Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

चुनाव परिणामों पर आश्चर्य कैसा

हमें फॉलो करें चुनाव परिणामों पर आश्चर्य कैसा
webdunia

अवधेश कुमार

राज्य विधानसभाओं के चुनाव परिणाम उनके लिए किंचित भी आश्चर्य का विषय नहीं है जो भारत और इन राज्यों के बदले हुए राजनीतिक वातावरण को देख रहे थे। ये चुनाव परिणाम मतदाताओं के तात्कालिक संवेग की अभिव्यक्ति नहीं हैं। ये परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश और राज्य स्तर पर भाजपा के संदर्भ में बने संपूर्ण माहौल की परिणिति हैं। 
 
देश का माहौल बिल्कुल वैसा नहीं है जैसा भाजपा विरोधी प्रस्तुत कर रहे थे। अगर आप उनके पूर्व आकलनों को आधार बनाएं तो भाजपा को एक राज्य में भी विजय नहीं मिलनी चाहिए थी। मध्यप्रदेश में अगर बीच के 15 महीने के कमलनाथ सरकार को छोड़ दें तो करीब 19 वर्ष तक शासन करने के बावजूद भाजपा इतनी बड़ी विजय प्राप्त करती है तो फिर सामान्य विश्लेषणों से परिणाम की सच्चाई नहीं समझी जा सकती। 
 
मध्यप्रदेश में भाजपा को करीब 49% और कांग्रेस को 40% मत मिला है। 9% बहुत बड़ा अंतर है। राजस्थान में भी लगभग दो प्रतिशत मतों का अंतर है जबकि पिछली बार कांग्रेस को बीजेपी से केवल करीब .25 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले थे। 

छत्तीसगढ़ में भाजपा ने पिछली बार करीब 33 प्रतिशत और कांग्रेस ने 43 प्रतिशत वोट पाया था जबकि इस बार भाजपा को 45% से अधिक तथा कांग्रेस का वोट लगभग 39% तक सिमटा है। यानी भाजपा ने 12% से ज्यादा मत हासिल किया, जबकि कांग्रेस का 4% वोट कट गया। तो इस तरह के परिणामों के कारण क्या हैं?
 
परंपरागत आधार पर विश्लेषण करने वाले मध्यप्रदेश में कमलनाथ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जाति कारक से लेकर लाडली योजना, राजस्थान में पेपर लीक से लेकर भ्रष्टाचार तथा इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी बघेल सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार आदि का उल्लेख कर रहे हैं। ये सब भी मुद्दे के रूप में थे। शिवराज सिंह भाजपा के मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार नहीं थे। चुनावों में शीर्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम था। 
 
कांग्रेस की गारंटी घोषणाओं के समानांतर मोदी ने कहा कि मेरा नाम ही गारंटी है। परिणामों को आधार बनाएं तो स्वीकारना पड़ेगा कि फ्री बीज यानी मुफ्त घोषणाओं के समानांतर मतदाताओं ने मोदी को स्वीकार किया। कांग्रेस ने सभी राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की थी। यह सरकारी कर्मचारियों की दृष्टि से सर्वाधिक आकर्षक घोषणा थी और इसे लेकर देशव्यापी आंदोलन का भी ऐलान हो चुका है।

हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों का एक बड़ा कारण पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा मानी गई थी। इन राज्यों में यह सफल क्यों हो गया? तेलंगाना में के चन्द्रशेखर राव भी इसके लिए तैयार थे। इस पहलू को आधार बनाकर विचार करें तो न केवल इन परिणामों की सच्चाई बल्कि 2024 लोकसभा चुनाव की भी झलक मिल जाएगी।
 
राजनीति में नेतृत्व मात्र चेहरा नहीं होता। वह विचारों और व्यवहार का समुच्चय होता है जिसके आधार पर मतदाता अपना मत तय करते हैं। नरेंद्र मोदी स्पष्ट विचारधारा को प्रतिबिंबित करते हैं जिसे केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारें नीतियों और व्यवहारों में लागू कर रहीं हैं। इसके साथ वक्तव्यों और व्यवहारों से भावी कदमों की झलक भी दिया है। 
 
दरअसल, 2014 के बाद राजनीति, सत्ता और नेतृत्व को लेकर भारत के बदले हुए सामूहिक मनोविज्ञान और मतदाताओं के व्यवहार को न समझने के कारण ही ऐसे परिणाम आश्चर्य में डालते हैं।

राजनीति में भाजपा और राजनीति से बाहर पूरे संगठन परिवार ने हिंदुत्व और उसके इर्द-गिर राष्ट्र भाव का धीरे-धीरे सशक्त माहौल बनाया है जिससे देश का सामूहिक मनोविज्ञान बदला है। कर्नाटक और हिमाचल में भी भाजपा के मत नहीं घटे, जबकि दोनों जगह कार्यकर्ताओं और समर्थकों के अंदर व्यापक असंतोष प्रकट हो रहा था। 
इन परिणामों को किसी ने भाजपा की विचारधारा, नीतियों और नरेंद्र मोदी की अस्वीकृति मान ली, तो यह उनकी गलती है। इसके आधार पर मतदाता मत निर्धारित नहीं कर सकते। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश तीनों राज्यों में कांग्रेस ने हिंदुत्व संबंधी घोषणाओं में अपने बीच ही प्रतिस्पर्धा की। कुछ घोषणाएं ऐसी थीं जहां तक भाजपा भी नहीं जाती।

अगर हिंदुत्व और उससे जुड़ा राष्ट्रबोध अंतर्धारा में नहीं होता तो अशोक गहलोत, कमलनाथ और भूपेश बघेल हिंदुत्व पर उस सीमा तक नहीं जाते। लेकिन मतदाताओं के सामने स्पष्ट था कि इस समय हिंदुत्व और हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रबोध पर जितना भी कर सकती है वह भाजपा ही है। 
 
भाजपा नेताओं ने जब कांग्रेस को चुनावी हिंदू कहा तो इसकी प्रतिक्रिया जैसी भी दी गई, मतदाताओं ने स्वीकार किया। इसी बीच तमिलनाडु से सनातन विरोधी आक्रामक वक्तव्य के साथ उत्तरप्रदेश, बिहार से आईएनडीआईए के नेताओं ने हिंदू धर्म पुस्तकों, देवी-देवताओं के विरुद्ध जहर उगला उसके विरुद्ध केवल भाजपा सामने आई। कांग्रेस ने चुप्पी साधे रखी। 
 
स्वाभाविक ही मतदाताओं के मन में प्रश्न उठा कि कांग्रेस हिंदुत्ववादी है तो उनके विरुद्ध खड़ा क्यों नहीं हो रही? नई संसद भवन की धार्मिक कर्मकांडीय तरीके से उद्घाटन और सिंगोल की पुनर्स्थापना के संदेश को भी कांग्रेस और विरोधी नहीं समझ सके तथा उसका बहिष्कार किया। भाजपा ने राम मंदिर से लेकर काशी, महाकाल, केदारनाथ, बद्रीनाथ, समान नागरिक संहिता, मजहबी कट्टरवाद व आतंकवाद सबको मुख्य मुद्दा बनाया तथा कांग्रेस को रक्षात्मक होना पड़ा। 
 
क्या यह संभव है कि भारत में आजादी के बाद आतंकवादी संगठन आइसिस की शैली में उदयपुर में कन्हैयालाल को जिबह की घटना जनता भूल जाएगी?

हिंदू धर्म संबंधी शोभा यात्राओं पर हमले की शुरुआत राजस्थान से हुई। शोभा यात्राओं पर हमले कई राज्यों में ज्यादा खतरनाक रूप में सामने आए इसलिए यह संपूर्ण देश के लिए मुद्दा है। कोई कहे कि भाजपा केवल हिंदू मुस्लिम की बात करती है इससे लोगों के अंदर पैठा भाव खत्म नहीं होता। राजस्थान में सन् 2008 में जयपुर आतंकवादी हमले के सारे आरोपियों के न्यायालय से रिहा होने की भी जनता में प्रतिक्रिया थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने अपनी सभाओं में इन्हें प्रमुखता से उठाया।
 
हिंदुत्व को नकारात्मक या सांप्रदायिक मुस्लिम विरोधी आदि विचार मानने वाले भारत के बदले हुए माहौल को नहीं समझ पाते।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने हिंदुत्व और राष्ट्रबोध को सकारात्मक और व्यावहारिक रूप में उतारने की पहल की है जिसमें गरीबों, किसानों, मजदूरों ,व्यापारियों सहित समाज के सभी तबके के लिए सरकारी नीतियों में जगह है। सामाजिक न्याय तथा दलित, पिछड़े और आदिवासियों के कल्याण संबंधी व्यवहारिक अवधारणा को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारों ने परिवर्तित किया है। 
 
प्रधानमंत्री आवास योजना से लेकर किसान सम्मान निधि, मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, घर-घर बिजली, प्रधानमंत्री सड़क योजना आदि के माध्यम से केंद्र सरकार भी गांव-गांव तक दिखाई देती है। इसमें जातीय जनगणना पर भाजपा को घेरने की रणनीति सफल नहीं हो सकती क्योंकि धरातल पर पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को सरकार के काम दिखते हैं।

पढ़ें लिखे पिछड़े वर्ग को पता है कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मोदी सरकार ने दिया। निस्संदेह, संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिला आरक्षण के लिए नारी सम्मान वंदन कानून बनाने का भी असर हुआ है।
 
विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय का मुख्य कारण पार्टी एवं समर्थकों का असंतोष और विद्रोह रहा है। सच है कि भाजपा सरकारों में उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं की दर्दनाक अनदेखी हुई है।

भाजपा ने मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को चुनाव का बागडोर कमाने की जगह केंद्रीय नेताओं को उतार कर पार्टी के अंदरूनी विरोधी रुझान को लगभग खत्म कर दिया। सत्ता में न रहते हुए भी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भाजपा ने यही कदम उठाया और वहां के नेतृत्व के प्रति जो असंतोष था वह भी लगभग खत्म हो गया। 
 
नरेंद्र मोदी के नाम से भाजपा के अंदर मतभेद है नहीं। दूसरी ओर कांग्रेस ने चुनावों को एक हद तक अपनी फ्रीबीज घोषणाओं हिंदुत्व तथा नरेंद्र मोदी, संघ और भाजपा के विरुद्ध नकारात्मक अभियानों में सिमट दिया। जब कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री को पनौती तथा उनके साथ गृह मंत्री को पॉकेटमारों के गैंग का हिस्सा बताएंगे तो जनता में उसकी प्रतिक्रिया होगी।

तेलंगाना में भी भाजपा अगर 2019 की विचारधारा और मुद्दों पर प्रखरता तथा सरकार के विरुद्ध आक्रामकता कायम रखती, ठाकुर राजा सिंह के निष्कासन की घोषणा नहीं करती और उसे दूसरे तरीके से संभालती तो परिणाम अलग आते। 
 
लोग बीआरएस की सत्ता बदलना चाहते थे, पर भाजपा हराने वाली सक्षम विकल्प नहीं थी। मतदाता कांग्रेस के साथ गए। बावजूद भाजपा को लगभग 14% मत आए हैं। इस तरह सारे चुनाव परिणाम नरेंद्र मोदी ,भाजपा, हिंदुत्व और‌ उससे संबद्ध राष्ट्रबोध संबंधी विचारधारा तथा जमीन पर उसके व्यवहारिक रूप को प्रकट करने वाले हैं। स्थिति यही रही जिसकी संभावना है तो इसके आधार पर आप 2024 के चुनाव परिणाम का भी पूर्व आकलन कर सकते हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जानिए 7 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है सशस्त्र सेना झंडा दिवस