यह अमेरिका में भविष्य के दृश्यों का ट्रेलर है

अवधेश कुमार
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में जो कुछ हुआ उसकी एक स्वर में निंदा के साथ पुरोजर विरोध होना चाहिए और हो भी रहा है। इसकी तो बुरे सपनों में भी किसी ने कल्पना नहीं की होगी।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव परिणाम को नहीं मान रहे हैं, उनके समर्थक इसे लेकर आक्रामक हैं यह पूरी दुनिया को पता है। बावजूद वे इस तरह संसद पर हमला करेंगे, हिंसा और तोड़फोड़ करेंगे, उसे घेर लेने की कोशिश करेंगे यह सब कल्पना से परे है।

अमेरिका को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहा जाता है। वहां के चुनावों को एशिया, अफ्रीका, लातिनी अमेरिका आदि के देशों में उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। वहां घोषित चुनाव परिणामों को कोई राष्ट्रपति और उसके समर्थक खारिज कर दें तथा अंतिम समय तक सत्ता छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो तो मानना पड़ेगा कि अमेरिका के लोकतांत्रिक ढांचे के अंदर बहुत कुछ ऐसा उत्पन्न हो गया है जिसे समझने में हममें से ज्यादातर नाकामयाब हैं। इसकी निंदा होनी स्वाभाविक है।

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि इतिहास राजधानी में हुए आज के हिंसक वारदात को याद रखेगा जो हमारे देश के लिए महान अपमान और शर्म की बात है। यहां के चुनाव परिणाम के बारे में निराधार रूप से झूठ बोला जाता रहा है। पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने लिखा कि अमेरिकी लोकतंत्र की नींव स्वतंत्र चुनाव में सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण पर देश के आतंकियों ने हमला किया। हमें कानून को दोबारा स्थापित करना होगा और उन्हें इसके लिए जिम्मेदार करार देना होगा।

लोकतंत्र नाजुक होता है और हमारे नेताओं को इसकी रक्षा की जिम्मेदारी के साथ रहना होगा। यहां तक कि ट्रंप द्वारा नियुक्त उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने भी इसे देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन कह दिया। ट्रंप समर्थकों के रवैए पर डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ओर से नाराजगी प्रकट की जा रही है। एक उदाहरण रिपब्लिकन सीनेटर मिट रोमनी हैं। उन्होंने कहा कि मैं इस घटना की निंदा करता हूं। मैं शर्मिंदा हूं कि हमारे राष्ट्रपति ने दंगाइयों को संसद में घुसने के लिए भड़काया। लोकतंत्र में जीत और हार को स्वीकारने की हिम्मत होनी चाहिए। दंगाइयों को साफ संदेश है कि पराजय को कबूल करें। मैं अपनी पार्टी के सहयोगियों से भी यही उम्मीद करता हूं कि वे लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे आएंगे।

अमेरिका के चरित्र को देखते हुए इस तरह की प्रतिक्रियाएं बिलकुल स्वाभाविक है। हालांकि अब ट्रंप ने कह दिया है कि जो बिडेन को सत्ता हस्तांतरित हो जाएगा। किंतु इससे यह नहीं मानना चाहिए कि अब ट्रंप और उनके समर्थकों ने गलत मान ली है। ट्रंप ने स्पष्ट कहा है कि हालांकि मैं चुनाव के नतीजों से पूरी तरह असहमत हूं, इसके बावजूद 20 जनवरी को व्यवस्थित तरीके से सत्ता का हस्तांतरण होगा।..... इस निर्णय के साथ ‘राष्ट्रपति के तौर पर शानदार पहले कार्यकाल का अंत हो गया है।’ उन्होंने हार नहीं स्वीकार की है। चुनाव में धांधली के बारे में अपने दावों को दोहराते हुए ट्रंप ने कहा कि अमेरिका को फिर से महान बनाने के लिए यह हमारे संघर्ष की शुरुआत है। तो इसका अर्थ समझना होगा।

