वैचारिक विविधता के लिए खतरनाक है डिजिटल मीडिया इको चैम्बर
लेखक डॉ. उमेश कुमार जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय, जम्मू और कश्मीर में जनसंचार एवं नवीन मीडिया विभाग में सह आचार्य है।
डिजिटल मीडिया पर सर्फिंग करते हुए आपने कई बार देखा होगा कि वहां वैसा ही कंटेंट दिखाया जा रहा है जैसा आपने पूर्व में खोजा था. किसी और विचार या सामग्री को बहुत ही कम या नहीं ही दिखाया जाता है. यदि आपने एक बार किसी राजनीतिक पार्टी के बारे में कुछ सामग्री को खोजा और उस पर कुछ समय बिताया है तो आगे उसी प्रकार की सामग्री डिजिटल मीडिया खुद ही आप तक पहुँचाने लगती है. इसे ही डिजिटल मीडिया इको चैम्बर कहा जाता है. डिजिटल मीडिया में इको चैंबर एक ऐसा माहौल है, जहाँ व्यक्ति केवल ऐसी जानकारी या राय के संपर्क में आते हैं जो उनके अपने विश्वासों को दर्शाती है और उन्हें पुष्ट करती है।
यह अक्सर डिजिटल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर होता है, जहाँ एल्गोरिदम उपयोगकर्ताओं को ऐसी सामग्री दिखाते हैं जो उनके पहले से ही देखी जा चुकी है. अन्य विचारों एवं अवधारणाओं को बहुत ही आसानी से छुपा दिया जाता है या उन्हें अल्गोरिद्म के द्वारा आप तक पहुँचने नहीं दिया जाता है. इसका परिणाम यह होता है कि उपयोगकर्ता किसी एक विचार का शिकार हो जाता है और उसके अनुसार ही सोचने और आचरण करने लगता है. वैचारिक विविधता से वह दूर चला जाता है और किसी भी षड़यंत्र का बहुत आसानी से शिकार हो जाता है।
यहाँ हम डिजिटल मीडिया के वैचारिक पक्ष में इको चैम्बर की बात कर रहे हैं.यह समाज के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति पैदा कर सकती है. यही बात जब डिजिटल विज्ञापन के लिए किया जाता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है. डिजिटल मीडिया विज्ञापन इको चैम्बर व्यवसाय के लिए लाभदायक हो सकता है और लक्षित उपभोक्ता तक पहुँचने में सहायक हो सकता है. विज्ञापनकर्ताओं के लिए यह बहुत ही सुविधाजनक हो सकता है कि उपभोक्ता को वही विज्ञापन दिखाएँ जाएँ जिस उत्पाद के बारे में उनसे डिजिटल मीडिया पर सर्च किया है. इसका कारण यह हो सकता है कि उपभोक्ता उस उत्पाद को खरीदना चाहता हो और बार-बार विज्ञापन दिखा कर उसे उत्पाद के प्रति आकर्षित किया जा सकता है. विज्ञापन क यह प्रवृत्ति होती है कि उपभोक्ता को उत्पाद को क्रय करने के लिए प्रेरित करे लेकिन वैचारिक विषयवस्तु के साथ मीडिया की ऐसी बाध्यता कभी नहीं होती है। समाचारों एवं विचारों में इको चैम्बर बनाया जाना खतरनाक है।
मीडिया के मौलिक स्वरुप की बात करें तो यह विविध विचारों को लोगों तक पहुँचाने में अहम् भूमिका का निर्वहन करता है. इसके पीछे मुख्य कारण लोगों को सभी विचारों को जानने-समझने के बाद निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना है. यह मीडिया ही है जो बिना किसी विभेद के सभी राजनीतिक दलों से लेकर मतों, विचारों को प्रतिदिन समाचार पत्र के रूप, रेडियो समाचार या टेलीविज़न पर कार्यक्रम के रूप में लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है. वैचारिक विविधता देश, समाज और संस्कृति के साथ ही साथ मानव के विकास के लिए भी बहुत ही आवश्यक है. मुख्यधारा की मीडिया इस जिम्मेदारी को आज भी बहुत प्रमुखता से निभा रहीं हैं. आज भी सभी प्रकार की ख़बरें समाचार पत्रों में दिखाई देती हैं. इसमें राजनीतिक समाचारों में सभी राजनीतिक दलों को स्थान दिया जाता है तो व्यवसाय, खेल, अपराध, पर्यावरण जैसे सभी विषयों को प्रकाशित और प्रसारित किया जाता है. यही वैचारिक विविधता मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बनाने का कार्य करता है।
