कोरोना वायरस महामारी के दौर में हर कोई संकट से जूझ रहा है। भय और घबराहट के चलते हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ जाते हैं। लोगों ने समझदारी और धैर्य से काम लेना छोड़ दिया है जिसके चलते वे ज्यादा परेशान हो रहे हैं। ऐसे में आपको गीता की 5 खास बातें ध्यान रखकर आगे बढ़ना चाहिये। ऐसा करेंगे तो आप संकट से बाहर निकल आएंगे, क्योंकि संकट काल में साहस होना जरूरी है।
1. मृत्यु से भी बढ़कर हैमृत्यु का भय: 'न कोई मरता है और न ही कोई मारता है, सभी निमित्त मात्र हैं...सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर के थे, मरने के उपरांत वे बिना शरीर वाले हो जाएंगे। यह तो बीच में ही शरीर वाले देखे जाते हैं, फिर इनका शोक क्यों करते हो।' कोई भी अमरजड़ी खाकर पैदा नहीं हुआ है। कोई जल्दी मरेगा तो कोई देर से। मृत्यु का भय मत पालो। मरना तो सभी को एक ना एक दिन है। जो बना है वह फना है।
2. आत्मा अजर अमर है : आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है। जो लोग यह मानते हैं कि मरना सिर्फ शरीर है आत्मा नहीं। मेरे अपने जो मर गए असल में वे मरे नहीं हैं उन्होंने तो देह छोड़ी है। वे कहीं और जन्म लेंगे। क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।
3. कोई हमारा अपना नहीं है : गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन तेरे और मेरे कितने ही जन्म हो चुके हैं। आज जिसे तू अपना समझ रहा है वे पूर्व जन्म मैं तेरे नहीं थे। मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। मैं उन सभी जन्मों के बारे जानता हूं, लेकिन तू नहीं जानता।
4. क्रोध का त्याग कर दें : क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
5. अब पढ़िए गीता का सार :-
• क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।
• जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिंता न करो। वर्तमान चल रहा है।
• तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
• खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
• परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
• न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा, परंतु आत्मा स्थिर है- फिर तुम क्या हो?
• तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिंता व शोक से सर्वदा मुक्त है।
• जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवनमुक्त का आनंद अनुभव करेगा।