Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

डीपीएस बस हादसा : बहुत कुछ है जिनसे मैं डरता हूं मां....

हमें फॉलो करें डीपीएस बस हादसा : बहुत कुछ है जिनसे मैं डरता हूं मां....
webdunia

स्मृति आदित्य

- स्मृति आदित्य

कुनमुनाती सुबह में कड़कड़ाती ठंड में मां का कलेजा कांपता है अपने फूल को उठा कर तैयार करने में, लेकिन यह इस जिंदगी की कैसी कठोर मजबूरी है कि भविष्य के लिए ना जाने कितने समझौते करने ही पड़ते हैं। सुबह-सुबह सिर्फ बच्चा ही नहीं अलसाता है, उसका बस्ता, उसकी किताबें, उसकी प्रोजेक्ट फाइल, उसका लंच बॉक्स, वॉटर बॉटल सब थोड़ा-थोड़ा अलसाते हैं.... आज ना जाएं तो . .. आखिर ऐसा क्या होगा एक दिन में... जो मिस हो जाएगा....

फिर याद आते हैं दोस्तों को किए वादे,  हंसी और ठहाके, दिन भर की मस्तियां, चुहलबाजियां और फिर देखते ही देखते यह आलस उमंग और उत्साह में बदल जाता है ... और मां अपने नौनिहाल को देखकर धन्य हो जाती है... उसकी सुरक्षा की कामना के शब्द फूल उसके होंठों पर बुदबुदाते हैं ... अस्त-व्यस्त बालों को समेट कर क्लचर लगाती है, गुड़ीमुड़ी गाऊन पर चुन्नी डालती है और हाथ पकड़ कर बस तक पंहुचाने की रोजमर्रा की जिम्मेदारी निभाते हुए वह सौंप देती है अपने कलेजे के टुकड़े को उस अनजान सारथी के हवाले...

हर बार उसका मन बोलता है कहे एक बार भैया गाड़ी धीमे चलाना पर फिर याद आता है इतनी सारी मां अपने बच्चों को पहुंचाने आई है कहीं बस वही तो ओवर प्रोटेक्टिव नहीं है....सकुचा कर चुप लगा जाती है पर कहना चाहती है बार-बार .. भैया सुरक्षा से जाना प्लीज, बच्चे होशियारी से रहना... सुनो हमारे बच्चों को हिफाजत से रखना.... और सुनो ... सुनो ..सुनो... पर बस फर्राटे से दौड़ लगा जाती है और वह अपने रोज के कामों में मसरूफ होते हुए भी आंखों की कोर को भीगी हुई पाती है.. 
 
मां है ना.... वही जानती है कि रूई से कोमल इस कच्चे गुलाबी बच्चे को कैसे जतन से उसने पाला है, कैसे बड़ा किया है.. जाने कितनी मनुहार के बाद एक-एक निवाला खिलाकर जिसे इतना बड़ा किया है कि नन्हे कदम चलकर स्कूल तक जा सके .....  और अचानक पता चलता है इसी स्कूल में बैठे हैं उसके फूलों को कुचल देने वाले, मसल देने वाले... कहीं रेयान के 'प्रद्युम्न' की तरह तो कहीं डीपीएस की हत्यारी बस की तरह....
 
बस एक पल की बात होती है और सबकुछ खत्म.... भर्राए कंठ से मेरी सखी कह रही थी... दीदी, यह गति के शौकीन नहीं जानते कि वह किसी दहशतगर्द से कम नहीं है.. आतंकवादी हैं वह.. जिनका पल भर का मजा ना जाने कितने लोगों के लिए जीवन भर की सजा बन जाता है....और भावनाओं का सैलाब उमड़-घुमड़ कर भी थम ही जाता है . ..बस बचे रह जाते हैं सिसकते बस्ते, बिलखते लंच बॉक्स, आंसुओं से भरी वॉटर बॉटल, खून से भरे जूते, टाई, मोजे, कॉपी, प्रोजेक्ट फाइल.... खूब सारी आवाजें.... मम्मा आज स्कूल नहीं जाना है, मम्मा आज यह खाना है, मम्मा आज फिल्म चलेंगे ना, मम्मा मुझे बर्थडे पर यह चाहिए... मम्मा.... मम्मा ... मम्मा... चुप हो जाओ.... उफ कितना शोर करते हो.... पर आज मां कह रही है ... सुनो ... बोलों... चलो, उठो ... पर यहां बस क्रंदन है, चित्कार है.....‍ विलाप है वह किलकारियां कहीं नहीं है ...शोर अब शांत हो चुका है.... मां अपनी गर्भावस्था के पहले दिन को याद कर रही है....नन्ही सी आहट, नन्ही सी मुस्कान, नन्ही-नन्ही अंगुलियां.... 
 
याद आता है बच्चे का बांहों में दुबक जाना और फुसफुसाना... जाने क्यों, जाने किस-किस से मैं डरता/डरती हूं मां....मां भी कहती है तुमसे ज्यादा मैं डरती हूं मेरे बच्चे... और एक दिन यह डर इस तरह सच साबित होता है... .सबकुछ खत्म हो जाता है.. कुछ नहीं बचता... बचती है बच्चे की आंखें 'दान' होने के बाद .. . यह देखने के लिए कि मां रो तो नहीं रही....  


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ओम पुरी भारतीय सिनेमा के एक मंझे हुए कलाकार थे