Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

परीक्षा के दिनों में याद आते हैं भोले बचपन के भोले भरम...

हमें फॉलो करें childhood memories
webdunia

डॉ. छाया मंगल मिश्र

childhood memories


ये जो रेशम सी नर्म,नाजुक, रेशों वाली चीज है ना- मेरे 'की बोर्ड'पर हवा में उड़ती-उड़ती आ कर थक कर खुद ही बैठ गई...क्यों कि किसी बच्चे ने उसे अपनी नन्ही सी मुट्ठी में कैद किया ही नहीं,कि वो पास होगा कि फेल। किसी किशोरी ने भी नहीं कि एक तरफा प्यार फलेगा या नहीं और न किसी मेहबूबा ने कि उसे उसका प्यार पति के रुप में मिलेगा या नहीं??
 
ऐसे ही हुआ करते थे हम। जैसे ही यह दिखाई देती हम दौड़ लगा देते उसी दिशा में इच्छा पूर्ति का अंदेशा लगाने। दोनों हाथों के बीच पूरी नज़ाकत के साथ ऐसे सहेजते कि रेशे बिल्कुल बिखरने न पाएं। यही नहीं किताबों में विद्या रानी,मोर पंख,सांप केंचुली, भगवान के चरणों में चढ़ाया फूल, भस्मी,परिंदों के रंग बिरंगे पर, भगवान की छोटी सी तस्वीर,कंकू-सिंदूर की पुड़िया, तुलसी माता के पत्ते मंजरी के साथ ... 
 
कहां गया वो बचपन..वो परीक्षा के दिन...जब केवल पास होने पर मिठाई बंट जाया करतीं थीं और मीठे-मीठे ये भ्रम कि इन्हे प्यार से सहेज कर रखने से हम अच्छे नंबरों से पास हो जाएंगे। मजा और दुगना हो जाता था जब गिलहरी की पूंछ पर हाथ फेरने से पास होने की पूरी संभावना बढ़ जाती है ऐसा मानते और हाथ फेरने का मौका लपकने के लिए दिन रात घात लगाए बैठते। बड़े भाई बहन भी मजे लेते और तो और यदि आप पढ़ाई कर रहे हों और उस समय जो भी पढ़ रहे हो और गधा महाराज रेंक दिए हैं तो अब तो उसका परीक्षा में पूछा जाना निश्चित हो जाता था। 
 
और जोरदार रट्टा लगना शुरू और थोड़े जो बड़े भाई बहन रहे उनमें बहनें और मां घोर आस्थावान जो रहा करतीं वो तो गणपति बप्पा को पूरा का पूरा एक तांबे के लोटे में पानी भर कर डुबो डालतीं जब तक कि परीक्षा पूरी न हो जाए। पेड़ से गिरते फूल-पत्तों को झेलना,गेंहु की भरी मुट्ठी से सम-विषम निकालना और दादी-दादा, नाना-नानी और घर के बड़ों या साथियों के साथ रामायण की प्रश्न समाधान पेज खोल कर हर नवां अक्षर लिखना और दोहा बनने पर ढूंढ कर फल समाधान पढ़ना।
 
और अति होती तो माताजी की चौकी,मन्नत डोरा,नग अंगूठी भी चल निकलती और फिर ज्योतिष शास्त्र और पत्रिका दिखाने के दौर भी चला करते।पर हां ये सारे कर्म-कांड उम्र, हैसियत, औकात पर निर्भर करते। उस समय ट्यूशन लगाना बहुत बुरा माना जाता था याने के सीधे से पढ़ाई में कमजोर सिद्ध होना।
 
कितना कुछ बदल गया है... परीक्षा 'एक्जाम' में बदल गई,नंबर 'मार्क्स' में और फिर 'ग्रेड' में। किताबों के जंगल में बचपन कैद हो गया। सबसे अच्छा जानवर बनने की प्रक्रिया में शामिल। मशीन सा... नोटों की गड्डियों से उनका ऑइल-पानी, सर्विसिंग। 'डेप्रिसिएशन'पर किसी का भी ध्यान नहीं।
 
जबसे किताबों से ये नायाब खजाने लुट गए ना तभी से बचपन कंगाल हो गया.. और नष्ट हो गए सहेजने के तौर-तरीके। कुछ भी तो नहीं बचा। 'परफेक्ट'बनाने के चक्कर में कहीं का नहीं छोड़ा। स्कूल में बढ़ती क्रूर घटनाओं में वृद्धि होती जा रही है। फूल से कोमल बच्चे खून की होली का शौक रखने लगे। क्यों कि हम ये जो भ्रमों के भंवरजाल में बड़े हुए थे ना वो हमें कहीं न कहीं गहरे बहुत ही गहरे संवेदनशील का पाठ पढ़ाया करते थे भले ही चीजें सजीव हो या निर्जीव। आस्था का पालन करना सिखा सकारात्मक सोच और ऊर्जा के समीकरण समझाते। जिंदगी जीने के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं समरसता और सम्मान की भावना और कद्र करने का हुनर सिखाते।
 
और अब ... तैयार होते ये 'कूल डूड' व्यवहारिक जिंदगी से कोसों दूर बैल-घोडों-गधों की तरहा मल्टी नेशनल कंपनी की गाड़ी में जुते मोटी रकम के पैकेज के चाबुक की मार से बेतहाशा भाग रहे ...बस...भाग रहे हैं। और जो नहीं बन पा रहे इस दौड़ का हिस्सा वो या तो झूल रहे हैं...या झूम रहे हैं...या सो रहे हैं।
 
न न न न..
 
झूल रहे... पर झूला नहीं, फांसी के फंदे पर,झूम रहे....पर खुशी से नहीं नशे में गम भुलाने और सो रहे पर चैन की नींद नहीं...चिर निद्रा में लीन...
 
क्या करते ...क्योंकि वे तो जिए ही नहीं...समय काटा..इन प्यारे भ्रमों के भंवरजाल का भंवरा बन जिंदगी के फूल का रस हमने उन्हें चखने ही कहां दिया। और क्या बचा ...सिर्फ यादें और अफसोस...
 
सब कुछ 'इलॉजिकल' ही सही पर जिंदगी से प्यार करना तो पक्का सिखाता था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रंगपंचमी 2020 : 5 तत्वों को सक्रिय करता है रंगों का यह पर्व, देवताओं को आमंत्रित करते हैं रंग-कण