Motivational Story : छहदंत हाथी की कहानी

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जातक कथाएं गौतम बुद्‍ध के पिछले जन्मों की कहानियां हैं। जातक कथाओं में गौतम बुद्ध के लगभग 549 पूर्व जन्मों का वर्णन मिलता है। आओ जानते हैं इन्हीं कथाओं में से एक छहदंत की कहानी।
 
 
सदियों पहले हिमालय के घने वनों में हाथियों की 2 प्रजातियां रहती थीं। पहली का नाम था छहदंत और दूसरी का नाम उपोसथ था। छहदंत अपने विशाल छह दांतों के कारण प्रसिद्ध थी। इन हाथियों का सिर और पैर किसी मणि की तरह सुर्ख लाल दिखाई देते थे। छहदंत हाथियों का मुखिया कंचन गुफा में रहा करता था और उसका नाम था छहदंतराज। छहदंतराज की महासुभद्दा और चुल्लसुभद्दा नाम की दो रानियां थीं।
 
एक दिन छहदंत हाथियों का मुखिया छहदंतराज अपनी दोनों रानियों के साथ पास के एक सरोवर में स्नान करने गया। उसी सरोवर के किनारे एक पुराना विशाल वृक्ष लगा हुआ था। उस वृक्ष पर लगे फूल बड़े ही सुंदर और सुगंधित थे जो मन को मोह रहे थे। छहदंतराज हाथी ने खेल-खेल में अपनी सूंड से उस वृक्ष की एक डाल को कसकर हिलाया। इससे डाल पर लगे फूल महासुभद्दा पर झड़ने लगे और वह अपने हाथी पति से बहुत प्रसन्न हुई। वहीं, वृक्ष की सूखी डाल पुराना होने के कारण मुखिया छहदंतराज की सूंड का जोर झेल न सकी और टूटकर फूल समेत मुखिया छहदंतराज की दूसरी रानी चुल्लसुभद्दा के ऊपर जा गिरी।
 
यह घटना संयोगवश घटी थी, परंतु चुल्लसुभद्दा ने इसे अपना अपमान माना और उसी वक्त मुखिया हाथी को छोड़कर कहीं दूर चली गई। जब मुखिया को इस बात का पता चला, तो उसने चुल्लसुभद्दा को बहुत ढूंढा, परंतु वह कहीं नहीं मिली।
 
कुछ समय बाद चुल्लसुभद्दा की मृत्यु हो गई और दूसरे जन्म में वह मद्द राज्य की राजकुमारी के रूप में पैदा हुई। युवा होने पर उसकी वाराणसी के राजा से विवाह हुआ और वह राजा की पटरानी बनी। परंतु आश्चर्य कि पुनर्जन्म के बाद भी वह छहदंतराज द्वारा भूलवश हुए उस अपमान को भूली नहीं और उसका बदला लेने का सोचती रही।
 
एक दिन अवसर पाकर उसके वाराणसी के राजा को छहदंतराज के दांत हासिल करने के लिए उकसाया। परिणामस्वरूप कुछ कुशल निषादों के समूह को राजा ने छहदंतराज के दांत लाने के लिए भेज दिया। छहदंतराज के दांत लाने के लिए रवाना हुई टोली का नेता था सोनुत्तर।
 
सोनुत्तर करीब 7 वर्ष का सफर तय करके छहदंतराज के निवास पर पहुंचा। उसने छहदंतराज को पकड़ने के लिए और अपना शिकार बनाने के लिए उसके निवास से कुछ दूरी पर एक बड़ा गड्ढा बनाया। गड्ढे को छिपाने के लिए उसने उसे पत्तियों और छोटी लकड़ियों से ढक दिया और खुद झाड़ियों में छिप गया।
 
जैसे ही छहदंतराज उस गड्ढे के नजदीक पहुंचा, तो सोनुत्तर ने विष बुझा तीर निकाल कर छहदंतराज पर छोड़ दिया। तीर से घायल होने के बाद जब छहदंतराज की नजर झाड़ियों में छिपे सोनुत्तर पर पड़ी, तो वह उसे मारने के लिए दौड़ा। परंतु जैसे ही उसे मरने की सोची तभी उसने देखा कि यह तो संन्यासियों के वस्त्र पहन रखा है। चूंकि सोनुत्तर संन्यासियों के वस्त्र पहनकर आया था, इसीलिए छहदंतराज ने सोनुत्तर को जीवनदान दे दिया।
 
छहदंतराज के इस तरह के व्यवहा को देखकर और जीवनदान पाकर सोनुत्तर का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने छहदंतराज को सारी कहानी कह सुनाई और छहदंतराज पर घायल करने का उद्देश्य भी बताया। जीवनदान मिलने के कारण सोनुत्तर छहदंतराज के दांत नहीं काट सकता था, इसलिए छहदंतराज ने मृत्यु से पहले खुद ही अपने दांत तोड़कर सोनुत्तर को दे दिए।
 
छहदंतराज के दांत पाकर सोनुत्तर वाराणसी लौट आया और गजराज छहदंतराज के दांत रानी के समक्ष रख दिए। साथ ही सोनुत्तर ने रानी को यह भी बताया कि किस तरह गजराज ने उसे जीवनदान देकर खुद अपने दांत दे दिए। यह सुनकर रानी को बहुत पछतावा हुआ और वह छहदंतराज की मौत का समाचार सहन नहीं कर सकी और समदे में उसकी भी मृत्यु हो गई।
 
कहानी से सीख : एक गलतफहमी या शंका आपके जीवन को बदल सकती है और दूसरा यह कि कभी भी किसी के प्रति बदले की भावना ना रखें।

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