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हिन्दी कविता को फैशन में ला रहा है यह बंदा

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स्वरांगी साने

'उसे देखा है', 'किसे?'... 'मनीष गुप्ता को'... 'कौन मनीष गुप्ता?'... 'तुम मनीष गुप्ता को नहीं जानते?' 'ही इज न्यू बज इन द लिटरेरी वर्ल्ड'। हिन्दी साहित्य जगत में यह बंदा उसी अंग्रेजी के 'बज' के रूप में बनकर आया है। वह अंग्रेजी के जामे में हिन्दी कविता को बैठाकर युवाओं तक हिन्दी को ले जा रहा है। अपने लिए यह सुनने में उसे जरा भी बुरा नहीं लगता कि 'भई, तुम तो हिन्दी बेच रहे हो'... वह साफगोई से कहता है कि 'हां, मैं हिन्दी को बाजार दिला रहा हूं, मैं सेल्समैन हूं... मैं हिन्दी की मार्केटिंग कर रहा हूं'।
अब आप इस बंदे को गालियां दें या इसके लिए तालियां बजाएं, लेकिन सच तो यही है कि जो काम बड़े-बड़े दिग्गज नहीं कर पाए... वह काम यह बंदा अकेले कर रहा है। मनीष गुप्ता का कहना है, 'मेरे सिर पर माता-पिता, परिवार की कोई जवाबदारी नहीं है, सो मैंने यह जिम्मेदारी उठा ली है'...। 'अभी नहीं तो कभी नहीं' कहते हुए वह मुंबई से दिल्ली... हैदराबाद... पुणे... लखनऊ कहां-कहां नहीं जा रहा... सबसे कहता फिर रहा है कि 'जो घर फूंके आपना... चले हमारे साथ'।
 
पर यह मनीष गुप्ता कौन है? करता क्या है? अमेरिका से लौटा बंदा है... हिन्दी के लिए जी-जान से जुटा है... हिन्दी कविता को फैशन में ला रहा है।
 
आप कहेंगे बड़ा अजीब बंदा है, कविता क्या फैशन की चीज है?
 
वह पलटकर कहेगा, 'हां, जो फैशन में होता है उसे सब अपनाते हैं'।
 
आपकी आंखों के सामने एक सेकंड में सायरा बानो के सायरा कट से लेकर सोनम कपूर का ऊल-जुलूल फैशन तैर जाता है... मोहे पनघट पर... शास्त्रीय संगीत पर आधारित फिल्मी गीत से लेकर बेबी को... पसंद है, दौड़ पड़ता है।
 
हां, जो फैशन में है वह चलेगा... वही बिकेगा... आप उसकी बातों में आ जाते हैं। मानना पड़ेगा इस बंदे में यह हुनर तो है कि वह सबको अपनी बातों में ले लेता है... क्या यह बहकाता है?
 
फिर सवाल... और फिर जवाब... हां, बहकाता है लेकिन युवाओं में हिन्दी कविता के लिए क्रेज पैदा करते हुए। हिन्दी कविता को अपने यू-ट्यूब के कविता चैनल के जरिए प्रसिद्धि दे रहा है। आप फिर नाक-भौं सिकोड़ेंगे हिन्दी कविता... प्रसिद्ध हिन्दी कविता... मतलब वह कविता के नाम पर चुटकुले परोसने वाली मंचीय कविता... नहीं भाई... वह कविता जो पॉश की है... 'सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना...।'
 
वह सपनों को जिंदा करने की कोशिश में लगा है। फैज़ से लेकर नवीनतम बाबुशा कोहली तक की कविताओं के शूट्स उसके खजाने में हैं। नसीरुद्दीन शाह से लेकर विनोद पांडे और इम्तियाज अली-स्वरा भास्कर उसके साथ कविताओं पर बात करते हैं। इस तरह के 270 वीडियोज हैं... हिन्दी के साथ पंजाबी और उर्दू में भी। 
 
नसीरुद्दीन आम चूसते हुए गालिब का किस्सा सुनाते हैं... इन सारे वीडियो को लेकर वह शहर-शहर के कॉलेजों में भटकता है... बड़े मनुहार से कहता है, 'हिन्दी कविता देखो कितनी प्यारी है... ये हमारे लोकगीत, ये हमारे कलाकार... ये हमारे कविगण... देखो आप ही की तरह हैं... क्या उन्हें पसंद करोगे?'
 
मनीष गुप्ता को खुद बीसियों बार बरमूडा और टी-शर्ट में देखा जा सकता है... कैजुअल... और बड़े कैजुअली वह बड़ा काम कर रहा है। कॉलेजों में यूथ अंग्रेजी में बात करता है... तो वह अंग्रेजी में शुरू हो जाता है... उसका पासपोर्ट भी अमेरिकन है... सो इट इज इजी फॉर हिम... . अंग्रेजी से वह हिन्दी में आता है। 
 
जिन्हें लगता है अंग्रेजीदां ही समझदार होते हैं वह उन्हें उनकी भाषा में समझाता है... प्रवचन नहीं देता... फिर धीरे से वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी का एक वीडियो दिखाता है...। अशोकजी कहते हैं, 'हम अंग्रेजी कठिन है तब भी सीखते हैं, उर्दू में फारसी-अरबी के शब्द आते हैं तब भी सीखते हैं... पर हिन्दी कविता को कठिन मान उससे दूरी बना लेते हैं'। क्यों हिन्दी को सरल होना चाहिए... क्यों आप हिन्दी को समझना नहीं चाहते?
 
तो... मनीष गुप्ता के काम को एक पंक्ति में समझना हो तो वह युवाओं तक कविता पहुंचा रहा है... उनके धरातल तक आकर... युवाओं-सा जोश लेकर... उनके जैसे कपड़े और उनकी जैसी भाषा में बोलकर वह उन्हें अपना-सा करता है। फिर धीरे से उनका हाथ पकड़कर उन्हें उस सीढ़ी पर ले चलता है, जो हिन्दी कविता की है...। पिछले 3 सालों से वह यह काम कर रहा है... चुपचाप। बड़े-बड़ों की डांट खाते हुए... उनकी डांट को उनका लाड़ मानते हुए। 
 
वह युवाओं से कह रहा है, 'इंग्लिश इज अ न्यू नॉर्मल' तो भैया हिन्दी बोलो... हिन्दी को वह फैशन में ला रहा है। उसे पता है, जब समाज का क्रीमी तबका हिन्दी को अपना लेगा तो ठेला चलाने वाला... सिर पर बोझ उठाने वाला... और हर मेहनतकश भी टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने के बजाय गर्व से बिना बिदके हिन्दी ही बोलेगा...।
 
यह उल्टी गंगा बहाने जैसी कोशिश है... एक अकेले इंसान की!
 

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