6 अगस्त 2014 का वह बड़ा मनहूस दिन था... उस दिन हर 'बच्चे की आंखें नम थीं.... उनके बचपन का एक ऐसा कोमल काल्पनिक हिस्सा आहत हुआ था जिसे शब्दों से नहीं सिर्फ मौन आंसूओं से ही व्यक्त किया जा सकता है।
प्राण साब, सिर्फ कार्टूनिस्ट नहीं थे आप।
आप ने हम बच्चों के मन पर रंगों और आकृतियों से ऐसे आत्मीय 'इंसानों' को सौंपा है जो कभी लगे ही नहीं कि कल्पना की उपज हो सकते हैं। चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, श्रीमती जी, रमन, चन्नी चाची, गोगी, गब्दू यह क्या सिर्फ नाम भर हैं। क्या इन्हें कोई महज कार्टून मान सकता है? हमारे बचपन के अनन्य साथी थे यह सब, जो गर्मी की छुट्टियों में इतने-इतने पढ़े जाते थे कि सपनों में आने लगते थे। आपके इन पात्रों से मिलने के लिए कभी मां-पापा ने भी नहीं रोका क्योंकि खुद हमने उनको हाथों में आपकी कॉमिक्स को प्यार से पकड़े देखा है।
आपको पढ़ते और महसूस करते हुए कितना बेसब्र रहा करते थे हम भाई-बहन कि कभी साबू अपने मोहल्ले में आ जाए तो... कभी बिल्लू हमारे बीच आकर रहे तो हम क्या करेंगे सबसे पहले उसकी आंखों पर लहराते उसके बाल कटवाएंगें... पिंकी की गिलहरी हो या पतला मरियल सा डॉगी कैसे आपने उन्हें हमारा प्रिय साथी बना दिया था...यह सब आपकी मोहक कल्पना, जीवंत आकृतियों और चुटीले संवाद का ही तो सुपरिणाम था। जीवन में यह ख्वाहिश बचपन से पलती रही कि एक बार आपसे मिल सके। आपसे पूछें कि क्या यह सब कैरेक्टर कहीं किसी दुनिया में हैं, आपके आसपास हैं अगर हैं तो प्लीज इनसे मिलवाईए...
मुझे याद है एक बार मेरी बुआ का बेटा उज्जवल शर्मा चाचा चौधरी की नई कॉमिक्स के लिए बेचैन था और उसे लाने की किसी वजह से अनुमति नहीं मिली। उस बाल बुद्धि ने तिकड़म लगाई जो शायद आपकी ही कॉमिक्स से कहीं सीखी होगी। उसने मोहल्ले के पुस्तकालय वाले से जाकर कहा कि मेरी मम्मी के पैरों की हड्डी टूट गई है और उनको अस्पताल में पढ़ने के लिए चाचा चौधरी की कॉमिक्स चाहिए। उस बंदे के भावुक होकर नई-पुरानी सब कॉमिक्स सब उसे थमा दी।
थोड़ी देर बाद उसकी मम्मी यानी मेरी बुआ उधर से निकली तो पुस्तकालय वाला चौंक गया ... अरे आप तो अस्पताल में थी ना.. बुआ ने जवाब दिया '' नहीं तो... किसने कहा... ?
वह बोला अभी आपका बेटा मुझसे कॉमिक्स लेकर गया है आपके नाम से कि आप अस्पताल में हो...
बुआ ने घर आकर उज्जवल की धमाधम पिटाई की.. पर तब तक तो उज्जवल आपकी चाचा चौधरी की नई कॉमिक्स पढ़ चुका था और हम सब भी उसके मजे ले चुके थे। आज समझ में नहीं आ रहा है कि अपने भाई की उस शरारत को सोचकर हंसू या आपकी कॉमिक्स को पढ़ लेने की आतुरता को सोचकर आपकी तूलिका को नमन करूं... आपके हाथों का वह जादू हर कहीं हर किसी बच्चों के सर चढ़ कर ऐसे ही बोला करता था।
आज भी हमारे जीवन के हास्य की बहुत बड़ी वजह है आपके संवाद और निरर्थक ध्वनियां। चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है, साबू ज्यूपिटर का प्राणी है से लेकर बु हू हू हू, धड़ाक धम्म, फटाक, चटाक, फुस्ससससस, हुश्श...। क्या-क्या लिखूं प्राण साब, सच में आपके जाने से जाने क्यों ऐसा लगा जैसे चाचा चौधरी चले गए, जैसे बिल्लू ने हाथ छुड़ा लिया,जैसे पिंकी हमसे रूठ गई, जैसे रमन गुस्सा है, जैसे 'श्रीमती जी' अब कभी बात नहीं करेगी, चन्नी चाची का मुंह फूला है। अरे नहीं, यह सब तो हमारे साथ है बस आप नहीं है और आपके बिना यह सब और हम सब उदास हैं।
आप माने या न माने उस दिन जब आप अंतिम यात्रा पर होंगे तो कहीं दूर से एक लंबा सा साबू भी देख रहा होगा। चाचा चौधरी कंधा दे रहे होंगे और हमारे साथ आपके दूसरे तमाम पात्र जार-जार रोए होंगे। प्राण साब आपने असमय जाकर हम सबके प्राण ही ले लिए.... हो सके तो जल्दी ही लौटकर आइए नई कॉमिक्स की तरह, आने वाली कितनी ही पीढियों के बचपन को हरियाला करने के लिए हमें आपकी जरूरत है।