Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

क्या मोदी मीडिया का एजेंडा तय कर रहे हैं..?

हमें फॉलो करें Brajmohan singh
, शनिवार, 6 सितम्बर 2014 (19:32 IST)
मोदी अपने ऑडियंस को भलीभांति जानते हैं। जिनको भी इस बात की शिकायत थी कि मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद बहुत कम बात करते हैं, सवालों का जवाब नहीं देते हैं, ट्विटर पर ट्वीट नहीं करते हैं, फ़ोन पर मैसेज कम करते हैं,  उन सबके सवालों का जवाब मोदी ने अपनी जापान यात्रा और उसके बाद, शिक्षक दिवस पर बच्चों से सीधा संवाद कायम करके दे दिया। यह सब कुछ इतना बताने के लिए काफी है कि मोदी को पता है कि कब, कितना बोलना चाहिए। उन्हें कम्युनिकेशन के सभी गुर आ गए हैं।
 
ज़रा गणित पर गौर फरमाएं। देश में कितने सरकारी और प्राइवेट स्कूल हैं? देश में दूसरी क्लास से लेकर दसवीं क्लास तक कितने बच्चे हैं, जिन्होंने मोदी का भाषण सुना। सही-सही और प्रामाणिक आंकड़े अभी किसी के पास नहीं हैं, लेकिन अंदाज़ के मुताबिक तकरीबन 18 लाख सरकारी और निज़ी स्कूलों के 12 करोड़ बच्चों से मोदी ने संवाद कायम किया। यह सब कुछ बिना किसी बजट के। (मानव संसाधन मंत्रालय ने इसके लिए कोई अलग से बजट का ऐलान नहीं किया)।
 
शक नहीं कि मोदी और उनके सलाहकार मीडिया के मनोविज्ञान को बखूबी समझते हैं। वह जानते हैं कि मीडिया के लिए एजेंडा कैसे सेट किया जाए। शिक्षक दिवस पर प्राइवेट और सरकारी मीडिया ने दिल खोलकर मोदी को दिखाया, लेकिन इसके लिए किसी पब्लिक रिलेशन कैंपेन की जरूरत कहां थी?
 
क्या पारंपरिक मीडिया के ज़रिए इतने लोगों तक पहुंच पाना संभव था? और अगर एक साथ इतने लोगों तक पहुंचने का सरकार ने प्रयास किया होता तो उसके लिए सौ करोड़ का बजट भी कम पड़ जाता और उस पर हज़ार सवाल होते वो अलग।
 
मोदी ने शिक्षक दिवस पर ऐसा कुछ नहीं कहा जिसको लेकर विवाद हो या जिसका अंदेशा सभी व्यक्त कर रहे थे। मोदी ने भविष्य के नेताओं के सामने चुनौती दी है कि वह सोच में किसी से भी मीलों आगे चल रहे हैं। अभी तक शिक्षक दिवस पर किसी ने यह क्यों नहीं समझा कि इस मौके को इतना बड़ा मौका बनाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में जो भी मोदी की आलोचना करेंगे, उनको दांतों तले अंगुली ही दबानी पड़ेगी।
   
लोग कहेंगे, मोदी ने इससे क्या हासिल किया? अभी चुनाव भी नहीं है, बच्चे वोटर भी नहीं हैं? गौर करने लायक बात है कि जो बच्चे शिक्षक दिवस के महाआयोजन में शामिल हुए वे पांच साल के बाद मतदाता बन जाएंगे। मोदी की अगर यह सोच है तो इस पर टिप्पणी करना अभी जायज़ नहीं है। क्योंकि बच्चे बड़े होंगे तो उनकी अपनी स्वतंत्र सोच बनेगी, लेकिन मोदी ने जितनी बातें कहीं उसमें से कुछ बातें बच्चों के ज़ेहन में ज़रूर घर कर जाएंगी। शिक्षक दिवस पर यह एक महायोजन था, उन बच्चों को देश, समाज, परिवार के प्रति बीजमंत्र देने का।
 
मोदी ने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह से सीधा उलट काम किया। मनमोहन सिंह खुद देश के जाने-माने अर्थशात्री प्रोफेसर थे, चाहते तो छात्रों को दिशा दे सकते थे, लेकिन उनकी चुप्पी उनकी कमजोरी बन गई। नरेन्द्र मोदी किसी ऑक्सफ़ोर्ड या कैंब्रिज में नहीं पढ़े थे, इस कमज़ोरी को अपना मजबूत पक्ष बना लिया। अब पारंपरिक मीडिया के पुरोधा इस बात पर विचार करेंगे कि मोदी का अगला कदम क्या होगा। 
 
यह देश बोलने वालों का देश है, जहां  लोग खूब बोलते हैं, खूब सुनते भी हैं। आपकी सुबह की चाय में मिठास हो या नहीं, आप गुड़ की डली देखकर ही खुश हो जाते हैं, आपके मुंह में पानी आ जाता है। बदलाव आने में वक़्त लगता है, आप उसकी आहट सुनकर दरवाज़े-खिड़कियां पहले खोल देते हैं। क्या यह कम है? 
वेबदुनिया हिंदी का एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें। ख़बरें पढ़ने और राय देने के लिए हमारे फेसबुक पन्ने और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi