चुनावों के लिए भाजपा का लक्ष्य और संकल्प

अवधेश कुमार
राजधानी दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में आयोजित भाजपा की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को आगामी चुनावों की दृष्टि से देखा जाना बिलकुल स्वाभाविक है। इस वर्ष नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों और अगले वर्ष लोकसभा चुनाव को देखते हुए किसी पार्टी की गतिविधि को उसके साथ जोड़कर देखा ही जाएगा। वैसे भी भाजपा कार्यकारणी की बैठक खत्म हुई और चुनाव आयोग ने तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम चुनावों की घोषणा कर दी।

सामान्यतः भाजपा अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक उन राज्यों में आयोजित करती है, जहां सबसे निकट चुनाव होते हैं। तो राष्ट्रीय कार्यकारिणी त्रिपुरा में होनी चाहिए थी, क्योंकि सबसे पहला महाभारत भाजपा के लिए वही है। अलग-अलग 9 राज्यों में कार्यकारिणी आयोजित नहीं कर सकते, क्योंकि साल में चार ही आयोजन होना है।

नई दिल्ली में कार्यक्रम आयोजित करने से एक साथ पूरे देश में संदेश जाता है। इस नाते भाजपा ने कार्यकारिणी के द्वारा अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं के सामने चुनाव संबंधी पर लक्ष्य रखे और आम जनता के बीच अपनी नीतियों, भावी कार्यक्रमों, चुनावी मुद्दों आदि का संदेश दिया। कार्यकारिणी के अंत में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि हमें पूरा भरोसा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अध्यक्ष जगत प्रसाद प्रकाश नड्डा के नेतृत्व में पार्टी को वर्ष 2019 की तुलना में बड़ा जनादेश मिलेगा। अगर पार्टी के दूसरे स्थान के शीर्ष रणनीतिकार पत्रकार वार्ता में कार्यकारिणी के बाद 2019 से बड़ी जीत का दावा करते हैं तो मानना पड़ेगा कि कार्यकारिणी का फोकस चुनाव ही था। प्रश्न है कि इस दृष्टि से कार्यकारिणी ने क्या संदेश दिया?

सामान्यतः भाजपा कार्यकारिणी में पारित प्रस्तावों से लेकर अध्यक्ष, गृहमंत्री अमित शाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीनों के भाषणों को हाल के वर्षों में सर्वाधिक महत्व मिला है। किंतु पार्टी के नेता- कार्यकर्ता से लेकर  आम आदमी एवं मीडिया नरेंद्र मोदी के वक्तव्य को ज्यादा फोकस करता है। मोदी ने एक साथ पार्टी संगठन से लेकर, जनसमर्थन बढ़ाने तथा भविष्य में भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए काम करने के सूत्र दिए।

उन्होंने अमृत काल को कर्तव्य काल में बदलकर देश को आगे ले जाने का न केवल आह्वान किया बल्कि कहा कि भारत का बेहतरीन समय आने वाला है। जाहिर है, एक आशाजनक तस्वीर पेश कर कार्यकर्ताओं और समर्थकों के अंदर उत्साह और विश्वास पैदा करने की यह कोशिश थी। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं को वोट की चिंता किए बिना समाज को बदलने का कार्य करना है। यानी कौन हमें वोट देता है नहीं देता है इसकी चिंता किए बगैर कार्यकर्ता समाज के हर हिस्से तक पहुंचें तथा सबका भरोसा जीतें। सबको देश के विकास के लिए स्वयं को समर्पित करना चाहिए।

प्रधानमंत्री जब कह रहे थे कि सिर्फ वे लोग, जो संकल्प लेते हैं इतिहास रचते हैं और भाजपा को भी संकल्प लेना है और इतिहास रचना है तो  उसके मायने बहुआयामी थे। यानी न केवल देश को विश्व का सर्वोत्कृष्ट राष्ट्र बनाने का लक्ष्य, बल्कि भाजपा को अगले चुनाव में रिकॉर्ड सीट दिलाने का भी संकल्प लेना है। नड्डा ने लोकसभा चुनाव के लिए 350 सीटों का लक्ष्य घोषित किया है। प्रधानमंत्री का आह्वान 24 घंटा सक्रिय मोड में काम करने का था। जब उन्होंने कहा कि हमारे पास लोगों की सेवा करने और विश्वास जीतने के लिए 400 दिन का समय है तो जाहिर है समाज के सभी वर्गों का भरोसा जीतने के लिए पूरी ताकत लगानी होगी।

कोई भी पार्टी लोकसभा में सर्वाधिक सीटें जीतने और लंबे समय तक शासन करने की आकांक्षा रखती है तो उसे सभी वर्ग, समुदाय, क्षेत्र के मतदाताओं का समर्थन चाहिए। केवल चुनाव जीतने के लिए ही नहीं काम करने के लिए भी जनता का समर्थन चाहिए होता है। 2014 में नरेंद्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास, फिर एक भारत श्रेष्ठ भारत और सबका साथ सबका विकास के साथ सबका विश्वास का नारा दिया था। अब वह कह रहे हैं कि हमें मुसलमानों और ईसाइयों के बीच जाना है खासकर पसमांदा और उसके लिए उनके धर्म स्थलों तक जाना है तो यह समर्थन विस्तार की ही कोशिश है। प्रधानमंत्री को पता है कि आम नेताओं, कार्यकर्ताओं के मन में यह अनुभव गहरे बैठा हुआ है कि मुसलमान और ईसाई उनको वोट नहीं देते। इसीलिए उन्होंने कहा कि कोई आपको वोट दे न दे आपको वहां जाना है। वाकई वोट भले ही ना दे, उसके अंदर सरकार सबके हित में काम कर रही है और उसमें उसका हित है यह विचार पहुंचाना आवश्यक है।

