हिन्दू बनाम सिख न होने दें!

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
बीते दिनों पंजाब के कपूरथला अन्तर्गत निजामपुर गुरुद्वारे में संगठित भीड़ ने एक व्यक्ति की 'गुरुग्रन्थ साहब' की बेअदबी करने के आधार पर हत्या कर दी है।

इस पर देश के अन्दर से व विदेश से तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। घटनाक्रम पर स्थानीय पुलिस अपने स्तर से मामला दर्ज कर कार्रवाई करने की बात कर रही है।

यदि हम देश के संविधान व कानून को मानते हैं तो इस तरह का कोई भी कृत्य किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है। चाहे किसी भी धर्म, पन्थ को मानने वाले लोग हों उन्हें धर्म के नाम पर किसी की भी हत्या करने का अधिकार नहीं मिल जाता है। भारत में संविधान व कानून है जो किसी के अपराधी सिध्द होने नहीं होने और दण्डविधान का निर्णय करता है।

इस मामले में कानून को निष्पक्ष जांच कर दोषियों को दण्डित करना चाहिए। लेकिन इन सबके बीच जो सबसे पेचीदा मामला है वह यह कि - इस बीच विभाजनकारी शक्तियां 'हिन्दू- सिख' विभाजन के नैरेटिव गढ़ने में लग गईं है।

पाकिस्तान और खालिस्तानी मूवमेंट इसे एक अच्छा अवसर मान रहा है। और उसने इसे भुनाने के लिए अपनी मुहिम छेड़ दी है। ईसाई मिशनरियां वहां धर्मान्तरण के लिए पूर्व से ही पूरे दमखम के साथ लगी हुई हैं। ऐसा लगता है जैसे नशे ने तो वहां के युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेकर पूरी युवा पीढ़ी के पैरों तले नशे की बारूदी सुरंग ही बिछा रखी है।

कुछ इसी तरह का घटनाक्रम बीते 15 अक्टूबर को सिंघु बॉर्डर से लगे हरियाणा के सोनीपत जिले के कुण्डली में किसान आन्दोलन को बदनाम करने व 'गुरुग्रन्थ साहब' का अपमान करने के नाम पर पंजाब के एक दलित सिख लखबीर सिंह की भी नृशंसता पूर्वक हत्या कर दी गई थी। जिसमें उसके हाथ पैर-काटकर उसे बैरिकेड से लटका दिया गया था। इसका आरोप भी निहंगों पर लगा था।

वैसे भी पंजाब सीमावर्ती क्षेत्र का राज्य है जहां की एक भी अस्थिरता सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती है। पाकिस्तान वहां की खफिया एजेंसी आईएसआई, खालिस्तानी सहित सभी भारत विरोधी तत्व यह चाहते ही हैं कि पंजाब में अशान्ति का वातावरण उत्पन्न कर उसे हिंसा,उत्पात की आग में झोंक दिया जाए। ताकि भारत अपने अन्दर के आन्तरिक उपद्रवों से निपटने में ही उलझा रहा आए और विकास के शीर्ष आयामों तक न पहुंच सके। पंजाब इस समय इन्हीं अनेकानेक संक्रामक परिस्थितियों से गुजर रहा है।

पंजाब के पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के त्यागपत्र के बाद से ही वहां का राजनैतिक नेतृत्व पूरी तरह से विफल और अस्थिर प्रतीत हो रहा है। सिध्दू- चन्नी और कांग्रेस की वैचारिक स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी 'बन्दर के हाथ में उस्तरे को सौंपने' की कहावत।

कैप्टन अमरिन्दर सिंह पंजाब की संवेदनशील परिस्थितियों से पूरी तरह से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने किसान आन्दोलन के समय भी कांग्रेस की राजनीति से अलग इस मामले में पूरी तरह से तटस्थता बनाए रखी । उन्होंने यह प्रयास किया था कि किसान आन्दोलन की आड़ में किसी भी तरह से षड्यन्त्रकारी तत्व 'हिन्दू बनाम सिख' के प्रायोजित एजेण्डों को न चला सकें। किसान कानूनों की वापसी के मूल में कहीं न कहीं मुख्य बात यही है।

