Ayesha Suicide Case : क्यों आयशा... क्यों?

डॉ. दीपा मनीष व्यास
प्यारी आयशा,
 
आशा करते हैं कि इस वक्त तुम जहां होंगी, वहां सुकून से होंगी और खुश ही होंगी। क्योंकि जहां तुम हो, उस जगह को खुद तुमने चुना है। आयशा, तुमसे बहुत कुछ कहना है। तुमसे बहुत कुछ पूछना है हमें। तुम इतनी प्यारी लड़की थी कि तुम्हारे अम्मी-अब्बू, भाई सब तुम्हें दिल-ओ-जान से चाहते थे। तुम्हारी खुशी के लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे। जब उन्होंने तुम्हारे लालची ससुराल वालों पर कानूनी कार्यवाही की होगी तो समाज के विरोध को भी सहन किया होगा। अपने तई समाज से लड़ाई भी की होगी। वो तुम्हें उन सारी प्रताड़नाओं से मुक्त करना चाहते थे। पर तुम, तुम तो अनजाने में उन्हें ही प्रताड़ित कर गई।
 
अगर तुमने यह सोचा कि तुम अपने अब्बू-अम्मी को परेशान नहीं देख पा रही थी तो तुम उनकी हिम्मत क्यों नहीं बनी? तुमने तो ताउम्र की परेशानी और लाचारी उन्हें दे दी। क्यों... क्यों किया तुमने ऐसा? बोलो क्यों किया?
 
तुम एक कमजोर नहीं, बहादुर लड़की थी आयशा। किसी में इतनी हिम्मत नहीं होती कि वो आत्महत्या के पहले अपने ज़ज़्बातों के तूफान को दबाकर सुकून भरा वीडियो बना दे। किसी में हिम्मत नहीं होती कि मुस्कुराते हुए यूं मौत को गले लगा ले। पर तुमने इतनी हिम्मत दिखाई। तुमने मुस्कुराते हुए, सुकून से बहती नदी में खुद को बहा दिया, क्योंकि तुम बहना चाहती थी।
 
पर पता है आयशा तुमने अपनी बहादुरी वाली छवि को एक मजबूर और कमजोर छवि बना दिया। तुम चाहती तो तुम लड़ सकती थी। तुम अपने लालची लोगों की पोल खोलने वाला वीडियो बना कानून की शरण ले सकती थी। हम सबका साथ ले सकती थी। पर... पर... तुमने भी वही शॉर्टकट अपना लिया ना, जो बहुत-सी आयशाएं पहले अपना चुकीं और हो सकता है अभी भी अपना रही होंगी। लेकिन तुम चाहती तो तुम बहुत-सी आयशाओं की हिम्मत बन सकती थी। तुम चाहती तो तुम बहुत-सी आयशाओं की प्रेरणा बन सकती थी। तुम चाहती तो न जाने कितने मजबूर माता-पिता की ताकत बन सकती थी। लेकिन तुमने खुद की हिम्मत के साथ सबकी हिम्मत को तोड़ दिया।
 
क्यों... क्यों किया ऐसा आयशा?
 
जब भी कोई युवती या स्त्री इस तरह का कदम उठाती है तो कई सवाल छोड़ जाती हैं। ये सवाल समाज में, समाचार-पत्रों में, सोशल मीडिया में घूमते रहते हैं, बस घूमते रहते हैं। आयशा अलग-अलग नाम ले-लेकर मरती रहती हैं, जलती रहती हैं, पर समस्या जस-की-तस रह जाती है। हम तुम्हें नहीं जानते, पर तुम्हारी वो अंतिम निश्चल मुस्कुराहट हमको बेचैन कर गई है। सिर्फ आत्महत्या ही तो अंतिम रास्ता नहीं होता है ना? ज़िंदगी गुलाब के पौधे की तरह होती है। इसमें खूबसूरत फूलों तक पहुंचने के लिए कई बार कांटों की चुभन सहना होती है। ये कांटे ही तो हैं, जो हमें लड़ना व डटे रहना सिखाते हैं। फूल तक पहुंचाते हैं तो घबराना कैसा?
 
हम जानते हैं कि तुमने अपने जीवन में बहुत कुछ सहा होगा। तुम बहुत कश्मकश से गुजरी होंगी। न जाने कितने विचार आए होंगे। ये कदम उठाना आसान नहीं रहा होगा, पर फिर भी आयशा हम तुमसे बस ये पूछना चाहते हैं कि तुमने ये कमजोर कदम क्यों उठाया?

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