गाय की रक्षा पर बहस क्यों ?

डॉ. सौरभ मालवीय
वैदिक काल से ही भारतीय संस्कृति में गाय का विशेष महत्व है। दुख की बात है कि भारतीय संस्कृति में जिस गाय को पूजनीय कहा गया है, आज उसी गाय को भूखा-प्यासा सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया है। लोग अपने घरों में कुत्ते तो पाल लेते हैं, लेकिन उनके पास गाय के नाम की एक रोटी तक नहीं है। छोटे गांव-कस्बों की बात तो दूर, देश की राजधानी दिल्ली में गाय को कूड़ा-कर्कट खाते हुए देखा जा सकता है। प्लास्टिक और पॉलिथीन खा लेने के कारण उनकी मृत्यु तक हो जाती है। भारतीय राजनीति में जाति, पंथ और धर्म से ऊपर होकर लोकतंत्र और पर्यावरण की भी चिंता होनी चाहिए। गाय की रक्षा, सुरक्षा बहस का मुद्दा आखि‍र क्यों बनाया जा रहा है? धार्मिक ग्रंथों में गाय को पूजनीय माना गया है। श्रीकृष्ण को गाय से विशेष लगाव था। उनकी प्रतिमाओं के साथ गाय देखा जा सकती है।
 
बिप्र धेनु सूर संत हित, लिन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार॥
 
अर्थात ब्राह्मण (प्रबुद्ध जन), धेनु (गाय), सुर (देवता), संत (सभ्य लोग) इनके लिए ही परमात्मा अवतरित होते हैं। वह परमात्मा स्वयं की इच्छा से निर्मित होते हैं और मायातीत, गुणातीत एवम् इन्द्रीयातीत, इसमें गाय तत्व इतना महत्वपूर्ण है कि वह सबका आश्रय है। गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास रहता है, इसलिए गाय का प्रत्येक अंग पूज्यनीय माना जाता है। गो सेवा करने से एक साथ 33 करोड़ देवता प्रसन्न होते हैं। गाय सरलता शुद्धता और सात्विकता की मूर्ति है। गऊ माता की पीठ में ब्रह्म, गले में विष्णु और मुख में रूद्र निवास करते हैं, मध्य भाग में सभी देवगण और रोम-रोम में सभी महार्षि बसते हैं। सभी दानों में गो दान सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। गाय को भारतीय मनीषा में माता केवल इसलिए नहीं कहा, कि हम उसका दूध पीते हैं। मां इसलिए भी नहीं कहा कि उसके बछड़े हमारे लिए कृषि कार्य में श्रेष्ठ रहते हैं। अपितु हमने मां इसलिए कहा है कि गाय की आंख का वात्सल्य सृष्टि के सभी प्राणियों की आंखों से अधिक आकर्षक होता है। अब तो मनोवैज्ञानिक भी इस गाय की आंखों और उसके वात्सल्य संवेदनाओं की महत्ता स्वीकारने लगे हैं। ऋषियों का ऐसा मनतव्य है कि गाय की आंखों में प्रीति पूर्ण ढंग से आंख डालकर देखने से सहज ध्यान फलित होता है। श्रीकृष्ण भगवान को भगवान बनाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका गायों की ही थी। स्वयं ऋषियों का यह अनुभव है कि गाय की संगति में रहने से तितिक्षा की प्राप्ति होती हैअ  गाय तितिक्षा की मूर्ति होती है, इस कारण गाय को धर्म की जननी कहते हैं। धर्मग्रंथों में सभी गाय की पूजा को महत्वपूर्ण बताया गया है। हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश और देवी पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है। परोपकारय दुहन्ति गाव: - अर्थात यह परोपकारिणी है। गाय की सेवा करने से से परम पुण्य की प्राप्ति होती है। मानव मन की कामनाओं को पूर्ण करने के कारण इसे कामधेनु कहा जाता है।
 
 ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:।
 प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नम: स्वाहा।।
ॐ सर्वदेवमये देवि लोकानां शुभनन्दिनि। मातर्ममाभिषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।
 
उल्लेखनीय यह भी है कि ज्योतिष शास्त्र में नव ग्रहों के अशुभ फल से मुक्ति पाने के लिए गाय से संबंधित उपाय ही बताए जाते जाते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार गाय ईश्वर का श्रेष्ठ उपहार है। भारतीय परंपरा के पूज्य पशुओं में गाय को सर्वोपरि माना जाता है। गाय से संबंधित गोपाष्टमी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह कार्तिक शुक्ल की अष्टमी को मनाया जाता है, इस कारण इसका नाम गोपाष्टमी पड़ा. इस पावन पर्व पर गौ-माता का पूजन किया जाता है। गाय की परिक्रमा कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। गोवर्धन के दिन गोबर को जलाकर उसकी पूजा और परिक्रमा की जाती है। धार्मिक प्रवृति के बहुत लोग प्रतिदिन गाय की पूजा करते हैं। भोजन के समय पहली रोटी गाय के लिए निकालने की भी परंपरा है। भारत में प्राचीन काल से ही गाय का विशेष महत्व रहा है। मानव जाति की समृद्धि को गौ-वंश की समृद्धि की दृष्टि से जोड़ा जाता हैअ  जिसके पास जितनी अधिक गायें होती थीं, उसे समाज में उतना ही समृद्ध माना जाता था। प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं की अपनी गौशालाएं होती थीं, जिनकी व्यवस्था वे स्वयं देखते थे। विजय प्राप्त होने, कन्याओं के विवाह तथा अन्य मंगल उत्सवों पर गाय उपहार स्वरूप या दान स्वरूप दी जाती थीं। गोहत्या को पापा माना जाता है, जिनका उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है।
 
गोहत्यां ब्रह्महत्यां च करोति ह्यतिदेशिकीम्।
यो हि गच्छत्यगम्यां च यः स्त्रीहत्यां करोति च॥ २३ ॥
भिक्षुहत्यां महापापी भ्रूणहत्यां च भारते।
कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥
 
गाय संसार में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में कुल गायों की संख्या 13 खरब है। गाय से उत्तम प्रकार का दूध प्राप्त होता है, जो मां के दूध के समान ही माना जाता है। जिन बच्चों को किसी कारण वश उनकी माता का दूध नहीं मिलता, उन्हें गाय का दूध पिलाया जाता है। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में गाय की 30 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं, इनमें सायवाल जाति, सिंधी, कांकरेज, मालवी, नागौरी, थरपारकर, पवांर, भगनाड़ी, दज्जल, गावलाव, हरियाना, अंगोल या नीलोर और राठ, गीर, देवनी, नि‍माड़ी, अमृतमहल, हल्लीकर, बरगूर, बालमबादी, वत्सप्रधान, कंगायम, कृष्णवल्ली आदि प्रजातियों की गाय सम्मिलित हैं। गाय के शरीर में सूर्य की गो-किरण शोषित करने की अद्भुत शक्ति होती है, इसलिए गाय का दूध अमृत के समान माना जाता है। गाय के दूध से बने घी-मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता है। गाय का गोबर उपले बनाने के काम आता है, जो अच्छा ईंधन है। गोबर से जैविक खाद भी बनाई जाती हैअ  इसके मूत्र से भी कई रोगों का उपचार किया जा रहा है। वास्तव में गाय को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की बजाए राजनीति से जोड़ दिया गया है, जिसके कारण इसे जबरन बहस का विषय बना दिया गया। गाय सबके लिए उपयोगी है इसलिए गाय पर बहस करने की बजाए इसके संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह सड़कों पर विचरती गायों के लिए गौशालाओं का निर्माण कराए।
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