विदेशों व पाकिस्तान की गोद में बैठे खालिस्तानियों द्वारा किसान आन्दोलन के दौरान पूरी तरह से यह प्रचारित -प्रसारित करने का प्रयास किया गया कि भारत सरकार के कृषि कानून व भारत सरकार सहित समूचा हिन्दू समाज सिखों के विरुद्ध है। खालिस्तानियों ने सिखों को मुसलमानों के करीबी और हिन्दुओं से घ्रणा करने के लिए उकसाया । उन्हें हिन्दू धर्म से अलग बतलाने का प्रयास किया गया। जबकि सिख पन्थ का प्रादुर्भाव ही सनातन हिन्दू धर्म से हुआ था। ऐसे में सिख पन्थ को हिन्दू धर्म से अलग व मुस्लमानों से नत्थी करने की बेवकूफी कोई भी मूर्ख से मूर्ख इंसान भी नहीं कर सकता है।

दशम् गुरुओं ने अपनी तलवारें क्रूर इस्लामिक आक्रान्ताओं का प्रतिकार करने के लिए ही उठाई थीं। उनका बलिदान भी धर्मरक्षा व इस्लामी आक्रान्ताओं की बर्बरता के कारण ही हुआ था। सिख पंथ के पवित्र ग्रन्थों में सनातन धर्मग्रन्थों का मूल ही विविध स्वरुपों में विद्यमान है। लेकिन वर्तमान में पंजाब में षड्यन्त्रकारी शक्तियां अपनी कुत्सित धारणा को लेकर हिन्दू बनाम सिख का विष घोलने पर जुटी हुई हैं।

यदि हम गौर करें तो सन् चौरासी के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद से ही खालिस्तानी मूवमेंट खत्म हो चुका था। लेकिन अचानक किसान आन्दोलन के दौरान खालिस्तानी आतंकी भिण्डरा वाले के पोस्टर, उसकी छपी फोटो के टी- शर्ट पहने लोग सहित सभी विभाजनकारी तत्वों को चर्चा में लाने के प्रयास किए गए।

किसान परेड के नाम पर गणतन्त्र दिवस का हिंसक, सशस्त्र उत्पात और उसमें 'टूलकिट गैंग' की भूमिका किसी से भी छिपी नहीं है। उसी दौरान जिओ कम्पनी के टावरों में हुई तोड़फोड़ भी योजनाबद्ध तरीके की मुहिम ही थी। 
जब समझदार माने जाने वाले सिख नेता भी हिन्दू धर्म व समाज के खिलाफ सिखों को श्रेष्ठ सिध्द करने के दम्भ में नीचा दिखाने के लिए निम्नस्तरीय वक्तव्य देते हैं। तब उनकी सोच पर हँसी आती है और कहीं न कहीं यह बात भी स्पष्ट होती है कि ये सभी नेता उन्हीं तत्वों की विभाजनकारी धारणा से प्रभावित होते दिख रहे हैं।

विदेशों में रहने वाले सिख नेताओं की भाषा भी हिन्दूविरोधी चासनी से सराबोर व खालिस्तानियों के प्रति सहानुभूति से भरी देखने को मिल रही है। ऐसे में सिलसिलेवार ढंग से उभार में आ रहे ये सभी घटनाक्रम, एजेण्डे, वक्तव्य किसी बड़े षड्यन्त्र की रुपरेखा समझ आते हैं।

