Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कोरोना काल की कहानियां : विनाशकाले विपरीत बुद्धि:

हमें फॉलो करें कोरोना काल की कहानियां : विनाशकाले विपरीत बुद्धि:
webdunia

डॉ. छाया मंगल मिश्र

Man marks the earth with ruin. मनुष्य पृथ्वी पर विनाश की छाप लगा देता है
 
 बायरन(चाइल्ड हेराल्ड, ४/१७०) और ये छाप विगत कुछ वर्षों से हम भुगत भी रहे हैं।
 
रंध्रोपनिपातिनोsनर्था:’-कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतल, ६/८ से पूर्व) ‘अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। 
 
और अनर्थ हमारे देश में सर्वत्र व्याप्त हो चुका है। और यह भी की ‘संघचारिणो अनर्था:’- भास (अविमारक, २/१ से पूर्व) अनर्थ संघ चारी होते हैं अर्थात् विपत्ति कभी अकेले नहीं आती। तभी तो जो लॉक डाउन की खबर सुनते ही जरुरी और अन्य वस्तुएं की कीमत ₹5 से ₹7 कर देते हैं जो रोज की भूख का इंतजाम रोज करते हैं उनकी परवाह किये बिना।
 
‘बालत्वे च मृता माता वृद्धत्वे च मृता: सुता:.
 यौवने च मृता भार्या पातकं कीमत: परम्.
 
बचपन में माता की मृत्यु वृद्धावस्था में पुत्रों की मृत्यु और युवावस्था में पत्नी की मृत्यु- इससे बड़ी और क्या विपत्ति हो सकती है? और ऐसे में जो मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी सुनते हैं,  तो ऑक्सीजन की कालाबाजारी शुरू कर देते हैं।
 
‘दोषा: परं वृद्धिमायन्ति संततं गुणास्तु मुंचन्ति विपत्सु पूरषम्-  चंद्रशेखर (सुर्जनचरित,१५/४) 
 
विपत्तियों में पुरुष के दोष बढ़ जाते हैं तथा गुण साथ छोड़ देते हैं। तभी तो वे डॉक्टरों द्वारा विटामिन सी अधिक लेने की कहने पर 50 रुपये प्रति किलो का नींबू 150 रुपये प्रति किलो बेचने लगते हैं। 40-50 रुपए का बिकने वाला नारियल पानी ₹100 का बेचने लगते हैं। जो दम तोड़ते मरीजों की दुर्दशा देखते हैं तो रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करनी शुरू कर देते हैं।जो अपना ईमान बेच कर इंजेक्शन में पैरासिटामोल मिलाकर बेचने लगते हैं।

जो डेड बॉडी लाने के नाम पर पानीपत से फरीदाबाद तक के ₹36000 मांगने लगते हैं।मैय्यत के ठेके चलने लगते हैं।जो मरीज को दिल्ली गाजियाबाद मेरठ नोएडा स्थित किसी हॉस्पिटल में पहुंचाने की बात करते हैं तो एंबुलेंस का किराया 10 से 15 हजार किराया मांगने लगते हैं।लोग लाशों का मांस नोचने वाले गिद्ध में तब्दील हो गए हैं? गिद्ध तो मरने के बाद अपना पेट भरने के लिए लाशों को नोचता है पर हम तो अपनी तिजोरियां भरने के लिए जिंदा इंसानों को ही नोच रहे हैं, कहां  लेकर जाएंगे ऐसी दौलत या फिर किसके लिए?
 
पश्चिम के देशों की सोच है कि प्यार और युद्ध में जो कुछ होता है वो जायज होता है। जबकि हमारा सोच है कि प्यार और युद्ध में जो कुछ हो वह जायज ही हो। सत्य प्रेम करुणा और न्याय जैसी बातें हमारी संस्कृति में आचरण की वस्तु रही हैं भाषण की नहीं। इसलिए अर्थ उपार्जन महत्वपूर्ण मानते हुए उसे धर्म से जोड़ा गया है। अट्ठारह पुराणों के रचयिता वेदव्यास जी ने सम्पूर्ण धर्म का निष्कर्ष यही बताया है कि ‘परोपकार पुण्य है, परपीड़ा घोर पाप।’ वैद्य, चिकित्सक, शिक्षक, धर्माचार्य, ज्योतिषी जैसे पेशे विशेष रूप से सेवा के प्रतीक माने गए हैं।

निसंदेह इनकी भी आर्थिक आवश्यकताएं होतीं हैं लेकिन ‘आवश्यकता और लोभ’ में अंतर करना सबको समझ में आना चाहिए।गांधी जी कहते थे कि ‘पृथ्वी सबकी आवश्यकताएं संतुष्ट कर सकती है लेकिन लालच किसी एक का भी पूरा नहीं कर सकती। विपत्ति में जिस हृदय में सद्ज्ञान उत्पन्न न हो वह सूखा वृक्ष है जो पानी पा कर पनपता नहीं बल्कि सड़ जाता है।
 
पूरा विश्व जब आज कोरोना की त्रासदी से संघर्ष कर रहा है उस स्थिति में असहाय, परवश, बेबस, लाचार और प्राणों की भीख मांगते मरीजों या उनके परिजनों से लालची मानसिकता के साथ पेश आना राक्षसी प्रवृत्ति का परिचायक है। यह ध्यान रखना चाहिए कि लक्ष्मी मेहनत से अर्जित होती है, हरण या चोरी से नहीं।छल पूर्वक किए गए हरण ने सोने की लंका को ही नष्ट कर दिया था। एक अकेले वंश की तो बात ही क्या है?
 
फिर भी इस उम्मीद पर हम जी रहे हैं कि कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है, क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुनः बढ़ता है पूरा हो जाता है।वैसे ही ये विपत्ति काल भी निकल जाएगा पर ये सारे पाप कालिख बन कर ग्रहण की तरह हमारे मानवजीवन और मानवधर्म को कलंकित करते रहेंगे।  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आयुर्वेदिक काढ़ा कैसे बनाएं घर पर, कितना है फायदेमंद