Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मकर संक्रांति के कैसे-कैसे रूप, जानिए Interesting Facts

हमें फॉलो करें मकर संक्रांति के कैसे-कैसे रूप, जानिए Interesting Facts
, सोमवार, 10 जनवरी 2022 (16:00 IST)
हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति और गुड़ी पड़वा एकमात्र ऐसे त्योहार हैं जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से मनाए जाते हैं। इन्हें मनाए जाने की परंपरा भी बड़ी ही रोचक और मजेदार होती है। खासकर यह पर्व ऋतु परिवर्तन, फसल कटाई, बुआई और खगोलीय घटना के साथ ही पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं। आओ जानते हैं मकर संक्रांति की बहुरंगी परंपरा।
 
 
1. पोंगल : दक्षिण भारत में मकर संक्रांति का त्योहार पोंगल के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार गोवर्धन पूजा, दिवाली और मकर संक्रांति का मिला-जुला रूप है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। यह उत्सव लगभग 4 दिन तक चलता है। लेकिन मुख्य पर्व पौष मास की प्रतिपदा को मनाया जाता है। पोंगल अर्थात खिचड़ी का त्योहार। पोंगल के पहले अमावस्या को लोग बुरी रीतियों का त्यागकर अच्छी चीजों को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करते हैं। यह कार्य 'पोही' कहलाता है तथा जिसका अर्थ है- 'जाने वाली।' पोंगल का तमिल में अर्थ उफान या विप्लव होता है। पोही के अगले दिन अर्थात प्रतिपदा को दिवाली की तरह पोंगल की धूम मच जाती है।
 
 
2. लोहड़ी : पंजाब और हरियाणा एवं इनके प्रभाव क्षेत्र में इसे लोहड़ी कहते हैं। लोहड़ी बसंत के आगमन के साथ 13 जनवरी, पौष महीने की आखरी रात को मनाया जाता है। इसके अगले दिन माघ महीने की सक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है। वैसाखी त्योहार की तरह लोहड़ी का सबंध भी पंजाब के गांव, फसल और मौसम से है। लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं। इस दौरान रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।
 
 
3. बिहू : बिहू असम में फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है। यह फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। इसी त्योहार को पूर्वोत्तर क्षेत्र में भिन्न भिन्न नाम से मनाते हैं। एक वर्ष में यह त्योहार तीन बार मनाते हैं। पहला सर्दियों के मौसम में पौष संक्रांति के दिन, दूसरा विषुव संक्राति के दिन और तीसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है। पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू, विषुव संक्रांति को रोंगाली बिहू और कार्तिक माह में कोंगाली बिहू मनाया जाता है।
webdunia
Bihu festival
4. पतंग महोत्सव : गुजरात सहित कई राज्यों में यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अत: उत्सव के साथ ही सेहत का भी लाभ मिलता है।
 
5. संक्रांति उत्सव : कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का, तिल-गुड़ खाने का तथा सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व है। यह दिन दान और आराधना के लिए महत्वपूर्ण है। मकर संक्रांति से सभी तरह के रोग और शोक मिटने लगते हैं। माहौल की शुष्कता कम होने लगती है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। महाराष्ट्र में भी इसे संक्रांति कहते हैं। इस दिन महाराष्ट्र में महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं।
 
 
6. उत्तरायण, माघी या खिचड़ी उत्सव : इसके अलावा गुजरात और उत्तराखंड में इसे उत्तरायण उत्सव कहते हैं। हरियाणा, हिमाचल और पंजाब में इसका नाम माघी भी है। उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी उसत्व कहते हैं। 
 
7. भारतीय उपमाद्वी में मकर संक्रांति : भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों में जैसे बांग्लादेश में पौष संक्रान्ति, नेपाल में माघे संक्रान्ति या खिचड़ी संक्रान्ति, थाईलैण्ड में सोंगकरन, लाओस में पि मा लाओ, म्यांमार में थिंयान, कम्बोडिया में मोहा संगक्रान और श्री लंका में पोंगल एवं उझवर तिरुनल कहते हैं।
webdunia
Parsi Pateti Festival
8. ईरान का चहार-शंबे सूरी : ईरान में भी नववर्ष का त्योहार इसी तरह मनाते हैं। यह त्योहार भी लोहड़ी से ही प्रेरित है जिसमें आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। मसलन, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्योहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं। यह त्योहार नौरोज या नवरोज के एक दिन पहले मनाया जाता है।
 
 
नौरोज़ या नवरोज़, ईरानी नववर्ष का नाम है, जिससे पारसी धर्म के लोग मनाते हैं, परंतु ईरान के शियाओं भी इस त्योहार को इसलिए मनाते हैं क्योंकि यह उनकी प्राचीन संस्कृति का प्रमुख त्योहार है। यह मूलत: प्रकृति प्रेम का उत्सव है। प्राचीन परंपराओं व संस्कारों के साथ नौरोज का उत्सव न केवल ईरान ही में ही नहीं बल्कि कुछ पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है। पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, काकेशस, काला सागर बेसिन और बाल्कन में इसे 3,000 से भी अधिक वर्षों से मनाया जाता है। यह ईरानी कैलेंडर के पहले महीने (फारवर्दिन) का पहला दिन भी है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मकर संक्रांति : 12 राशि के 12 सूर्य मंत्र, 12 दान और 12 उपाय