एक शाम एक सम्राट अपने महल में प्रवेश कर रहा था तो उनने देखा की बड़े से द्वार पर एक बूढ़ा प्रहरी खड़ा है और पुरानी तथा पतली सी वर्दी उसने पहन रखी है और वह भी सर्दी के दिन में।
सम्राट ने रथ को रुकवाया और रथ से उतरकर वह उसके पास गया और उसने बूढ़े प्रहरी से पूछा, 'सर्दी नहीं लग रही?'
प्रहरी ने बड़ी ही विनम्रता से कहा, बहुत लग रही है सम्राट परंतु क्या करूं। गर्म वर्दी है नहीं है मेरे पास, इसलिए सहना को करना ही पडेगी।।
सम्राट ने कहा, 'ठीक है, मैं अभी महल के भीतर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूं तुम्हे।'
यह सुनकर प्रहरी प्रसन्न हो गया और सम्राट को झुककर धन्यवाद देने लगा। अब उसके भीतर एक उम्मीद जाग गई थी।
सम्राट भीतर गया और किसी काम में उलझकर भूल ही गया कि उसे प्रहरी के लिए गर्मी वर्दी भेजना है। प्रात: काल उस द्वार पर उस बूढ़े प्रहरी की अकड़ी हुई लाश मिली और पास ही भूमि की मिट्टी पर उसकी अंगलियों से लिखी गई ये सीख भी, सम्राट दीर्घायु हों! वे हमेशा तरक्की करें। मैं कई वर्षों से सर्दियों में इसी पतलीसी वर्दी में पहरा दे रहा था। परंतु कल रात आपके द्वारा गर्म वर्दी देने के वादे ने मेरी जान निकाल दी।
सीख : व्यक्ति को किसी से भी किसी भी प्रकार की उम्मीद नहीं करना चाहिए। उम्मीद और सहारे आदमी को भीतर से खोखला और कमजोर कर देते हैं। अपनी शक्ति के बल पर ही जीना चाहिए। खुद की शक्ति पर भरोसा करना सीखें।