कोरोना साइड इफेक्ट : घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों ने किया देश भर को चिंति‍त

नेहा रेड्डी
कोरोना... कोविड 19, एक अनजानी बीमारी, एक बड़ी सी महामारी... देखते ही देखते इस समस्या ने विकराल रूप ले लिया और विश्व भर में सुरक्षा और बचाव के लिए जतन किए जाने लगे। जब तक कोई इलाज नहीं मिल जाता तब तक यह तय किया गया कि लॉकडाउन लगाया जाए। सोचा यह गया कि सभी घर में ही सुरक्षित रहे। लेकिन बीमारी से सुरक्षा के लिए अपनाए इस विचार के साथ बंधी थी एक  असुरक्षा जिस पर किसी का ध्यान तब तक नहीं गया जब तक कि भयावह आंकड़ों ने दस्तक नहीं दे दी .. और यह असुरक्षा थी घरेलू हिंसा की....घर में होने वाले उत्पीड़न की...
 
जैसे ही लॉकडाउन के पहले हफ्ते में घरेलू हिंसा के मामलों का आंकड़ा बढ़ता नजर आया देश और विदेश में नए सिरे से इस पर विचार करने की जरूरत आन पड़ी। घरेलू हिंसा का सबसे बड़ा कारण यह नजर आया कि अब तक जिंदगी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी रिश्तों को करीब आने का समय नहीं था... एक जद्दोजहद में सब लगे थे .. अचानक से सब थम गया, सब रूक गया.. सब एक साथ रहने को बाध्य हो गए... ऐसे में बुराई, लत और आदतों ने भी घर पर ही डेरा जमाया और परिणाम यह निकला कि लगातार साथ रहने पर बातें बढ़कर बहस में बदली, बहस आगे चल कर हाथापाई और हिंसा में तब्दिल हो गई। सबसे ज्यादा इसका शिकार हुए बच्चे और महिलाएं ...
 
वास्तव में सहन शक्ति ने जवाब देना शुरू किया और कोरोना के डर के अलावा नौकरी के जाने, रोजगार के रास्ते बंद होने और धन का आगमन रूकने से एक साथ अवसाद और विषाद ने मन पर कब्जा कर लिया।

नतीजतन घरेलू हिंसा ने विकराल रूप धारण करना शुरू कर दिया। भारत में यह स्थिति अधिक भयावह होने लगी....लगातार आती खबरों ने सबको विचलित कर दिया....हमने इस सबंध में कुछ जिम्मेदार, प्रभावित, पीड़ित और पदों पर आसीन लोगों से बात की....आइए जानते हैं इसकी पहली कड़ी में कि Covid 19 के कारण बढ़ी घरेलू हिंसा के मुख्य कारण क्या रहे हैं?

 
संगीता शर्मा, महिला आयोग सदस्य
 
कोविड 19 के दौरान बढ़ी घरेलू हिंसा का मुख्य कारण यह है कि लॉकडाउन के दौरान परिवार घरों में कैद रहे हैं। ऐसे में घर के कामकाज को लेकर परिवार के सदस्यों में आपसी मतभेद रहे हैं। घर के कामों को लेकर आपसी लड़ाई इसका एक प्रमुख कारण रही है।
 
वहीं कोविड-19 के दौर में पूरे समय घर में रहने पर पुराने विवाद भी उभरकर सामने आए हैं। ऐसे में पुराने विवादों को लेकर भी काफी बहस हुई है। लॉकडाउन के फुरसत के पलों में पुराने विवाद दोहराए गए हैं। घरेलू हिंसा के जो विवाद सुलझ चुके थे, वो लॉकडाउन के दौरान फिर से सामने आए और उन पर वापस से चर्चा शुरू हुई तो यह भी कोविड 19 में घरेलू हिंसा का मुख्य कारण रहा है।
 
जिन परिवारों में पति को नशे की आदत है, इस कारण से भी घरों में विवाद हुए। नशे में होने के कारण घर में रोज के लड़ाई-झगड़े शुरू हुए, ऐसे में घरेलू हिंसा बढ़ी।
 
ऐसी महिलाएं जिनके साथ घरेलू हिंसा हो रही है, वे समाज के डर से या अपने भविष्य के बारे में सोचकर घर पर ही रह जाती हैं और खुलकर अपनी समस्या नहीं कह पाती। उन्हें क्या करना चाहिए?
 
महिला आयोग की सदस्य संगीता शर्मा के अनुसार ऐसी महिलाएं जो घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं, उन्हें खुलकर आगे आना चाहिए और अपनी शिकायत दर्ज करवाना चाहिए। महिला आयोग का गठन ही इस वजह से हुआ है ताकि महिलाओं को न्याय मिले। हम चाहते हैं कि महिलाएं खुलकर सामने आएं और अपनी समस्या का समाधान खुलकर महिला आयोग के माध्यम से करें। हमारा उनके साथ पूरा सपोर्ट है। अगर वे इन समस्याओं को घर बैठकर झेलती रहीं तो ऐसे में अपराध घटित हो जाते हैं उनके साथ। इसलिए इन सब परेशानियों से बचने के लिए जागरूक होकर अपने कदम बढ़ाएं। महिला आयोग और पुलिस में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवाएं।
 
कोविड 19 में बढ़ती हिंसा का असर बच्चों पर कितना पड़ता है?

