केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अगले साल होने वाले आमसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। वह पिछली बार की तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन करना चाहती है। इसके लिए पार्टी चुनावी रणनीति भी बना रही है, लेकिन उसके लिए आम चुनाव की राह उतनी आसान नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है भारतीय जनता पार्टी सरकार की वादाखिलाफ़ी।
साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने जो लोक-लुभावन नारे दिए थे, जिनके बूते पर उसने लोकसभा चुनाव की वैतरणी पार की थी, अब जनता उनके बारे में सवाल करने लगी है। जनता पूछने लगी कि कहां हैं वे अच्छे दिन जिसका इन्द्रधनुषी सपना भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें दिखाया था। कहां हैं वे 15 लाख रुपए, जिन्हें उनके खाते में डालने का वादा किया गया था। कहां है वह विदेशी कालाधन, जिसके बारे में वादा किया गया था कि उसके स्वदेश में आने के बाद जनता के हालात सुधर जाएंगे।
भारतीय जनता पार्टी जिन वादों के सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी थी, सत्ता की कुर्सी पाते ही उन्हें भूल गई और ठीक उनके उलट काम करने लगी। भारतीय जनता पार्टी ने महंगाई कम करने का वादा किया था, लेकिन उसके शासनकाल में महंगाई आसमान छूने लगी। भारतीय जनता पार्टी ने महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अत्याचारों पर अंकुश लगाने का वादा किया था, लेकिन आए-दिन महिला शोषण के दिल दहला देने वाले कितने ही मामले सामने आ रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने किसानों को राहत देने का वादा किया था, लेकिन किसानों की खुदकुशी के मामले थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया था, लेकिन रोज़गार देना तो दूर, नोटबंदी और जीएसटी लागू करके जो उद्योग-धंधे चल रहे थे, उन्हें भी बंद करने का काम किया है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार जो भी फ़ैसले ले रही है, उनसे सिर्फ़ बड़े उद्योगपतियों को ही फ़ायदा हो रहा है।
ऑक्सफ़ेम सर्वेक्षण के हवाले से कहा गया है कि पिछले साल यानी 2017 में भारत में सृजित कुल संपदा का 73 फ़ीसदी हिस्सा देश की 1 फ़ीसदी अमीर आबादी के पास है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल भी किया है। ग़ौरतलब है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं और उनकी सरकार पर अमीरों के लिए काम करने और उनके कर्ज़ माफ़ करने को लेकर लगातार हमला कर रहे हैं।
दरअसल, एक तरफ़ केंद्र सरकार अमीरों को तमाम सुविधाएं दे रही है, उन्हें करों में छूट दे रही है, उनके कर माफ़ कर रही है, उनके क़र्ज़ माफ़ कर रही है, वहीं दूसरी तरफ़ ग़रीब जनता पर आए दिन नए-नए कर लगाए जा रहे हैं, कभी स्वच्छता के नाम पर, तो कभी जीएसटी के नाम पर उनसे वसूली की जा रही है। खाद्यान्नों और रोज़मर्रा में काम आने वाली चीज़ों के दाम भी लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। मरीज़ों के लिए इलाज कराना भी मुश्किल हो गया है। दवाओं यहां तक कि जीवनरक्षक दवाओं और खून के दाम भी बहुत ज़्यादा बढ़ा दिए गए हैं। ऐसे में ग़रीब मरीज़ कैसे अपना इलाज कराएंगे, इसकी सरकार को ज़रा भी फ़िक्र नहीं है। सरकार का सारा ध्यान जनता से कर वसूली पर ही लगा हुआ है।
इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव में कांग्रेस के जिस भ्रष्टाचार को, जिस घोटाले को अपने लिए प्रचार का साधन बनाया था, उन मामलों में भी अदालत में कांग्रेस पाकसाफ़ साबित हुई है। टू जी स्पैक्ट्रम घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और कनिमोझी सहित 17 आरोपियों को सभी मामलों में बरी कर दिया।
न्यायाधीश ओपी सैनी ने अपने फ़ैसले में लिखा है, 'मैं ये भी बता दूं कि बीते 7 साल से हर दिन- गर्मी की छुट्टियों सहित, मैं सुबह 9 से शाम 5 बजे तक पूरी निष्ठा से खुली अदालत में बैठता था और इंतज़ार करता था कि कोई आए और अपने पास से कोई ऐसा सबूत दे, जो क़ानूनी तौर पर मंज़ूर हो, लेकिन सब बेकार रहा। एक भी शख्स सामने नहीं आया। इससे पता चलता है कि हर कोई अफ़वाहों, अनुमानों और गपशप से बनी आम राय के हिसाब से चल रहा था। लेकिन न्यायिक कार्यवाही में लोगों की इस राय की जगह नहीं है।'
इस फ़ैसले से यह साबित हो गया कि टू जी स्पैक्ट्रम घोटाला पूरी तरह से काल्पनिक और मनगढ़ंत था। कांग्रेस को बदनाम करके अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए बड़े लोगों को आरोपी बनाया गया था। यह फ़ैसला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के लिए राहत का सबब बना, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार और केंद्रीय जांच ब्यूरो कठघरे में ज़रूर खड़े हो गए हैं। अल्पसंख्यकों और दलितों पर हो रहे लगातार हमलों को लेकर भी केंद्र की मोदी सरकार पहले से ही सवालों के घेरे में है।
हालांकि कुछ समय पहले हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया। भारतीय जनता पार्टी ने जहां गुजरात में अपनी सत्ता बचाई, वहीं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस से सत्ता छीनी। इस साल देश के 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड शामिल हैं।
हालांकि भारतीय जनता पार्टी इस बात को लेकर आश्वस्त है कि इन विधानसभा चुनावों में भी वह अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बहुत फ़र्क़ है। विधानसभा चुनाव जहां क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर लड़े जाते हैं, वहीं लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे छाए रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी के सांसद इस बात को लेकर परेशान हैं कि वे चुनावों में जनता को क्या मुंह दिखाएंगे। जनता जब उनसे सवाल पूछेगी, तो सिवाय बग़ले झांकने के वे कुछ नहीं कर पाएंगे।
फ़िलहाल भारतीय जनता पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने पर खासा ध्यान दे रही है। उसने 'मिलेनियम वोटर कैंपेन' नामक एक मुहिम शुरू की है। इस मुहिम में उन 2 करोड़ युवाओं को शामिल करने की कोशिश की जाएगी, जो साल 2019 में पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इन युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया की मदद ली जाएगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने ज़्यादा से ज़्यादा युवाओं को जोड़ा था और उसे युवाओं का समर्थन भी मिला था। क़ाबिले-ग़ौर है कि 'मन की बात' के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी नए मतदाताओं पर ज़ोर देते हुए कहा था, 'हम लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए 21वीं सदी में पैदा हुए लोगों का स्वागत करते हैं, क्योंकि वे योग्य मतदाता बन जाएंगे। उनका वोट 'नए भारत का आधार' बन जाएगा।
बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी अपनी कोशिश में कितनी कामयाब हो पाती है, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा, लेकिन इतना ज़रूर है कि उसकी राह कांटोंभरी होगी, जो उसने अपनी राह में खुद बोए हैं।