पाकिस्तान में सेना द्वारा नियंत्रित प्रजातंत्र के आम चुनाव का ड्रामा समाप्त हुआ। सेना ने चौसर की तरह प्रजातंत्र का बोर्ड बिछाकर विभिन्न दलों को चुनाव और प्रधानमंत्री का खेल खिलाया। जनता का दिल बहल गया। सेना समर्थित उम्मीदवार इमरान खान को प्रधानमंत्री पद पर पहुंचा दिया गया। विश्व जानता है कि पाकिस्तान का प्रजातंत्र दिखावा मात्र है और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के पास बहुत ही सीमित अधिकार हैं।
वास्तविकता यह है कि सेना के अधिकारियों से मिलने के लिए मंत्रियों को समय लेना पड़ता है और कई बार तो उन्हें बिना मिले ही रुखसत कर दिया जाता है। पाकिस्तान में सेना की इतनी दशहत है कि कोई उसके खिलाफ बोलना नहीं चाहता। प्रधानमंत्री के हाथ, पैर बंधे हुए होते हैं और उसे पीछे चाभी भरकर चलाया जाता है दुनिया को दिखाने के लिए।
नवाज शरीफ ने कई बार इस व्यवस्था को चुनौती दी इसलिए वे सेना के लिए सिरदर्द बन चुके थे। शरीफ समर्थकों का आरोप है कि सेना ने न्याय व्यवस्था का सहारा लेकर नवाज़ शरीफ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया और इन चुनावों में राजनैतिक स्पर्धा से बाहर कर दिया।
इस वर्ष मीडिया ने भी सेना को चुनौती देने की असफल कोशिश की। अप्रैल में जियो टीवी को सेना की आलोचना करने के कारण बंद कर दिया गया था। बाद में कहते हैं कि लिखित माफीनामे के बाद पुनः शुरू हुआ। उसी तरह सेना की कुटिल नज़रें पाकिस्तान के प्रसिद्ध अख़बार डॉन पर बनी रहती हैं जिसे कई बार सेना के गुस्से का शिकार होना पड़ता है।
बीबीसी के अनुसार शरीफ जब पाकिस्तान लौटे तो टीवी चैनलों को उनकी वापसी को कवर करने की मनाही थी। इस तरह सेना का एक अघोषित नियंत्रण कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया पर बना हुआ है। नवाज़ शरीफ की पार्टी की ओर से गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि चुनाव में इमरान को जिताने के लिए अनेक बूथों पर जमकर धांधली हुई है जिसे वहां की कठपुतली इलेक्शन कमीशन ने खारिज कर दिया।
इस तरह सेना की सहायता से इमरान प्रधानमंत्री तो बन गए किन्तु पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सिर पर कोई हीरों का ताज नहीं होता। नई सरकार के सामने अनेक गंभीर चुनौतियाँ हैं? खाली खजाना। बेतहाशा कर्ज। डॉलर के विरुद्ध गिरता पाकिस्तानी रुपया। कर्ज देने को कोई देश तैयार नहीं। कानून व्यवस्था की हालत गंभीर। कट्टरवादियों के मनसूबे आसमान पर। देश की सभी पड़ोसियों के साथ दुश्मनी फिर अफगानिस्तान हो, ईरान हो या हिंदुस्तान। अमेरिका का निरंतर दबाव है आतंकियों पर नकेल डालने के लिए। ऊपर से पाकिस्तान का ग्रे लिस्ट में शामिल होना।
आतंकवाद के वित्त पोषण और काले धन को अवैध रूप से देश से बाहर भेजने और लाने पर कोई नियंत्रण नहीं होने से अंतर्राष्ट्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को दोषी करारते हुए उसे निगरानी की सूचि में डाल दिया है जो किसी भी देश के लिए बहुत ही अपमानजनक है। इस सूची में सीरिया, इथोपिया और यमन जैसे देश भी शामिल हैं। इससे पहले भी पाकिस्तान को दो बार इस सूची में डाला जा चुका है।
इस सूची में आने के बाद अंततरष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेना लगभग असंभव हो जाता है। इमरान सरकार इन चुनौतियों से कैसे निपटेगी ?
इधर इमरान प्रधानमंत्री पद पर आने के लिए अपनी ईमानदार छवि को तोड़कर कोई भी क़ुरबानी देने को तैयार थे। पहले सेना के पिछलग्गू बने और उनके साथ काम करने की बात की। लोगों ने उन्हें सेना का 'पोस्टर बॉय' बताया। फिर चुनाव जीतने के लिए भ्रष्ट लोगों को अपनी पार्टी में बड़े ओहदों पर बैठाने में कोई परहेज नहीं किया। कट्टरपंथियों के साथ भी समीकरण बनाए। इमरान की दूसरी बीबी उन पर किताब लिखकर उनकी व्यक्तिगत चरित्र पर पहले ही कीचड़ उछाल चुकी है।
सेना के एक पिट्ठू के रूप में इमरान अपने सीमित अधिकारों और भ्रष्ट नेताओं को साथ लेकर भ्रष्टाचार से कैसे लड़ाई करेंगे? कट्टरपंथियों को साथ लेकर दशहतगर्दों के साथ कैसे निपटेंगे? स्वयं के चरित्र पर इतने प्रश्न हैं तो राष्ट्र के चरित्र का निर्माण कैसे करेंगे? इमरान सेना की कठपुतली ही साबित होंगे या फिर वे सेना से अलग अपनी कोई पहचान बना पाएंगे? आने वाले दिनों में ऐसी अनेक चुनौतियां इमरान के सामने होंगी। उधर भारत को हर हाल में सतर्क रहना होगा क्योंकि चुनाव अब निपट चुके हैं।
पाकिस्तान की सेना फिर भारतीय सीमा पर सक्रिय हो जाएगी अपने शैतानी मंसूबों के साथ आतंकवादियों को भारत में उंडेलने के लिए। कुल मिलाकर, पाकिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन से भारत-पाक संबंधों की सेहत पर कोई सकारत्मक प्रभाव पड़ता नहीं दिखता। केवल यदि ईश्वर ने इमरान को सदबुद्धि दी और वे अपनी विभिन्न मजबूरियों को तोड़ पाने में सफल हुए तो ही इस क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत हो सकती है।