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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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इब्ने मरियम हुआ करे कोई : ईसा मसीह की इस्लामिक अवधारणा

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सेहबा जाफ़री

दिसंबर यानि ठंड और पतझर की आमद. दिसंबर यानि सर्दियों में आइसक्रीम का मज़ा। दिसंबर यानि, फन ,फूड, और क्रिसमस कार्निवाल। एक सांता और बहुत सारे तोहफे। पर क्या आप जानते हैं कि ईसा की पैदाइश का इससे क्या रिश्ता है? 
 
गूगल के सर्वे के अनुसार ईसा दुनिया भर की दस असरंदाज़ शख्सियतों मे से एक हैं जिनका होना लोगों के दिलों को बदलने के लिए पर्याप्त था। दुनिया की एक बडी आबादी का खुद को बदल कर किसी पंथ विशेष में रच जाना इस बात की खुली दलील है। 
 
कहते हैं पैगंबर पैदा नहीं होते, नाज़िल होते हैं। ईसा का नुज़ूल अब्राहमिक पंथों के इतिहास में कुछ ऐसी ही घटना है जैसे मानवता के लिए आग की खोज। 
 
 हर अब्राहमिक पंथ ईसा के आगमन की आवश्यकता को अपने विश्वास के अनुसार अलग अलग ढंग से बताता है।  यहोवा के मानने वाले यहूदियों ने समय गुजरने के साथ साथ अपने मज़हब को आसान बना लिया। उन्होंने अपनी आसमानी किताब की शिक्षाओं मे बदलाव किया तो अल्लाह ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को भेजा ताकि यहूदियों को गलत काम करने से रोके और उन्हें ईश्वर का संदेश दें तो कुछ यहूदियों ने हज़रत ईसा को सच मान लिया और कुछ यहूदियों ने हज़रत ईसा को क़त्ल करने की कोशिश की। इस तरह से यहूदी दो गिरोह में बंट गए।
 
एक गिरोह वो था जो हज़रत ईसा को सच्चा मानता था ये लोग ही कालांतर में ईसाई कहलाए। दूसरा गिरोह हज़रत ईसा का दुश्मन बन गया ये ईसाई दुनिया के अनुसार ज़ालिम गिरोह था। एक तीसरा गिरोह भी था जिसने ईसा और मूसा (यहूदियों के पैगंबर) दोनो के अपनाया इस तरह दुनिया के तीन दिगर मज़हब अस्तित्व मे आये जिसके फलस्वरूप मूसा यहूदियत से और ईसा ईसाइयत से जोड़ दिए गए। 
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ईसा की पैदाइश अरब इतिहास में  तब की घटना है जब मूसा को गुज़रे लगभग हज़ार साल हो  चुके थे। धरती अन्याय और अत्याचारों के भार से बोझिल हो रही थी और मानवता देवदूतों की बांट जोह रही थी। बनी इसराइल (इसराइल की संतान) सरकशी और वहशीपन मे एक दूसरे से आगे बढे हुए थे, ऐबों को हुनर समझा जाने लगा था और हर आदमी स्वयं को भगवान समझने लगा था। 
 
 संतान के पैदा करने, विज्ञान को जान लेने, जमीन के छिपे खनिज भंडार को हासिल कर पूरी आवर्त सारणी भर लेने और तो और ज्योतिष की क़लम से अपना भाग्य तक लिख डालने वाले अरबों के जीवन मे यहोवा (ईश्वर) की कोई अवश्यकता नहीं रह गई थी। 
 
बनी इसराइल के गुरूर का यह आलम था कि वे स्वयं को अरबी (वाकपटु) और बक़या दुनिया को अजमी (goonga) कहा करते थे। ईसा की पैदाइश वलियों से उठाये एक सवाल का, जवाब था कि "क्या तुम्हारा रब सर्वशक्ति मान है तो बिना मर्द के औलाद पैदा करवा सकता है?" और ईसा की पैदाइश इस ही इच्छा का प्रतिफल माना जाता है 
 
इब्राहीमी पंथ की हर किताब में ईसा के आने की भविष्यवाणी स्पष्ट रूप से परिलक्षित की गई थी। 
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यहूदियों की किताब तोराह् में जहां इसे आसमान और ज़मींन का राजा कहा गया वहीं क़ुरान में 25 बार ईसा का उल्लेख मिलता है। क़ुरान के एक सुप्रसिद्ध अवतरण "सुरः आले इमरांन" (इमरान की वंशावलि) में ईसा की नानी हज़रत हसना (जिन्हें इब्रानी ज़ुबान में हन्ना और बाईबिल मे एना कहा गया है) की एक मन्नत से ज़िक्रे ईसा की शुरूआत होती है जिसके अनुसार हज़रत इमरान की पत्नी हज़रत हन्ना ने प्रार्थना की कि ए रब! यदि तू मुझे एक संतान दे तो मैं उसे तेरी सेवा में समर्पित कर दूं।
 
 कालांतर में ईश्वर ने हस्ना को एक सुंदर बेटी मरयम दी, और वे वचनानुसार इबादत हेतु मेहराब (जो वर्तमान में मस्जिद ए अक्सा है, और ईसा के दौर में ईसा के आशिक़ों का यरूशलम् थी तथा ज़माना ए मूसा में जिसे दीवारे गिरियां का रुतबा प्राप्त था) को सौंप दी गईं। मरयम की कफ़ालत (देख रेख) का ज़िम्मा हज़रत ज़करिया को सौंपा गया। 
 
