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क्या आपको भी 'लोग' नहीं मिल रहे...

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स्वरांगी साने

‘लोग नहीं मिलते’...आपके सामने भी किसी न किसी ने, कभी न कभी यह दुखड़ा रोया ही होगा। एक ओर बेरोज़गारी का रोना है तो दूसरी ओर नियोक्ताओं के सामने यह समस्या है कि उन्हें लोग नहीं मिल रहे हैं। केवल नियोक्ता ही क्यों आपको घर-मकान का छोटा-बड़ा काम ही करवाना हो चाहे माली बुलवाना या नल का ठीक करवाना, आपको काम करने वाले नहीं मिलते और फिर आपको किसी ऐप का सहारा लेकर उसी काम का कुछ अधिक मूल्य चुकाना पड़ जाता है, तब जाकर आपका काम हो पाता है।
 
मशीनीकरण का दौर आया था या कंप्यूटर ही नए-नए आए थे तब ख़तरा मंडरा रहा था कि मशीनें सारा काम करने लगेंगी तो लोग बेरोज़गार हो जाएंगे या काम का महंगा मेहनताना भी कह रहा था कि किसी को काम देने के बजाय मशीनों से काम करवाना अधिक किफ़ायती है। लेकिन हुआ कुछ उल्टा है। ऑटोमेशन ने कई नए रोज़गार उपलब्ध कराए हैं और उसके बदले सस्ते में काम करने के लिए कई लोग भी तैयार हैं लेकिन विडंबना फिर भी है कि लोग नहीं मिल रहे हैं। अब ऐसे में केवल मशीनीकरण को इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

ज़्यादातर युवा अकुशल से कुशल कर्मचारी बनने की ओर बढ़ रहे हैं, वे आसानी से मशीनों के ज़रिए काम कर सकते हैं, लेकिन वे कारखानों में काम करना नहीं चाहते। उन्हें लगता है कारखानों में ज़ोखिमभरे काम करने से अच्छा है कि काम ही न किया जाए। भारत में सबसे ज़्यादा रोजगार दिलाने वाले और खाद्य उत्पादक यानी कृषि क्षेत्र में भी मजदूर कम पड़ रहे हैं। देश में बेरोज़गारी पर सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) प्राइवेट लिमिटेड के आकलन बताते हैं कि लोगों ने नौकरी की तलाश करना छोड़ दिया है। 
 
विकल्पों की तलाश में विकल्प का न मिल पाना बड़ी दुविधाजनक स्थिति है। चीन के बाद भारत मज़दूरों-श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है। चीन विश्व की सबसे घनी आबादी वाला देश है और भारत भी। बावज़ूद ऐसा हो रहा है तो इसकी एक वजह यह है कि वैश्विक आपदा के बाद लोगों का मानस अब अपने परिवार को छोड़कर कहीं दूर जाकर नौकरी करने का नहीं रह गया है। पहले लोग पैसा कमाने के लिए शहरों का रूख करते थे लेकिन अचानक आई आपदा से लोगों को घर-परिवार की कीमत पता चली है। लॉकडाउन ने लोगों को जितना अकेला कर छोड़ा था, उसके बाद अब वे अपने अपनों को, सगों को छोड़ कहीं दूर जाना नहीं चाहते।  
 
दूसरी वजह है पहले कम वेतन पर लोग काम करने के लिए तैयार हो जाते थे, अब हर कोई मोटी आमदनी चाहता है। कड़ी मेहनत से भी आज का युवा कतराने लगा है। चीन के शिक्षा मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2025 तक लगभग 30 मिलियन श्रमिकों की कमी हो सकती है, जो ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या से भी ज़्यादा है। चीन में कोरोना की वजह से भी कई लोग उस देश से पलायन कर रहे हैं। चीन विकल्प के रूप में वियतनाम या भारत से मजदूरों को काम पर लेना चाहता है लेकिन भारत में भी लोग कहां मिल रहे हैं!

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