Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

तुझे सब है पता, है ना माँ....

हमें फॉलो करें तुझे सब है पता, है ना माँ....
- पंकज जोशी

WD
हाल ही में एक मित्र के घर जाना हुआ था, सभी मित्रों की जीवनशैली में लेटनाइट पार्टीज़, डिस्को, मस्ती और वो सारी चीज़े शामिल थीं जो 21वीं सदी का भारतीय युवा शौक से करता है। हॉल में चर्चाओं का दौर चल रहा था, और अचानक ही कानों में गिटार की धुन गूँज उठी पर जब गानों के बोल सुने तो मन कितना खिल गया यह बताना शायद मुश्किल हो...

मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरे से डरता हूँ में माँ....यूँ तो मैं दिखलाता नहीं तेरी परवाह करता हूँ माँ... तुझे सब है पता है ना माँ... तुझे सब है पता मेरी माँ!

सुरमयी धुन में सजी ये पंक्तियाँ केवल सुनने में ही अच्छी नहीं लगीं। पर इन्हें गिटार पर सुनते ही मन ये सोचने लगा कि इनमें कुछ बात तो है, जो रॉक-पॉप, जैज़ के द‍ीवाने युग में भी ये चार पंक्तियाँ हर युवा के होंठों पर अचानक हीं चढ़ गईं। एनरिक, मैडोना, ब्रिटनी और कई आइडल्स के दीवाने युवा इस मद्धम गाने में छुपी गूढ़ बातों से बच नहीं पाए। माँ... अपने आप में एक ऐसा शब्द जिसे किसी संगीत, चर्चा, गोष्ठी या बड़े-बड़े आयोजनों की ज़रा भी आवश्यकता नहीं है। और जो किसी भी पीढ़ी की सोच से ऊपर नहीं हो सकता

क्यों ऐसा होता है कि एक ठोकर लगने पर भी हमारे मुँह से सबसे पहले ''उई माँऽऽऽऽ!'' निकलता है? क्यों ऐसा होता है कि नवजात सबसे पहले 'माँ' ही बोलता है? क्यों हम अपने हर डर, हर ख़ुशी, हर मस्ती, हर हार को सबसे पहले अपनी माँ से ही बाँटते हैं? इसका उत्तर देकर हम कोई विश्वस्तरीय प्रतियोगिता तो नहीं जीत सकते, लेकिन हाँ इसका उत्तर खोज कर हम अपने मन में छिपी उस रिश्ते की गहराई‍का अनुभव ज़रूर कर सकते हैं, जो हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक अपनी माँ के साथ कायम हो जाता है। बस हम इस रिश्ते के एहसास को अपनी माँ के साथ ही बाँटना कभी-कभी भूल जाते हैं

ये भी तो सच है कि इंसान भले ही सैकड़ों लोगों के बीच में रहे, उसकी कोई भी पहचान हो, उसका जीवन हमेशा ही 'मैं' के आसपास घूमता है. और ये भी संयोग है कि 'म' से ही 'माँ' भी है। ये भी तो एक रिश्ता है मैं और माँ के बीच का। कोई भी 'मैं' चाहे जितने ही प्रयास कर ले उसके अस्तित्व से 'माँ' कभी अलग नहीं हो सकती। 'मम्' और उसकी जननी का यही जुड़ाव है जो मैं को कभी माँ से अलग नहीं होने देता

हम भारतीयों की एक और ख़ासियत को कौन नहीं जानता। हम माँ के साथ एक अनोखी अगाध श्रृद्धा रखते हैं। हमारे लिए तो पावन गौ भी माँ है। देश के नाम पर जब भी जयघोष करते हैं तब भी तो हम भारत को माँ का ही दर्जा देते हैं। और कितने ही उदाहरण हैं इस 'माँ' की महत्ता सिद्ध करने के लिए

उस रात यही सब सोचते हुए मन बिलकुल शांत हो गया था। उन चार पंक्तियों की गूँज मन के हर कोने में बस चुकी थी। वैसे तो माँ सब जानती हैं, पर फिर भी मैंने उस रात माँ से बहुत बातें की जो काफ़ी दिनों से हम दोनों के बीच उधार थीं। माँ... कितना सुखद लगता है ना, ये एक ही शब्द बोलकर अपनी भावनाओं के सागर के हर उफ़ान को शांत करना।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi