स्त्रियों का अपने पति और परिवार के लिए विशेष रूप से चिंता करने के स्वभाव के कारण ही इन सुहाग चिन्हों को पति और परिवार की भलाई करने वाले कवच का नाम दिया गया और धीरे-धीरे विवाहित स्त्रियों द्वारा इन्हें धारण करने की परंपरा बन गई। तभी तो भारतीय संस्कृति में सोलह श्रृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग माना गया है। ऋग्वेद में सौभाग्य के लिए किए जा रहे सोलह श्रृंगारों के बारे में बताया गया है।
सुहाग चिन्हों के समर्थन में कई वैज्ञानिक तथ्य पेश किये जाते हैं और इन्हें स्त्री के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सभी सुहाग चिन्हों का संबंध स्त्री के स्वास्थ्य और जीवन से है। लेकिन आज की आधुनिक महिला किसी भी काम को करने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर जांचकर ही करती है। अब जब स्त्री और पुरुष के समान रूप से शिक्षित और सक्षम होने के विचारों पर बल दिया जाता है, तो विवाह के प्रतीक चिन्हों को धारण करना या ना करना व्यक्तिगत पसंद पर ही निर्भर है। ऐसा कहा जाता है कि सभी सुहाग चिन्हों का संबंध स्त्री के स्वास्थ्य और जीवन से है।
शादी का जोड़ा
दुल्हन के लिए शादी का जोड़ा चुनते समय सुंदर और चमकदार रंगों को प्राथमिकता दी जाती है, दुल्हन के लिए लाल रंग का शादी का जोड़ा शुभ व महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लाल रंग शुभ, मंगल व सौभाग्य का प्रतीक है, इसीलिए शुभ कार्यों में लाल रंग का सिंदूर, कुमकुम, शादी का जोड़ा आदि का प्रयोग किया जाता है। विज्ञान के अनुसार, लाल रंग शक्तिशाली व प्रभावशाली है, इसके उपयोग से एकाग्रता बनी रहती है, लाल रंग भावनाओं को नियंत्रित कर के स्थिरता प्रदान करता है। ये प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।
सिंदूर
सिंदूर महिलाओं के सौभाग्यवती होने का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है, शादी के समय दूल्हा, दुल्हन की मांग इससे भरता है। अपने पति की लम्बी उम्र के लिए सौभाग्यवती महिलाएं इसे अपनी मांग में सजाये रखतीं हैं। सिन्दूर मस्तिष्क के मध्य में स्थित सह्स्राहार चक्र को सक्रिय रखता है।उसे एकाग्र कर सही सूझ बूझ देता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर महिलाओं के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। सिंदूर महिला के शारीरिक तापमान को नियंत्रित कर उसे ठंडक देता है और शांत रखता है। चूंकि इसे सर के बिलकुल मध्य में लगाया जाता है, इसलिए इससे दिमाग तेज और सक्रिय बनता है। सिन्दूर में पारा भी होता है, इसलिए इससे मस्तिष्क को शीतलता मिलती है और तनाव से राहत मिलती है।
मांगटीका/ बोर/ रखड़ी
मांगटीका दुल्हन को मांग में पहनाया जाने वाला ज़ेवर है यह सोने चांदी, कुंदन, जरकन, हीरे, मोती आदि से बनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, मांगटीका महिला के यश व सौभाग्य का प्रतीक है। मांगटीका यह दर्शाता है कि महिला को अपने से जुड़े लोगों का हमेशा आदर करना है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मांगटीका महिलाओं के शारीरिक तापमान को नियंत्रित करता है, जिससे उनकी सूझबूझ व निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
बिंदी
बिंदी दोनों भौहों के बीच माथे पर लगाया जानेवाला लाल कुमकुम का चक्र होता है, जो महिला के श्रृंगार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बिंदी को त्रिनेत्र का प्रतीक माना गया है। दो नेत्रों को सूर्य व चंद्रमा माना गया है, जो वर्तमान व भूतकाल देखते हैं तथा बिंदी त्रिनेत्र के प्रतीक के रूप में भविष्य में आनेवाले संकेतों की ओर इशारा करती है। संस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। विज्ञान के अनुसार, बिंदी लगाने से महिला का आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है और वह आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखने में सहायक होता है। यानी बिंदी चक्र को संतुलित कर दुल्हन को ऊर्जावान बनाए रखने में सहायक होती है। योग साधना में भौहों के बीचोंबीच के स्थान पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। यह स्थान आज्ञाचक्र के नाम से जाना जाता है। यहां ध्यान केन्द्रित करने से बुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है और मानसिक संतुलन ठीक बना रहता है। बिंदी लगाने से यही लाभ प्राप्त होते हैं।
काजल
काजल आंखों में लगाई जानेवाली काले रंग की स्याही को कहते हैं। काजल महिला की आंखों व रूप को निखारता है। मान्यताओं के अनुसार, काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नज़र का कुप्रभाव नहीं पड़ता काजल से आंखों से संबंधित कई रोगों से बचाव होता है। काजल से भरी आंखें स्त्री के हृदय के प्यार व कोमलता को दर्शाती हैं। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, काजल आंखों को ठंडक देता है।
नाक की लौंग या नथ
नाक की लौंग यानि नोज पिन या नथ पहनने से श्वसन तंत्र सुचारू रूप से काम करता है। विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि में चारों ओर सात फेरे लेने के बाद देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है। उत्तर भारतीय स्त्रियां आमतौर पर नाक के बायीं ओर ही आभूषण पहनती है, जबकि दक्षिण भारत में नाक के दोनों ओर नाक के बीच के हिस्से में भी छोटी-सी नोज रिंग पहनी जाती है, जिसे बुलाक कहा जाता है।
कर्णफूल/ ईयररिंग्स / झुमके
कर्णफूल यानी ईयररिंग्स-झुमके, कुंडल, गोल, लंबे आदि आकार व डिज़ाइन में पाए जाते हैं। आमतौर पर महिलाएं सोने, चांदी, कुंदन आदि धातु से बने ईयररिंग्स पहनती हैं। मान्यताओं के अनुसार, कर्णफूल यानी ईयररिंग्स महिला के स्वास्थ्य से सीधा संबंध रखते हैं। ये महिला के चेहरे की ख़ूबसूरती को निखारते हैं। इसके बिना महिला का श्रृंगार अधूरा रहता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार हमारे कर्णपाली (ईयरलोब) पर बहुत से एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जिन पर सही दबाव दिया जाए, तो माहवारी के दिनों में होनेवाले दर्द से राहत मिलती है।
ईयररिंग्स उन्हीं प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव डालते हैं। साथ ही ये किडनी और मूत्राशय (ब्लैडर) को भी स्वस्थ बनाए रखते हैं।इनसे एक्यूप्रेशर होता है। कान की नसें स्त्री की नाभि से लेकर पैर के तलवों के बीच के सभी अंगों को प्रभावित करती हैं। इसलिए कान में छेद कराके उसमें धातु (विशेषकर सोना) धारण करने से स्त्रियों को पीरियड्स से संबंधित समस्याएं नहीं होती हैं। सोने के ईयर रिंग्स से शारीरिक उर्जा और बल का विकास होता है।
मंगलसूत्र / हार
मंगलसूत्र एक ऐसा सूत्र है, जो शादी के समय वर द्वारा वधू के गले में बांधा जाता है और उसके बाद जब तक महिला सौभाग्यवती रहती है, तब तक वह निरंतर मंगलसूत्र पहनती है। मंगलसूत्र पति-पत्नी को ज़िंदगीभर एकसूत्र में बांधे रखता है। ऐसी मान्यता है कि मंगलसूत्र सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित कर महिला के दिमाग़ और मन को शांत रखता है। मंगलसूत्र जितना लंबा होगा और हृदय के पास होगा वह उतना ही फ़ायदेमंद होगा। मंगलसूत्र के काले मोती महिला की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मज़बूत करते हैं।
वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, मंगलसूत्र सोने से निर्मित होता है और सोना शरीर में बल व ओज बढ़ानेवाली धातु है, इसलिए मंगलसूत्र शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकता है। हार पहनने के पीछे स्वास्थ्यगत कारण हैं। गले और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ दबाव बिंदु ऐसे होते हैं जिनसे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। मंगलसूत्र में लगे धातु जैसे सोना, मोती आदि कई तरह के स्वास्थ्य लाभ कराते हैं। मोती और चांदी मस्तिष्क को शीतलता देते हैं। सोने से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंगलसूत्र से ब्लड सर्कुलेशन सुचारू रूप से होता है और ब्लड प्रेशर भी ठीक रहता है।
चूड़ियां
चूड़ियां हर सुहागन का सबसे महत्वपूर्ण श्रृंगार हैं। महिलाओं के लिए कांच, लाख, सोने, चांदी की चूड़ियां सबसे महत्वपूर्ण मानी गई हैं। मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियां पति-पत्नी के भाग्य और संपन्नता की प्रतीक हैं। यह भी मान्यता है कि महिलाओं को पति की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमेशा चूड़ी पहनने की सलाह दी जाती है। चूड़ियों का सीधा संबंध चंद्रमा से भी माना जाता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियों से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि महिलाओं की हड्डियों को मज़बूत करने में सहायक होती है। महिलाओं के रक्त के परिसंचरण में भी चूड़ियां सहायक होती हैं।चूड़ियों से होने वाली मीठी ध्वनि से नेगेटिव एनर्जी घर से दूर होती है। चूड़ियों से होने वाली ध्वनि के प्रभाव से कई तरह की बीमारियां भी नहीं होती हैं।
गजरा
गजरा एक ख़ूबसूरत व प्राकृतिक शृंगार है। गजरा चमेली के सुंगंधित फूलों से बनाया जाता है और इसे महिलाएं बालों में सजाती हैं, मान्यताओं के अनुसार, गजरा दुल्हन को धैर्य व ताज़गी देता है। शादी के समय दुल्हन के मन में कई तरह के विचार आते हैं, गजरा उन्हीं विचारों से उसे दूर रखता है और ताज़गी देता है। विज्ञान के अनुसार, चमेली के फूलों की महक हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है।चमेली की ख़ुशबू तनाव को दूर करने में सबसे ज़्यादा सहायक होती है।बालों में गजरा लगाने से घर सुगन्धित रहता है। फूलों की खुशबू से स्त्री का मन भी प्रफुल्लित रहता है।
मेहंदी
मेहंदी लगाने का शौक लगभग सभी महिलाओं को होता है। लड़की कुंआरी हो या शादीशुदा हर महिला मेहंदी लगाने के मौ़के तलाशती रहती है। सोलह श्रृंगार में मेहंदी महत्वपूर्ण मानी गई है। मान्यताओं के अनुसार, मेहंदी का गहरा रंग पति-पत्नी के बीच के गहरे प्रेम से संबंध रखता है। मेहंदी का रंग जितना लाल और गहरा होता है, पति-पत्नी के बीच प्रेम उतना ही गहरा होता है।
वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मेहंदी दुल्हन को तनाव से दूर रहने में सहायता करती है। मेहंदी की ठंडक और ख़ुशबू दुल्हन को ख़ुश व ऊर्जावान बनाए रखती है।मेहंदी लगाने से एक महिला के हाथ ज्यादा सुंदर तो लगने ही लगते हैं, लेकिन इससे हार्मोन पर भी प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर को ठंडक मिलती है और दिमाग भी शांत होता है।
बाजूबंद
ये बाजू के ऊपरी हिस्से में पहना जाता है। बाजूबंद सोने, चांदी, कुंदन या अन्य मूल्यवान धातु या पत्थर से बना होता है। मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद महिलाओं के शरीर में ताक़त बनाए रखने व पूरे शरीर में उसका संचार करने में सहायक होता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद बाजू पर सही मात्रा में दबाव डालकर रक्तसंचार बढ़ाने में सहायता करता है।
अंगूठी
शादी की सबसे पहली रस्म अंगूठी से ही शुरू की जाती है, जिसमें लड़का-लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाकर सगाई की रस्म पूरी करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, अंगूठी पति-पत्नी के प्रेम की प्रतीक होती है, इसे पहनने से पति-पत्नी के हृदय में एक-दूसरे के लिए सदैव प्रेम बना रहता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, अनामिका उंगली की नसें सीधे हृदय व दिमाग़ से जुड़ी होती हैं, इन पर प्रेशर पड़ने से दिल व दिमाग़ स्वस्थ रहता है।
शादी के पहले मंगनी या सगाई की रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है। सीता का हरण करके रावण ने जब सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के माध्यम से सीता जी को अपना संदेश भेजा था। तब स्मृति चिन्ह के रूप में उन्होंनें अपनी अंगूठी हनुमान जी को दी थी।
कमरबंद
कमरबंद धातु व अलग-अलग तरह के मूल्यवान पत्थरों से मिलकर बना होता है। कमरबंद नाभि के ऊपरी हिस्से में बांधा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, महिला के लिए कमरबंद बहुत आवश्यक है। चांदी का कमरबंद महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं को माहवारी तथा गर्भावस्था में होनेवाले सभी तरह के दर्द से राहत मिलती है।
पायल
पैरों में पहनी जानेवाली पायल चांदी की ही सबसे उत्तम व शुभ मानी जाती है। पायल कभी भी सोने की नहीं होनी चाहिए। शादी के समय मामा द्वारा दुल्हन के पैरों में पायल पहनाई जाती है या ससुराल से देवर की तरफ़ से यह तोहफ़ा अपनी भाभी के लिए भेजा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, महिला के पैरों में पायल संपन्नता की प्रतीक होती है। घर की बहू को घर की लक्ष्मी माना गया है, इसी कारण घर में संपन्नता बनाए रखने के लिए महिला को पायल पहनाई जाती है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी की पायल महिला को जोड़ों व हड्डियों के दर्द से राहत देती है।
साथ ही पायल के घुंघरू से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है।इसके साथ-साथ पीठ, और कमर से नीचे के अंगों से संबंधित रोगों से निजात मिलता है। पायल पहनने से हड्डियां भी मजबूत होती हैं। स्वास्थ्य लाभ के लिए ये जरूरी है कि आपकी पायल चांदी की ही हो। पैरों में पहने जाने वाले आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी से ही बने होते हैं। हिंदू धर्म में सोना को पवित्र धातु का स्थान प्राप्त है, जिससे बने मुकुट देवी-देवता धारण करते हैं और ऐसी मान्यता है कि पैरों में सोना पहनने से धन की देवी-लक्ष्मी का अपमान होता है।
बिछिया
हर वैवाहिक महिला पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनती है। बिछिया भी चांदी की ही सबसे शुभ मानी गई है। महिलाओं के लिए पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनना शुभ व आवश्यक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि बिछिया पहनने से महिलाओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और घर में संपन्नता बनी रहती है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं के पैरों की उंगलियों की नसें उनके गर्भाशय से जुड़ी होती हैं, बिछिया पहनने से उन्हें गर्भावस्था व गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं से राहत मिलती है। बिछिया पहनने से महिलाओं का ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है।
बिछिया से भी एक्यूप्रेशर होता है और स्त्री का शरीर स्वस्थ रहता है, इससे हृदय से संबंधित परेशानियां नहीं होती हैं। मासिक धर्म से संबंधित समस्याओं से भी निजात मिलती है। गर्भधारण में परेशानी नहीं होती है। शादी में फेरों के वक्त लड़की जब सिलबट्टे पर पैर रखती है, तो उसकी भाभी उसके पैरों में बिछुआ पहनाती है। यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन शादी के बाद आने वाली सभी समस्याओं का हिम्मत के साथ मुकाबला करेगी।
इत्र
सुगंध ख़ासकर गुलाब के फूल की सुगंध सीधे रूप से प्रेम से संबंध रखती है। सुगंध को प्रेम का प्रतीक माना गया है और यह पति-पत्नी को एक दूसरे की ओर आकर्षित करती है। सौभाग्यवती महिला के लिए गुलाब की सुगंध सबसे उत्तम मानी जाती है। गुलाब प्रेम का प्रतीक है, इसलिए गुलाब का इत्र लगाने से पति हमेशा पत्नी की ओर आकर्षित रहता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, इत्र मानसिक तनाव दूरकर तरोताज़ा रखता है। गुलाब की सुगंध दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इत्र को नर्व पॉइंट्स पर लगाना चाहिए।
वर्तमान सन्दर्भों में इन श्रृंगार के मायने थोड़े बदल गए हैं। जागरूक व शौकीन लड़कियां, युवतियां, महिलाएं, स्त्रियों ने अपनी सुविधा व पसंद के अनुसार सज-धज कर रहना शुरू कर दिया है।ये समय-समय पर प्रासंगिक तरीकों से पहने या सजाए जाते हैं।
इनके साथ मेकअप व शारीरिक बनाव श्रृंगार भी अपनी अपनी रूचि के हिसाब से बदल गए हैं। फैशन व समय ने इनमें खूब वक्ती बदलाव ला दिए हैं। फिर भी बुनियादी तौर पर पर यही साजो-सामान, आभूषण, बनाव सिंगार अपना महत्व कभी न खोएंगे क्योंकि श्रृंगार हम महिलाओं का जन्मसिद्ध अधिकार जो है।