भाजपा विरोधी ही नहीं देश विरोधी शक्तियां भी मुसलमानों और ईसाईयों के मन में यह भाव पैदा करते रहते हैं कि मोदी, भाजपा, संघ सब उनके विरोधी है। इस कारण इनका एक बड़ा वर्ग भाजपा के साथ दुश्मनों जैसा विचार रखता है। धरातल को समझने वाले जानते हैं कि मुसलमानों का बड़ा वर्ग भाजपा को अभी वोट देने के मूड में नहीं है लेकिन ऐसा समय आ सकता है जब वो वोट दें और इसके लिए उनके साथ सतत संवाद संपर्क बनाए रखना आवश्यक है। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री की घोषणा का महत्व है।

हालांकि भाजपा के पारित प्रस्तावों को देखें तो विचारधारा पर समझौते की बात उसमें नहीं है चाहे राम मंदिर संबंधी प्रस्ताव हो या अन्य, सबमें विचारधारा के प्रति संकल्पबद्धता का आभास होता है। यानी कार्यकर्ता उनके बीच जाएं लेकिन वहां जाने के लिए अपनी विचारधारा पर क्षमा या किसी कोने या समझौता करने की आवश्यकता नहीं है। यानी अपनी विचारधारा पर रहते हुए उनके साथ संवाद करना है उनका विश्वास जीतने की कोशिश करनी है। भाजपा की यही बात उसे अन्य पार्टियों से अलग करती है। अन्य पार्टियों ने देश में मुसलमानों और ईसाइयों को अपने साथ लाने के लिए अपनी विचारधाराओं से समझौता किया जिसे संघ परिवार तुष्टीकरण कहती है।

आजादी के बाद के भारत के इतिहास का यही सच है कि इन वर्गों को मुख्यधारा में लाने और उनकी गलतियों को उनके समक्ष स्पष्ट रूप से बताने की बजाय उनको मनाने बहलाने फुलाने की ज्यादा कोशिश हुई। इस कारण खासकर मुस्लिम समाज के अंदर जो सामाजिक परिवर्तन होना चाहिए वह नहीं हो पाया। देखना होगा भाजपा की यह कोशिश सफल होती है या नहीं। अत्यंत कठिन है और जिस ढंग से विरोधी इन्हें डराने में लगे हैं उसे देखते हुए निकट भविष्य में भाजपा के लिए इनका विश्वास पाना असंभव सा लगता है।

वैसे भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में केवल यही लक्ष्य नहीं दिया गया आम जनता के बीच जाने के साथ-साथ जिला स्तरों पर नीचे के कार्यकर्ताओं के सम्मेलनों की बात की गई है। समयबद्ध योजना बनाकर जिला स्तर से कार्यकर्ताओं के साथ सम्मेलनों में संपर्क का उद्देश्य विधानसभा चुनावों एवं लोकसभा चुनाव में प्राणपण से जुटाना है। कुछ ही समय पहले भाजपा ने ऐसा ऐप विकसित किया है जिसमें बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से केंद्रीय नेता भी किसी समय संपर्क कर सकते हैं। अगर वह कार्यकर्ता तक पहुंचने का लक्ष्य रखती है तो इसे केवल कागजी घोषणा मानकर खारिज नहीं किया जा सकता।

पार्टी के व्यापक विस्तार और केंद्र से लेकर कई राज्यों की सत्ता में होने के परिणामस्वरुप संगठन और सरकार के बीच दूरियां बढ़ती हैं, कार्यकर्ता भी स्वयं की अनदेखी महसूस करते हैं लेकिन केंद्रीय नेतृत्व उनको जोड़ने को लेकर अपील करता है, कार्यक्रम देता रहता है तो स्थिति वैसी नहीं होती जो आमतौर पर सत्तारूढ़ पार्टियों के साथ होती है। हिमाचल प्रदेश में केंद्रीय नेतृत्व ने महसूस किया कि पार्टी का प्रबंधन सही नहीं होने के कारण सत्ता से बाहर हुई। पार्टी के विद्रोहियों ने ही हरा दिया। ऐसी स्थिति न हो इसलिए नीचे स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ सतत संवाद बनाए रखना आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने 18 से 25 वर्ष के आयु वर्ग से भी सीधा संपर्क स्थापित करने का कार्यक्रम दिया। उनका यह कहना सही है कि नई पीढ़ी को यह पता नहीं कि 8 साल के पूर्व भारत में कैसा शासन था। इसलिए वे इसी शासन की अच्छाई बुराई के आधार पर मूल्यांकन करेंगे जैसा। कोई सरकार सभी को संतुष्ट नहीं कर सकती। निजी और स्थानीय, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याएं असंतोष पैदा करती हैं। इसलिए उन्हें यह बताना आवश्यक होता है कि पूर्व की सरकारों के काल में भारत की स्थिति क्या थी और आज क्या है।

कार्यकर्ताओं में विश्वास बढ़ाने, समर्थकों के अंदर से असमंजस खत्म करने तथा विपक्ष को करारा जवाब देने की दृष्टि से भाजपा ने अपने पारित प्रस्ताव में खराब नोटबंदी से लेकर पेगासस, राफेल आदि मामलों पर उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरह विपक्ष के आरोप गलत साबित हुए हैं। इसी तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की प्रगति का मोटा -मोटी लेखा-जोखा भी प्रस्तुत किया गया है। राजनीतिक प्रस्ताव में विपक्ष की नकारात्मक तस्वीर पेश की गई है। इस तरह भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से विधानसभा चुनाव से लोकसभा चुनाव तक की योजना, रणनीति स्पष्ट कर दिया है।अब  विपक्ष को तय करना है कि उसका मुकाबला कैसे करे।
edited by navin rangiyal

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