ज़करिया एक बेहद इज़्ज़तदार, रसूखदार और ओहदेदार शख्सियतों में से एक थे। और रब से एक औलाद के लिए गिड़गिड़ा गिड़गिड़ा कर दुआएं मांग रहे थे। जब मेहराब के बच्चों का पालक बनने का वक़्त आया तो मरयम को देख ज़करिया में वात्सल्य की लहरें जोश मारने लगीं और वे दिल ही दिल में रब से उन्हें मांगने लगे तभी घोषणा हुई कि वे लोग जो मरयम के कफील् होना चाहते हैं अपने अपने क़लम दरिया ए नील के बहाव मे फैंक दें, जिसका कलम ठाठे मारती नील के बहाव के विपरीत दिशा मे तैरेगा वही मरयम का कफील होगा। 
 
रब का करिश्मा ऐसा हुआ कि ज़करिया के अतिरिक्त सभी के कलम बहाव के साथ बह गए और यूं मरयम ज़करिया की बेटी कहलाईं। 
 
इसके आगे की कहानी क़ुरान के एक अन्य अवतरण में मिलती है जिसे "सुर ए मरयम" कहा जाता है। मरयम मेहराब में इबादत करतीं, उनके पास वे फल और मेवे भी देखे जाते जिनकी काश्त प्राय: पूरे अरब अमीरात और इसके आसपास तक के इलाक़ों में भी नहीं होती। पूछने पर मरयम कहती थीं कि "मुझे मेरा रब यह अता करता है" 
 जिब्रील (फरिश्तों के सरदार) मरयम के पास अक्सर आते थे। 
 
 एक दिन वे मरयम् से कहते हैं, "अल्लाह तुम्हे एक कलिमे की बशारत देता है जिसका नाम मसी होगा। गौर तलब है हिब्रू भाषा में मसी के मायने "मलना" या हल्के हल्के सहलाना है। ईश कृपा से ईसा लोगों को हाथों से हल्के हल्के सहला कर चंगा करते थे इसलिए वे मसीह कहलाये। 
 
कौमार्यावास्था मे मां बनना उस समय के अरबों की कट्टरता देखते हुए चुनौती पूर्ण था और मरयम भला इस चमत्कार के बारे में कुछ कहतीं तो कौन सुनता! तब ईश्वर ने तीन दिनों के लिए बोलने की ताक़त छीन ली और उनके बेटे ईसा इब्ने मरयम को पैदाइशी बोलने की ताक़त भी दे दी गई। जब कोई सवाल मरयम पर दागा जाता जवाब में पास रखी किताब दिखा कर ईसा कहते "मैं रब का बंदा हूं और नबी बना कर किताब देकर तुम्हारी तरफ़ भेजा गया हूं" 
 
यहूदियों और नस्रानियों का लम्बा इतिहास साक्षी है यीशू के पहले भी नबियों का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, वे नबी जिन्होंने बादशाहत के स्थान पर नूबूवत को चुना और इंसान को इंसान बने रहने की तालीम दी। ईसा का जन्म और मृत्यु दोनों ही रहस्यमयी रहे हैं इब्राहीमी पंथ के सारे धर्म इसे अलग अलग ढंग से बताते हैं। 
 
 यहूदियों के अनुसार इशू नासिरी यहूदियों का शत्रु था जो अपने कर्म समाप्त कर शाश्वत पीड़ा भोग संसार से चला गया और ईसाई कहते हैं, "वे मृत्यु के तीन दिन बाद जी उठे, और परमेश्वर का राज्य स्थापित करने आएंगे' इससे इतर इस्लामिक अवधारणा ईसा की मृत्यु को सिरे से नकारती है, इसके अनुसार ईसा को परमेश्वर ने सशरीर उठा लिया और उनका ज़मींन पर ज़ाहिर होना प्रलय के आने की निशानियों मे से एक है।

तारीखें गवाह हैं, खंडहर ऊंघ रहे हैं, एक लाख पैगम्बर ज़मीन पर आए।  नानक, बुद्ध, ईसा, राम, कबीर, और  मूसा या मोहम्मद। चंद के नाम हमें याद हैं, पर कईयों को दुनिया भुला चुकी है। लोगों ने बहुत से नबियों को क़त्ल किया, अपनी वाह वाही के लिए उनकी मां ओं पर लांछन लगाया, यहां तक कि उन्हें गालियां दीं, सभ्यताएं जिन्हें अपने होने पर गर्व था सोती हुई ही रह गयीं और उनकी सुबह नहीं  हुई, हमने उनसे कोई सबक़ नहीं सीखा, और लड़ने के लिए इंटरनेट जैसा माध्यम भी ईजाद कर लिया। महामारियों की मार भी हमें सुधार नहीं पाई। हम राम मोहम्मद, सीता, मरयम बस नामों मे अटके रह गए......अगर आज भी हम नहीं सुधरे तो शायद ओमिक्रौन हमें तौबा की मोहलत भी न दें और ईश्वर हमें मिटा कर नई सभ्यता गढ़ दे, जो हमसे बेहतर हो और जिस पर नबी के नुज़ूल की ज़रूरत ही न हो..... 

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