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Hindi Poem on Maa : अब तुम मुझको मां नहीं लगती

हमें फॉलो करें poem on mothers day 2023
शिरीन भावसार 
अब तुम मुझको मां नहीं लगती
रिश्तों के अथाह समंदर से 
गुज़रने के पश्चात
उम्र के जिस पड़ाव पर मैं खड़ी हूं,
जब तुम्हें वहां से देखती हूं 
सच कहती हूं    
तब तुम मुझको मां नहीं लगती.
इस जीवन सफ़र में
संवार कर सबको
बढ़ जाने दिया,
बह जाने दिया तुमने
किन्तु थाम कर हाथ तुम्हारा
बहा ले जाएं कोई साथ तुम्हें भी,
आंखों में जब तुम्हारी
वो उम्मीद का तारा देखती हूं 
सच कहती हूं
तब तुम मुझको मां नहीं लगती.
नमन ,वंदन, स्तवन के शब्दों से परे भी
कई शब्द होते हैं 
जिन्हें सुनना चाहती हो तुम,
यह महसूस करने लगी हूं अब.
आंखों में स्नेहयुक्त 
लालसा 
के साथ 
जब तुम्हें तकता पाती हूं 
सच कहती हूं 
तब तुम मुझको मां नहीं लगती.
अब भी हो तुम अटल
स्थान पर अपने,
आंचल से अपने बुहार कर
पगडंडियों को राहें बनाती,
दिशा ज्ञान कराती.
देखती हूं जब तुम्हें
नींव का पत्थर हो जाते 
सच कहती हूं 
तब तुम मुझको मां नहीं लगती.
देहरी से तेरी कदम बाहर रख
हर रिश्ते को जीते हुए,
जीवन के कई पड़ाव पार कर
जिस मुक़ाम पर हूं मैं,
अब तेरी वेदना-संवेदना की,
समर्पण की,स्नेह की,स्पर्शों की 
भागीदारिणी हो गई हूं मैं
क्योंकि अब सिर्फ बिटिया 
नहीं रही हूं मैं,स्त्री हो गई हूं.
इसीलिए तो
 सच कहती हूं 
अब तुम मुझको मां नहीं लगती.
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