पंजाब के वर्तमान मुख्यमन्त्री चरणजीत सिंह चन्नी ईसाई मिशनरियों के धर्मान्तरण के विरुद्ध जांच करने की बजाय उनके तुष्टीकरण के लिए जुटे नजर आते हैं। अपने राजनैतिक लाभ के लिए उन्होंने बीते सत्रह दिसम्बर को ईसाई समुदाय के एक कार्यक्रम की अपने आधिकारिक ट्वीटर खाते से तस्वीरें साझा करते हुए लिखा कि "ईसा मसीह की जयन्ती के अवसर पर यूनिवर्सिटी स्तर पर बाइबिल की पढ़ाई के लिए  चेयर स्थापित करने का फैसला लिया गया है। ईसाइयों के कब्रिस्तान की समस्या का भी निराकरण होगा। हर जिले में कम्युनिटी हॉल बनाए जाएंगे।”

क्या चन्नी को या किसी अन्य सिख नेता को यह समझ नहीं आता है कि पंजाब में ईसाइयों की संख्या कैसे बढ़ने लगी है? ईसाई मिशनरियों के द्वारा लगातार होने वाले सिख समाज के धर्मान्तरण को रोकने की बजाय जब पंजाब के मुख्यमन्त्री धर्मान्तरण को प्रोत्साहित करते हुए नजर आ रहे हों, तब यह सिख पन्थ पर किसी खतरे से कम नहीं है। लेकिन न जाने इस ओर किसी की नजर क्यों नहीं जा रही है। 

ध्यातव्य हो कि भारत भूमि ही वह भूमि है जो अपनी सनातन संस्कृति से उत्पन्न मत-पन्थों को अपना मूल मानकर वही आदर भाव देती है, जिस प्रकार सनातन हिन्दू संस्कृति को। चाहे पाकिस्तान-अफगानिस्तान में सिखों पर होने वाले अत्याचारों का भारत सरकार व हिन्दूसमाज अपने ऊपर हमला मानकर उसका मुखर विरोध करता है। और जब अफगानिस्तान में तालिबानी शासन हो गया, तब अफगानिस्तान के सिखों को भारत ने अपना अभिन्न अङ्ग मानकर उनकी वापसी के साथ ही सम्मानजनक आश्रय स्थल उपलब्ध करवाया।

इतना ही नहीं 'पवित्र गुरू ग्रन्थ साहब' की आगवानी करते हुए एयरपोर्ट से केन्द्रीय मन्त्री हरदीप सिंह पुरी श्रध्दापूर्वक अपने सिर पर रखकर ले आए। बस,षड्यन्त्रकारी इसी भाव व विचारधारा को तोड़ना चाहते हैं,ताकि उनकी 'हिन्दू -सिख विरोध' की मुहिम चल पड़े।

अतएव इन समस्त घटनाक्रमों और पहलुओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार करते हुए समूचे समाज को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए कि धर्म या बेअदबी के नाम पर की जा रही किसी भी हत्या को जस्टिफाई करने का काम न किया जाए। और न ही इस आधार पर समूचे सिख समाज पर प्रश्नचिह्न उठाने व अनर्गल टिप्पणी को नजरअंदाज किया जाए।  वास्तव में यह सब बेहद सम्वेदनशील पहलू हैं, इसलिए इन पर त्वरित टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

भले ही यह निर्धारण न हो सके कि ये प्रायोजित हैं या गैर प्रायोजित हैं। लेकिन इन सबके सहारे विभाजनकारी तत्व पूरे प्रयास में लगे हैं कि इन समस्त घटनाक्रमों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर 'हिन्दू बनाम सिख' का एजेण्डा चलाया जा सके। सरकार, प्रशासन को विधिसम्मत ढंग से और देश- समाज के अग्रगण्य लोगों को इस दिशा में सशक्त पहल करनी चाहिए कि किसी भी तरह से ऐसा वातावरण निर्मित न होने पाए जो देश- समाज की समरसता को आघात पहुंचाने में कामयाब हो। क्योंकि 'हिन्दू बनाम सिख'  का बीज बोने वाले यही चाहते हैं कि उनकी यह फसल तैयार हो और भावनाओं को उकसाकर वे देश एवं समाज को अस्थिर करने के अपने षड्यन्त्रों में सफल बनें!!

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)

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