इंदौर। पत्रकारिता में भाषा का विशेष महत्व है। जब तक हम भाषा का मान नहीं बढ़ाएंगे तब तक पत्रकारिता कैसे कर सकते हैं। खबरों को प्रस्तुत करने में भाषा की शुद्धता का विशेष महत्व है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रयोग से खबरों को प्रस्तुत करने का तरीका बदल गया है। सोशल मीडिया के वर्चस्व के चलते पत्रकारिता के समक्ष कई चुनौतियां हैं।
ये विचार देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा 'भारत में पत्रकारिता का भविष्य' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में आए विभिन्न वक्ताओं ने प्रस्तुत किए।
वक्ता वरिष्ठ पत्रकार और सलाहकार राहुल देव, एनडीटीवी के राजनीतिक संपादक अखिलेश शर्मा, पत्रकार और लेखक डॉ. मुकेश कुमार थे। अध्यक्षता देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नरेन्द्र धाकड़ ने की। प्रारंभ में पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला विभागाध्यक्ष डॉ. जयंत सोनवलकर ने पत्रकारिता की बदलती स्थिति पर प्रेजेंटशन प्रस्तुत किया।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने पत्रकारिता में भाषा की शुद्धता पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि भाषा की शुद्धता बनी रहनी चाहिए। हिन्दी भाषा लोकप्रियता के पैमाने पर अंग्रेजी से कम लोकप्रिय है। आज हिन्दुस्तानी समाज और परिवारों में हिन्दी भाषा में पढ़ना, व्यापार-व्यवसाय करना, दैनिक जीवन में हिन्दी का प्रयोग कम होता जा रहा है। आज से पचास साल बाद बच्चे अंग्रेजी भाषा को अपनी प्रथम भाषा के रूप में उपयोग करेंगे, यह विचारणीय प्रश्न है।
एनडीटीवी के राजनीतिक संपादक अखिलेश शर्मा ने कहा कि टेलीविजन शैशव अवस्था से किशोर अवस्था की ओर जा रहा है। अब पत्रकारिता का फोकस इंडिया से भारत की ओर जा रहा है। भारत यानी टी-2 शहर या ग्रामीण क्षेत्र। अखिलेश शर्मा ने भारत में फेसबुक, व्हाट्सएप और यूट्यूब के बढ़ते उपयोगकर्ताओं की संख्या को आंकड़ों के माध्यम से समझाया
टीवी पत्रकार सईद अंसारी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा संगोष्ठी में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि आज खबरों को प्रस्तुत करने का तरीका बदल गया है। अब न्यूज नहीं, व्यूज होते हैं। सवाल यह कि न्यूज होना चाहिए या व्यूज। सईद अंसारी ने पत्रकारिता में इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया से आज हर व्यक्ति पत्रकार बन गया है, लेकिन खबरों की विश्वसनीयता भी एक बड़ा प्रश्न है।
पत्रकार व लेखक डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि अनिश्चितता के इस दौर में पत्रकारिता के लिए लंबी भविष्यवाणी करना गलत है। मौजूदा ट्रेंड गौर से देखना जरूरी है। फेक और पेड न्यूज से न्यूज की विश्वसनीयता घटी है। पेड न्यूज ने पत्रकारिता को दागदार किया है। राजनीतिक दल, नेता फेक और पेड न्यूज का प्रयोग बखूबी करते हैं। गंभीर और असली मुद्दों पर बात नहीं होती। सच्ची खबर को पकड़ना मुश्किल है। मीडिया और पत्रकारिता को अलग करने की आवश्यकता है।