Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मुंबई के बाद अब पुणे में भी सजने लगी कद्रदानों की महफ़िल ‘चौपाल’

हमें फॉलो करें मुंबई के बाद अब पुणे में भी सजने लगी कद्रदानों की महफ़िल ‘चौपाल’
webdunia

स्वरांगी साने

कला-संस्कृति से आपका ज़रा भी नाता हो तो आपको मुंबई की चौपाटी के अलावा मुंबई की चौपाल के बारे में भी पक्का पता होगा। पारिवारिक माहौल में बड़ी सादगी से होने वाली साहित्यिक-सांस्कृतिक गोष्ठी की ख़ासियत इस किस्से से जानी जा सकती है।

जाने-माने ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह ने ख़ुद फ़ोन किया था कि कभी उन्हें भी चौपाल में बुलाया जाए। उनकी इस इच्छा को उन्हीं के शब्दों में जानते हैं। अब ऐसी महफ़िलें कहां सजती हैं, जहां अच्छे कद्रदान हों। एक चौपाल में उनकी आमद हुई और उन्होंने लोकप्रिय ग़ज़ल ‘आहिस्ता-आहिस्ता’ से शुरुआत की।

चौपाल के चार साथी प्रणेताओं में से एक लेखक-संगीतज्ञ,कलाकार शेखर सेन ने उनसे कहा कि वे ऐसी ग़ज़लें न सुनाएं, जो सबने सुनी हों। कोई ऐसी कंपोज़िशन सुनाएं जो कंपोज़ की गई हों पर रिकॉर्ड न हुई हों या रिकॉर्ड तो हुई हों पर रिलीज़ न हो पाई हों और जगजीत सिंह ने उनकी ऐसी कई नायाब ग़ज़लें उस चार घंटे की महफ़िल में सुनाईं।

ग्लैमर से दूर की चौपाल में उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों को भी साझा किया कि कैसे पान की गुमटी के आकार के छोटे कमरे में अन्य तीन लोगों के साथ वे रहते थे। बैठने तक के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी तो वे अलग-अलग शिफ़्ट में काम करते ताकि कमरे में कुछ जगह बनी रहे। अलमारी नहीं थी, चार जेबों वाली एक कमीज़ की एक जेब ही एक की अलमारी होती थी, जिसमें वह उसे आई कोई चिट्ठी, थोड़े पैसे या ऐसी ही कोई जमा पूंजी रख लेता था।

चौपाल ऐसा मंच है, जहां कलाकार अपनी दिल की बात कह सकता है। मंच पर कलाकार अलग तरह से पेश आता है, हंसते-मुस्कुराते चेहरे के साथ। उसके मन के दुःख वह यहां साझा कर सकता है। शेखर सेन कहते हैं, जब हमने सलिल चौधरी पर चौपाल की तो उसमें हॉलैंड से एक सज्जन आए थे, जिन्होंने पूरे जीवन भर केवल सलिल चौधरी के गीतों का संग्रह किया था। जब हमने जयदेव पर चौपाल की तो उसमें पं. रामनारायण, भूपेंद्र सिंह, नक्श लायलपुरी, गायक फय्याज़, जयदेव के एकमात्र जीवित रिश्तेदार उनकी बड़ी बहन के बेटे वे भी लंदन से उस चौपाल में शिरकत करने आए। चौपाल की सादगी सभी को छू जाती है। मुंबई में 1998 से चौपाल जारी है।

लगान फ़िल्म में मुखिया की भूमिका से जाने जाते सिने अभिनेता राजेंद्र गुप्ता के घर के आंगन में एक छह इंच ऊंचा मंच बना था। राजेंद्र जी बहुत अच्छे मित्र हैं, तो उन्होंने एक बार कह दिया कि इस मंच का क्या करें, मैंने कहा चौपाल बन सकती है। पहले महीने में दो बार होती थी, फिर एक बार होने लगी। किसी एक विषय पर केंद्रित।
चौपाल के कुछ नियम बनाए गए, जिसमें से पहला नियम था कि कोई नियम नहीं होगा। कोई अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष नहीं होगा। न किसी से पैसे लिए जाएंगे, न दिए जाएंगे। किसी एक को नेतृत्व सौंप दिया जाएगा और जो नेतृत्व करेगा वह गायक, वादक, नर्तक, कवियों-नाट्यकर्मियों को इकट्ठा करेगा और उन्हें प्रस्तुति देने के लिए कहेगा।

इस तरह मुंबई की चौपाल की यादों को अपने ज़ेहन में संजोए शेखर सेन दो साल पहले मुंबई से पुणे रहने आए, लेकिन कोविड आ गया और सब बंद हुआ तो चौपाल भी बंद हो गई पर वे कहते हैं कि कलाकार को हमेशा आशावादी होना चाहिए। हमने चौपाल में भी इसी आशा को जीवित रखा था। जो आता है हम उसे चौपाली मान लेते हैं, जो नहीं आ पाता, उसे हम भविष्य का चौपाली मानते हैं, आज नहीं आया तो वह कल आएगा।

सही समय पर कार्यक्रम शुरू करने की परंपरा के निर्वाह के साथ पुणे से कुछ दूर बैंगलुरु-मुंबई हाईवे पर लोढ़ा बेलमोंडो के एक विला में किसी पारिवारिक गोष्ठी की तरह यह चौपाल जमी थी। पुणे में इस तरह की यह दूसरी गोष्ठी थी। अपने एकपात्रीय प्रयोगों की श्रृंखला के ‘कबीर’ का एक अंश शेखर सेन ने प्रस्तुत किया। ख़्यात शास्त्रीय गायक पं. अजय पोहनकर और लेखक-संगीतज्ञ,कलाकार शेखर सेन ने सुर छेड़ें ‘सजनवा तुम क्या जानो प्रीत’... तो उस बंदिश और सरगम की नोक-झोंक चौपाल को एक अलग ही रंग दे गई।

पद्मश्री शेखर सेन के साथ तबला वादक पद्मश्री विजय घाटे तथा ख्यात गायक पं. शौनक अभिषेकी भी उसी जाजम पर विराजमान हो गए और लगा चौपाल सज गई। इस अवसर श्वेता सेन, जया सरकार, स्वरांगी साने, संजय भारद्वाज एवं ओंकार कुलकर्णी ने भी प्रस्तुति दी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हरा सेबफल है शरीर के लिए लाभकारी, जानिए 5 फायदे