर नंबर वन बनाया था। इस ताज की चमक धुंधली हो गई है। केवल बाहरी सफाई ही नहीं हमें तो दिमाग के जाले झाड़ने की भी जरुरत आन पड़ी है।
गौरवमयी इंदौर, मां अहिल्या की नगरी इंदौर, हमारी आन बान शान इंदौर, जिसकी इज्जत केवल कुछ नादान नासमझ उत्साही लोगों की बलि चढ़ गई। ठीक से जनता कर्फ्यू और घंटा नाद की ख़ुशी की तरंगे थमी भी नहीं थी कि यज्ञ की पूर्णाहुति में आसुरी विघ्न की तरह यह कर्म कांड कर गए हमारे कुछ मूर्ख एबले इंदौरी जन।
“मूर्खस्य नास्त्यौषधं” मूर्खों की कोई औषधि नहीं है। यही हाल हमारे यहां भी कुछ लोगों का है। महामारी चौखट पर खड़ी है और हम उसके लिए द्वारचार करने राजबाड़ा व अन्य प्रमुख चौराहों पर पहुंचे...शर्म आनी चाहिए यदि सच्चे इन्दौरी हो तो. वरना डूब मरो चुल्लू भर पानी में। जीते जागते यमराज का रूप धारण करने का शौक तुम्हें क्योंकर चढ़ा समझ से परे है...
सांप्रदायिक दंगे में सौहार्द्र समभाव की मिसाल इंदौर, कंबल बांटने वाला इंदौर, अन्न क्षेत्र प्याऊ लगाने वाला मेरा इंदौर, पशु-पक्षियों तक को भूखा न रहने देने वाला मेरा इंदौर, एजुकेशन हब, उत्सवों को दिलेरी से जीने वाला मेरा ये रंगपंचमी की रंगारंग गेर निकलने वाला, ताजिये व अनंत चतुर्दशी की झांकी निकालने वाला, नमकीन मीठे में बेजोड़, सनन भनन तिरी भिन्नाट मेरा इंदौर...अपना इंदौर...हम सबका इंदौर,मध्य प्रदेश का दिल इंदौर कल शाम एक नादान हरकत का गवाह बन गया।
शर्मिंदा हैं हम, पर उम्मीद करते हैं कि इससे सबक लेंगे और आने वाली विपदाओं से मिल कर, कमर कस कर, एकजुट ....नहीं नहीं...अलग अलग भीड़ लगाए बिना,समझदारी से निपटेंगे. मन में है विश्वास ..पूरा है विश्वास... हम होंगे कामयाब....