 
बाल आयोग सदस्य बृजेश चौहान का इस संबंध में मानना है कि कोविड 19 के दौरान जितने मामले सामने आए हैं, वे कहीं-न-कहीं जुड़े हुए हैं। घरेलू हिंसा के दौरान माता-पिता के बीच में जो झगड़े होते हैं, उनका असर बच्चों की मानसिकता पर बहुत पड़ता है। कभी-कभी तो ये शारीरिक भी हो जाता है। लेकिन ये चीजें बाहर नहीं आ पातीं। बच्चे इसे बाहर डिस्कस नहीं करते हैं। कई बार जब ये ज्यादा हो जाती हैं, तब बच्चे अपने मन की बात करते हैं, वो भी ऐसी स्थिति में जब उन पर बात आती है। काफी समय तक वे ध्यान नहीं देते हैं। ऐसी परिस्थितियां अधिकतर निचली बस्तियों में देखी जाती हैं। वो इसलिए क्योंकि वहां कोविड के दौरान रोजगार की कमी है, कामकाज नहीं चल रहा है। ऐसे में वे अपना सारा तनाव अपने घर पर उतारते हैं और ये सब होता है बच्चों के सामने जिसका गहरा प्रभाव उन पर पड़ता है। बच्चे मां-बाप के बीच की लड़ाई में बीच में पिसते हैं। इसका असर उनके पूरे जीवन व उनकी पढ़ाई-लिखाई पर भी पड़ता है और वे उदास और तनाव में रहने लगते हैं।
 
इस तरीके के मामले हमारे पास आए हैं। उन्हें जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने बच्चों को उनके माता-पिता तक पहुंचाया है। हमने संस्थाओं के माध्यम से कहा है कि ऐसे परिवार को परिवार पुनर्वास केंद्र में ले जाकर उनका वापस से समझौता करवाएं व उनकी काउंसलिंग करें।
 
कोविड के कारण ऐसी परिस्थितियां बनी हैं। ऐसी स्थितियां या तो बहुत हाई सोसाइटी में बनी हैं या निचली में। मीडियम तबके के लोग इस बात को समझते हैं और वे कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं।
 
बच्चों पर इसका असर न पड़े, इस बात का मुख्य तौर पर माता-पिता को ख्याल रखने की जरूरत है। यदि हम वर्तमान परिदृश्य को देखें तो सबसे ज्यादा सोशल मीडिया का बहुत प्रभाव पड़ा है। पति-पत्नी व बच्चे अपना अधिकतर समय मोबाइल पर ही बिताते हैं। वे न ही बच्चों के साथ समय बिताते हैं और न ही उनके मन की बात जानते हैं जिस वजह से बच्चा अकेला महसूस करने लगता है। वहीं माता-पिता को इस बात का विशेषतौर पर ख्याल रखना चाहिए कि जब भी किसी बात को लेकर आपस में विवाद हो तो उस वक्त आपके बच्चे वहां मौजूद न हों। इस बात का खास ख्याल रखें, क्योंकि आप बिना कुछ सोचे-समझे अपने गुस्से को एक-दूसरे पर जाहिर तो कर देते हैं लेकिन इसका बुरा प्रभाव आपके बच्चे की मानसिक स्थिति पर पड़ता है।
 
एक केस ऐसा भी आया कि एक बच्ची के साथ साइबर क्राइम घटित हो रहा था। बच्ची साइबर बुलिंग का शिकार हो गई। ऐसे में माता-पिता अपने विवादों में उलझे हैं तो बच्ची अपनी बात किससे कहेगी? तो पूरा कर्तव्य माता-पिता का बनता है कि वे बच्चों को समझें व अपने विवादों को बच्चों पर हावी न होने दें। यदि आपके बच्चे बड़े हैं तो आप उनसे अपनी बातें साझा कर सकते हैं। शायद आपकी परेशानी का हल वे भी बता सकें। और अगर आपके बच्चे छोटे हैं, तो आप उन्हें अपने विवादों से बिलकुल दूर रखें।
 
माता पिता अपने बच्चों के साथ समय ज्यादा से ज्यादा बिताएं। उनसे जानें कि वे क्या सोचते हैं? किसी बात को लेकर वे परेशान तो नहीं हैं? साथ में सामूहिक रूप से भोजन करें ताकि आप अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिता पाएं। सबसे बड़ी दवा है कि माता-पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें।
 
घरेलू हिंसा पर यह पेशकश प्रयास है एक खुले मंच का, जिसे हम समय-समय पर नई जानकारियों, विचारों और आंकड़ों के साथ आगे बढ़ाते रहेंगे। आपको क्या लगता है कोरोना का यह साइड इफेक्ट क्यों है कि जब मजबूरी में ही सही लेकिन नजदीकियां बढ़ीं तो फिर ये दूरियां कहां से आई....? आप इस बारे में क्या सोचते हैं हमें जरूर बताएं ताकि समाज की एक समस्या सही समय पर अपना समाधान पा सके। 
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