पुस्तक समीक्षा : प्रेम कबूतर

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ख़्वाजबाग़, बारामूला में जन्में मानव कौल नई हिन्दी के लीडिंग स्टार है। उनका जन्म बारामूला में हुआ लेकिन परवरिश मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में हुई। मानव कौल कला जगत के आलराउंडर है जो ना केवल लेखन बल्कि एक्टिंग और थियेटर में भी अपने झंडे गाढ़ चुके हैं। प्रेम कबूतर उनका दूसरा कहानी संग्रह है इससे पहले 'ठीक तुम्हारे पीछे' आया था जिसे पाठकों का भरपूर प्यार मिला। यह कहानी संग्रह भी प्रेम को अलग तरीके से समझाने का प्रयास करता है। बकौल मानव के शब्दों में कहें तो "अगर हम प्रेम पर बात करें तो मैंने उसे पाया अपने जीवन में है पर उसे समझा अपने लिखे में है।"
 
 
मानव की कहानियां कहीं पहुंचने की जल्दबाजी में नहीं है। इनमें ठहराव है, कुछ रहस्य है, और प्रेम-संबंधों की नई परिभाषाएं हैं जो पाठकों की जिज्ञासा को और बढ़ाती है। साथ ही कहानियों के पात्र भी विभिन्न मनोदशाओं को दिखाते हैं। कई बार कहानी पढ़ते-पढ़ते लगता है कि ये कहानी तो कहीं आसपास ही घट रही थी जिससे कि आप भी उन पात्रों से जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं। इनमें आवश्यकतानुसार पद्म का प्रयोग किया है जो कहानी को नया आयाम देते हैं। 
 
इस संग्रह मे कुल आठ कहानियां हैं जिसमें अधिकतर का थीम प्रेम है। पहली कहानी प्रेम कबूतर में तीन युवा दोस्त अपने-अपने तरीके से प्यार को पाना चाहते हैं और उसी में मानव सही कहते हैं कि 'प्यार आदमी को कबूतर बना देता है।' दूसरी कहानी इति और उदय की है जो आज के प्रेम संबंधों को समझने की कोशिश में है। दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन प्यार को लेकर दोनों के विचार अलग है। दोनों का यह टकराव ही कहानी का आधार है। 
 
तीसरी कहानी नकल नवीस में जो कलाकार की उधेड़बुन में आप भी खुद को फंसा पाते हैं। इसमें रूपकों का इस्तेमाल कहानी को रहस्यमय बना देता है। खुद पढ़िए - 'वह मुझसे प्रेम करती है। प्रेम को वह एक अलग व्यक्ति समझती है जो हम दोनों के साथ रहता है। मैं उससे हर बार कहता हूं कि इस प्रेम की वजह से मैं कभी तुम्हारे साथ अकेला नहीं रह पाता हूं।' 
 
चौथी कहानी अबाबील में एक लेखक और उसकी पाठिका के संबंधों को चित्रित किया है। अबाबील की शुरुआत कुछ इस तरह होती है - 
'तुम अगर कहो तो मैं तुम्हें एक बार और 
प्यार करने की कोशिश करूंगा 
फिर से, शुरू से 
तुम्हें वो गाहे-बगाहे आंखों के मिलने की टीस भी दूंगा।'
 
पांचवीं कहानी 'पहाड़ी रात' में अजनबी के साथ बिताई रात और उस दौरान मन में उठ रही शंकाओं और डर को बखूबी उकेरा गया है और ऐसा लगता है कि यह तो किसी के भी साथ हो सकता है। 
 
छटी कहानी 'शक्कर के पांच दाने' में एक लड़के और उसके अंदर साथ हो रही विभिन्न घटनाओं को दिखाया जिससे के उसमें कितने परिवर्तन आते हैं। इसमें पुंडलीक का किरदार पाठकों को पसंद आएगा। 
 
सातवीं कहानी 'शब्द और उनके चित्र' भी प्रेमियों को अलग तरह से दिखाती है। एक लाइन पढ़िए - 'मैं उससे प्रेम करता था। इतना कि उसे छोड़ना चाहता था। उससे दूर रहकर उसके प्रेम की आंच अपने भीतर महसूस करना चाहता था। 
 
आठवीं कहानी 'त्रासदी' अस्पताल में भर्ती इंदर की है जो हमेशा अकेला रहा है और उसे अपने जीवन का हिसाब किताब लगा रहा है। वहीं पास में दूसरे कमरे में भर्ती रोशनी अलग तरह से जूझ रही है। अधिकतर कहानी फ्लैशबैक में है। लेकिन अंत पाठकों को पसंद आएगा। इंदर के शब्द याद रह जाते हैं - 'मेरे लिए सबसे कठिन काम है अपने साथ रहना। अपने खुद के साथ। खुद के पूरे झूठ के साथ लगातार रहना। मेरे भीतर एक खालीपन है। जिसके लिए बस मैं दूसरों का उपयोग करता हूं। वह आते हैं और कुछ समय के लिए भर देते हैं पर उनके जाते ही मुझे एक कड़वाहट महसूस होती है। 
 
कुल मिलाकर सारी कहानियां बहुत खूबसूरती से गढ़ी गई है। हिंदी को पढ़ने वालों के लिए यह एक अच्छा उपहार है। साथ ही युवा पीढ़ी को भी यह पसंद आएगी। मानव की कहानियां उस नई मिठाई की तरह है जिसका स्वाद जीभ पर एक बार चढ़ जाता है तो आपका उसे और खाने का मन करता है। 
 
 
पुस्तक का नाम - प्रेम कबूतर 
विधा - कहानी संग्रह 
लेखक - मानव कौल 
समीक्षक - ब्रजेश एमपी 

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