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विशाल मिश्रा
सर पे माँ की दु्आओं का आशियाना है
हमारे पास तो ये अनमोल खज़ाना है
बचपन में जब मैं स्कूल जाता तो मम्मी-पापा के पैर छूकर जाता। मम्मी आशीर्वाद देतीं और पूछती बेटा, पेन, पेंसिल सब रख लिया है। अब ऑफिस आने के पहले जाता हूँ तो आशीर्वाद देती हैं पूछती हैं बेटा बैग, टिफिन, गाड़ी की चाबी रख ली? बिल्कुल अहसास होता है उसी बचपन का।
शुरू से ही माँ के हाथ का बना खाना खाते रहे। शादी हुई बीवी और भाभी ने किचन में माँ की जगह ली। दाल, सब्जी और अन्य पकवान कई तरह के प्रयोग कर बनातीं। कभी इस तरह से कभी उस तरह से लेकिन वह स्वाद नहीं आता। उनको बता-बताकर परेशान हो गया इस तरह से बनाओ तो वैसी बनेगी जैसी हम खाते आ रहे हैं लेकिन कहाँ से बनता। तब पढ़ी हुई बातें याद आईं कि दुनिया की कोई भी औरत माँ के जैसा खाना नहीं बना सकती।
ऑफिस से घर जाता हूँ। शूज भी नहीं उतारता कि माँ की आवाज आती है। चल बेटा रोटी परसूँ कि देर से खाएगा। माँ के बोल कानों में पड़ते हैं तो लगता है मानो 'वही धूल-मिट्टी में खेलने वाला छोटा सा बच्चा हूँ जोकि गोटियाँ या क्रिकेट खेलकर बाहर से आया हूँ और डपटते हुए कहती थीं। खाने का तो होश ही नहीं रहता है। जाओ वहीं मैदान पर रोटी नहीं मिलती है क्या। घर आते किसलिए हो।'
माँ को आदर-सम्मान के रूप में कितने ही ऊँचे सिंहासन पर क्यों न बैठा दिया जाए उसके आगे बहुत बौना ही है। मैं अपने एक स्कूली दोस्त के यहाँ जाता था तो वह और उसका भाई अपनी माँ को तू कहकर संबोधित करते। तो मैं थोड़ा अपने ऊपर गर्व करता कि चलो कम से कम अपने घर में तो इस तरह का चलन नहीं है। ये कैसे माँ को तू-तू करके बोलते हैं। आप या तुम नहीं बोल सकते।
नानाजी के घर जाता तो मामा-मौसी भी नानीजी को ऐ माँ तू ऐसा कर ले या वैसा कर ले। तो और भी आश्चर्य कि ये तो और अति हो गई कि मामा-मौसी तो उच्च शिक्षित हैं। फिर भी ऐसा व्यवहार। लेकिन वर्षों बाद घर पर एक बुजुर्ग विवाह समारोह में आए। पेशे से शिक्षक और काफी बुद्धिजीवी। बात निकलने पर उन्होंने बताया कि बेटा भगवान और माँ के लिए तू शब्द का उपयोग करना ही श्रेयस्कर है। तब पता चला कि हमारा वह दोस्त और मामा-मौसी ही सही थे।
प्रति हजार बच्चियों में से लगभग 50 को गर्भ में ही मौत की नींद सुला देना बहुत ही चिंताजनक आँकड़ा है। कोख में पल रही अपनी बच्ची की रक्षा कर अपनी ममता को बचाएँ और भविष्य में अपनी बच्ची के मातृत्व के हक के लिए भी आवाज उठाएँ।
माँ की महिमा बताते हुए राष्ट्रसंत मुनि तरुण सागर जी का कथन है '2 किलो का पत्थर 5 घंटे पेट से बाँधकर रखो, पता पड़ जाएगा माँ क्या होती है।'
क्या ढूँढे इस जग में प्रभु को
बात मेरी एक मान
माँ की सूरत से बढ़कर
क्या होंगे भगवान