आप इस पूरे प्रकरण के दूसरे पक्ष को नजरअंदाज नहीं कर सकते। करेंगे तो सच नहीं समझ पाएंगे। यह भी देखना होगा कि ट्रंप समर्थकों में रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों की बड़ी संख्या है। रिपब्लिकन पार्टी के नताओं में भी ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है जो मानते हैं कि बिडेन की विजय धांधली के द्वारा हुई है और वे ट्रंप के रवैये का समर्थन कर रहे हैं। चुनाव परिणाम के बाद एक समाचार पत्र पॉलीटिको मॉर्निंग कंसल के सर्वे में बताया गया था कि निष्पक्ष चुनाव पर विश्वास न करने वाले रिपब्लिकन समर्थकों की संख्या चुनाव के दिन 35 प्रतिशत थी जो परिणाम के बाद 70 प्रतिशत हो गई। यह एक असाधारण स्थिति है।

यह भी ध्यान रखिए कि हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव एवं सीनेट में रिपब्लिकन सांसदों ने ही कुछ राज्यों में बिडेन की जीत के खिलाफ आपत्ति दर्ज कराई थी जिन्हें खारिज कर दिया गया। जिन राज्यों में मामले न्यायालय में ले जाए गए या उच्चतम न्यायालय में भी दो मामले गए वह सब अकेले ट्रंप के कारण नहीं हुआ। रिपब्लिकन पार्टी के लोग उसमें शामिल रहे हैं। कैपिटल हील में नीले कुर्ते और लाल टोपी लगाए इतने बड़े समूह को देखने के बावजूद अगर हम नहीं समझ रहे तो मान लीजिए आपने ट्रंप के आविर्भाव के साथ वहां की राजनीति तथा स्वयं रिपब्लिकन पार्टी की वैचारिकता, व्यवहार तथा सदस्यों में आए बदलाव का गहराई से विश्लेषण नहीं किया है।
नीला और लाल रिपब्लिकन पार्टी के झंडे का रंग ही तो है। यह सामान्य बात नहीं है कि अमेरिका जैसे देश में लोग चुनाव में पराजित घोषित किए गए एक राष्ट्रपति को बनाए रखने के लिए इस सीमा तक  जा रहे हैं। अमेरिकी संसद के सामने ऐसी स्थितियां कम ही आई होंगी जब प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए लाठियों के साथ-साथ गोली चलाना पड़ा होगा। लोग घायल हुए और मरे भी हैं।

अगर हम 3 नवंबर को हुए चुनाव के बाद से अब तक ट्रंप और उनके समर्थकों की गतिविधियों, उनके सारे बयानों का विश्लेषण करें तो निष्कर्ष एक ही आएगा कि जो बिडेन के शपथ लेने के बाद भी उनका अभियान चलता रहेगा। संसद का घेराव या हमले का मुख्य कारण यह था कि अमेरिकी संसद द्वारा जो बिडेन की जीत पर अंतिम संवैधानिक मुहर लगनी थी। अमेरिका में मतदाता इलेक्टर्स का चुनाव करते हैं और इलेक्टर्स राष्ट्रपति का। इलेक्टर्स के मतों की संख्या 538 है। सं विजय के लिए 270 मत चाहिए। जो बिडेन को 306 और ट्रंप को 232 वोट मिलना घोषित किया गया।

संसद का दोनों सदन यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट एक साथ बैठकर 4 सदस्यों का चुनाव करती है जो नाम लेकर यह बताते हैं कि किस इलेक्टर्स ने किसको वोट दिया। उसके आधार पर विजेता के नाम पर अंतिम मुहर लग जाती है। ट्रंप नहीं चाहते थे कि ऐसा हो पाए। हालांकि उनके समर्थकों के हिंसक विरोध के बावजूद संसद ने अपना काम किया और जो बिडेन निर्वाचित घोषित कर दिए गए। उसके बाद वे क्या करते? तत्काल उनके पास यही रास्ता था कि शपथ लेने दो। अमेरिका की संवैधानिक परंपरा के अनुसार 20 जनवरी के पहले ट्रंप को व्हाइट हाउस छोड़ना पड़ेगा। अगर वह नहीं छोड़ते तो अमेरिका में पहली बार सुरक्षाबल एक निर्वतमान राष्ट्रपति को बाहर करते।

अगर ऐसी नौबत आती तो उनके समर्थक अमेरिका में क्या करते इसकी कल्पना से भी भय पैदा हो रहा था। वैसे चुनाव नतीजे आने के बाद से ही ट्रंप समर्थक जगह-जगह भारी संख्या में उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। वाशिंगटन में विशाल जन समुदाय ने प्रदर्शन किया जिसकी चर्चा दुनिया भर में हुई। हर जगह रैलियों में भारी भीड़ देखी गई। कई जगह भीड़े हिसंक भी हुई। उसका विरोधियों से टकराव भी हुआ। पुलिस को जगह-जगह हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। यह क्रम जारी है। चूंकि ऐसा अमेरिका में पहले कभी हुआ नहीं इसलिए तटस्थ लोग इसे हैरत भरी दृष्टि से देख रहे हैं। चुनाव से लेकर परिणाम तक अमेरिका की राजनीति और मीडिया का गहराई से विश्लेषण करिए, ट्रंप के बयानों को देखिए, उनके अब तक सामने आए चरित्र का भी विश्लेषण करिए तथा उनके कारण अमेरिका में आए वैचारिक बदलाव को पढ़िए तो आप साफ कहेंगे कि यह सब कतई अजूबा नहीं है।

निस्संदेह, लोकतंत्र में विश्वास करने वाले हम सब ट्रंप और उनके समर्थकों की निंदा करेंगे। एक बार विरोधी उम्मीदवार के निर्वाचित घोषित होने और उस पर भी न्यायालयों की मुहर लग जाने के बाद शालीनता इसी में है कि आप अपनी पराजय स्वीकार करें और शांति से सत्ता हस्तांतरित होने दें। ट्रंप और उनके समर्थक इसके विपरीत आचरण कर रहे थे और ट्रंप सत्ता हस्तांतरण तो होने दे रहे, पर पराजय स्वीकारने को तैयार नहीं। निंदा और आलोचना करते हुए हमें यह भी विचार करना होगा कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई है? अगर ट्रंप पूरी तरह गलत हैं तो इतनी भारी संख्या में ट्रंप समर्थक उनके लिए मरने-मारने तक पर क्यों उतारु हैं? वे क्यों चाहते हैं कि चाहे जो करना पड़े ट्रंप ही राष्ट्रपति रहें? ट्रंप ने चुनाव प्रचार से लेकर राष्ट्रपति के पूरे कार्यकाल में अपनी भूमिका से अमेरिका के राजनीतिक-सामाजिक मनोविज्ञान को व्यापक पैमाने पर बदल दिया है। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही अमेरिका फर्स्‍ट का नारा देते हुए यह भावना पैदा किया कि हमारे देश में नेताओं,पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो दुनिया में अपने को शांति का मसीहा, मानवाधिकारवादी आदि साबित करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाता है।

उन्होंने जिस तरह मुखर होकर इस्लामिक आतंकवाद पर हमला बोला उसने अमेरिका जनता को व्यापक पैमाने पर आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि कुछ देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर अनेक प्रकार के बंदिशें होंगी और व्यवहारिक रूप में उनमें से कुछ को लागू भी किया। यह अमेरिकी राष्ट्रवाद का ऐसा विचार है जिसकी जमीन वहां तैयार थी। इन सब से रिपब्लिकन पार्टी ही नहीं, पूरी राजनीति और अमेरिकी समाज में जो आलोड़न हुआ, जिस तरह की सोच घनीभूत हुई उन्हीं की परिणति चुनाव परिणामों के बाद से संसद पर हमले तक दिखी। ये कतई आश्चर्य के दृश्य नहीं थे और आगे भी नहीं होंगे। आप ट्रप को पसंद करें या नापसंद सच यह है कि उन्होंने 4 साल के कार्यकाल में अमेरिका को आर्थिक रूप से संभाला है, विदेश नीति को अमेरिकी हितों के अनुरूप पटरी पर लाया है, रक्षा ढांचे और नीतियों को पहले के कई राष्ट्रपतियों से बेहतर किया है तथा आंतरिक सुरक्षा को पहले से ज्यादा सशक्त किया है। आप अगर पूर्व के कई राष्ट्रपतियों से तुलना करेंगे तो वे एक सफल राष्ट्रपति घोषित किए जाएंगे।