वैचारिक क्षेत्र में डिजिटल मीडिया इको चैंबर के दुष्परिणामों की बात करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह इस इको चैंबर में लोग केवल उन्हीं सूचनाओं के संपर्क में आते हैं जो उनके विचारों का समर्थन करती हैं, जिससे गलत जानकारी का प्रसार बढ़ सकता है. लोग केवल उन्हें ही सच मानेंगे और बाकी के विचारों के प्रति उदासीन रहेंगे जिससे उचित निर्णय लेने में वह सक्षम नहीं होंगे. जब लोग केवल उन्हीं विचारों को सुनते हैं जो उनके अपने विचारों से मेल खाते हैं, तो समाज में ध्रुवीकरण का खतरा बढ़ सकता है. राजनीतिक दल चुनाव के समय में इसका उपयोग बहुतायत में करते हैं. उनकी कोशिश होती है कि लोगों को केवल ऐसी सामग्री दिखाई जाए तो उस राजनीतिक दल के हित में हों. इसी तरह से समाज में कोई अपराध होने पर भी कुछ लोगों द्वारा इस प्रकार का इको चैम्बर बनाने की कोशिश की जाती है।
डिजिटल मीडिया पर बहुतायत में ऐसी सामग्री को प्रसारित किया जाता है जिससे लोग उसके संपर्क में आ जाते हैं और फिर डिजिटल मीडिया उसी प्रकार की सामग्री को उपभोक्ता तक पहुँचाने लगता है. इससे समाज में धुर्वीकरण बढ़ने लगता है. डिजिटल मीडिया के वैचारिक इको चैम्बर से लोगों में अलग-अलग विचारधाराओं के प्रति सहिष्णुता कम हो जाती है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है और इको चैंबर में रहने से लोगों की आलोचनात्मक सोच और नए विचारों को स्वीकार करने की क्षमता कम हो सकती है. इसके साथ ही साथ लगातार एक ही प्रकार की जानकारी प्राप्त करने से लोग अपने विचारों में अधिक कट्टर हो सकते हैं. पुष्टिकरण पूर्वाग्रह को जन्म दे सकते हैं, जहाँ लोग ऐसी जानकारी को प्राथमिकता देते हैं जो उनके मौजूदा विचारों का समर्थन करती है और विरोधाभासी साक्ष्य को अनदेखा करते हैं1. इससे गलत सूचना और विकृत दृष्टिकोण पैदा हो सकता है, जिससे विरोधी दृष्टिकोणों पर विचार करना मुश्किल हो जाता है.
डिजिटल मीडिया के वैचारिक इको चैम्बर से स्वयं को बचाने और विचारों की विविधता तक पहुँचने के लिए डिजिटल मीडिया उपयोगकर्ता को सतर्क रहने की बहुत ही अधिक जरूरत है. जागरूकता के द्वारा ही इससे बचा जा सकता है. इसके लिए यह आवश्यक है कि डिजिटल मीडिया के एक ही स्त्रोत पर निर्भर न रहें और समाचार वेबसाइट्स, ब्लॉग्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करते रहें. साथ ही यह भी आवश्यक है कि उन लोगों से बातचीत भी करें जिनके विचार आपसे अलग हो सकते हैं। इससे वैचारिक व्यापकता को बढ़ावा मिलता है और धुर्वीकरण को रोका जा सकता है।
उपभोगकर्ताओं को आलोचनात्मक सोच विकसित करने पर बल देना चाहिए. किसी भी जानकारी को बिना जांचे-परखे स्वीकार नहीं करना चाहिए और तथ्यों की जांच करने के साथ ही साथ और स्रोत की विश्वसनीयता पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है. डिजिटल मीडिया उपभोगकर्ताओं को इसका उपयोग सक्रीय रूप से करना चाहिए. जहाँ तकनीकी उपभोगकर्ता को नियंत्रित करने लगती है वहां समस्या शुरू हो जाती है और उपभोगकर्ता धीरे-धीरे उसका शिकार हो जाता है. इसके लिए यह जरुरी है कि सक्रिय रूप से नई और विविध जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न विषयों पर पढ़ें और सीखें और वैचारिक विविधता को समझने का प्रयास करें।