'कंगारु मदर केयर' तकनीक को इसके नाम से ही समझा जा सकता है। जैसे कि कंगारु बच्चे को अपने शरीर के अंग से चिपकाकर रखता है। इसी क्रिया से 'कंगारु मदर केयर' तकनीक का जन्म हुआ।
कई बार कुछ बच्चों का जन्म उम्मीद के समय से पहले ही हो जाता है। ऐसे में इन प्री मेच्योर शिशुओं का वजन बहुत कम होता है और स्वास्थ्य की समस्या इन शिशुओं से अधिक होती है। ऐसे समय बच्चों की देखभाल के लिए 'कंगारु मदर केयर' देने की सलाह डॉक्टर देते हैं।
इस तकनीक में शिशु के पैरेंट्स अपने नवजात बच्चे को कुछ समय के लिए अपने अंग से चिपकाकर रखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कंगारु अपने शिशु को अपने करीब रखता है और अपने बच्चे को गर्माहट देता है। ऐसा करने से बच्चे की कई तकलीफें स्वत: ही दूर हो जाती हैं।
'कंगारु मदर केयर' देते समय बच्चे को केवल डाइपर ही पहनाया जाता है और मां को भी ऐसा कुछ पहनाया जाता है जो आगे की तरफ से खुला हो, जिससे कि उसका पूरा शरीर पैरेंटस के करीब रह सके। ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान भी नवजात को मां की छाती से चिपकाया जाता है। ऐसा करने से मां के सीने की गति और सांसों से बच्चे को गर्माहट मिलती है, जिससे कि बच्चे की कई समस्याएं खुद ही हल हो जाती हैं।
'कंगारु मदर केयर' बच्चे के पैदा होने के तुरंत बाद से लेकर कई दिनों तक दे सकते हैं। नवजात बच्चों को तो दिन में कई बार 'कंगारु' तकनीक से देखभाल की जरूरत होती है। माता-पिता के दिल की धड़कन सुनने से बच्चे को आराम महसूस होता, उसकी हृदय गति सामान्य हो जाती है और उसे नींद भी अच्छी आती है।