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश इजराइल के साथ संबंध विकसित करेंगे इसकी भ्कल्पना नहीं की जा सकती थी। ट्रंप की कुशल विदेश नीति के कारण ही यह असंभव घटित हुआ। वे जिस ढंग से मुखर होकर अमेरिका विरोधी देशों पर हमला करते रहे, चीन को लगातार कटघरे में खड़ा किया, उस पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाए.. उन सबका व्यापक समर्थन अमेरिका में है। अगर कोरोना अमेरिका में भयावह रूप नहीं लेता तो ट्रंप को कोई पराजित नहीं कर सकता था। वहां एक धारणा यह बन रही है कि चूंकि ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए वहां दोनों दलों में अपने को महाज्ञानी मानने वाले नेताओं, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, एक्टिविस्टों, पत्रकारों, मीडिया मालिकों, थिंक टैंकों...सबसे अकेले लोहा लिया, इसलिए सबने एकजुट होकर उनको जबरदस्ती हरा दिया है। यह भावना फैलती जा रही है। तो फिर?

ट्रंप ने संघर्ष का ऐलान कर दिया है। यहां से अमेरिका की राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत हो रही है। एक ऐसे दौर की जिसमें एक नेता आने वाले समय में ऐसी राजनीति को अंजाम देगा जिसका हम आप पहले से अनुमान नहीं लगा सकते। वह अमेरिकी शासन के उन कदमों का मुखर विरोध करेगा, अपने समर्थकों को उनके खिलाफ सड़क पर उतारेगा जो उसे स्वीकार नहीं होगा।

इस तरह अमेरिकी संसद के घेराव या उस पर हमले को आप भविष्य की घटनाओं का ट्रेलर मान सकते है। इसके साथ अमेरिका में टकराव की एक नई राजनीति की शुरुआत हो गई है जिसकी एक वैचारिकता है। ट्रपं वर्तमान राष्ट्रपतियों के विपरीत राजनीति में सक्रिय रहेंगे। वे अपने समर्थकों के बीच रहेंगे और निश्चय मानिए कि वह अगला चुनाव हर हाल में लड़ने की कोशिश करेंगे। अगर रिपब्लिकन पार्टी उनकी उम्मीदवारी को नकारती है तो संभव है कि वे नई पार्टी बना कर स्वयं को ही उम्मीदवार घोषित कर चुनाव मैदान में उतर जाएं। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रवाद पर आधारित अपने विचारों, कदमों तथा भविष्य की नीतियों की घोषणाओं से समर्थकों का जितना व्यापक, मुखर और आक्रामक समूह खड़ा कर दिया है वह आसानी से लुप्त नहीं हो सकता। लंबे समय तक ट्रंपवाद अमेरिकी राजनीति में गूंजित होगा। तो तैयार रहिए अमेरिका में ट्रंप के नेतृत्व या उनके इर्द-गिर्द घटित होने वाली ऐसी घटनाओं का साक्षी बनने के लिए जिसके बारे में हम आप तो छोड़िए अमेरिकी जनता ने भी कभी विचार नहीं किया होगा। अमेरिकी प्रशासन को तो इन सबसे निपटने की तैयारी करनी ही होगी इस तरह की राजनीति के विरोधी लोगों को भी इसका सामना करने के लिए अपनी सोच और आचारण में व्यापक बदलाव करना होगा।

(इस लेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक की निजी राय और अनुभूति है, वेबदुनिया डॉट काम का इससे कोई संबंध नहीं है)

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