भगवान महावीर स्वामी ने पंचमहाव्रत की शिक्षा दी है। यह ज्ञान उनसे पूर्व वेदों में और उनके बाद पतंजली योग सूत्र में मिलेंगे। पंच महाव्रत का पालन करने वाले को किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। वह पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
क्या है पंच महाव्रत : भगवान महावीर ने कैवल्य ज्ञान हेतु धर्म के मूल पांच व्रत बताए हैं। पंचमहाव्रतों का पालन मुनियों के लिए पूर्ण रूप से और गृहस्थों के लिए स्थूलरूप अर्थात अणुव्रत रूप से बताया गया है। हालांकि महावीर का धर्म और दर्शन उक्त पंच महाव्रत से कहीं ज्यादा विस्तृत और गूह्म है। यह देखने में सामन्य लगने वाले नियम गहरे में बहुत ही असरकारक और अर्थवान हैं।
पंच महाव्रत के नाम-
1.अहिंसा : छोटे से छोटे जीव को भी पीड़ा देना हिंसा है। किसी को भी मानसिक रूप से पीड़ा देना भी हिंसा है। इसलिए अहिंसा की प्रतिज्ञा करें।
2. सत्य : असत्य बोलना कई तरह से जीवन को कठिनाइयों में डालने वाला है। अत: कितनी भी कठिनाई आ जाए असत्य नहीं सत्य बोलना चाहिए।
3. अचौर्य : इसे अस्तेय भी कहते हैं। किसी भी प्रकार की वस्तु या विचार की चोरी करना आपके आत्म सम्मान के लिए सही नहीं है। यह पाप है।
4. अमैथुन : इस ब्रह्मचर्य भी कहते हैं। जैन साधुओं को पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। उनके नियम काफी सतर्कता भरे होते हैं। साधुओं के लिए स्री साध्वी के लिए पुरुष चाहे वह किसी भी उम्र का हो उनके लिए विजातीय स्पर्श निषिद्ध होते हैं।
5. अपरिग्रह : जैन मुनि किसी भी प्रकार का रुपया पैसा नहीं रखते और ना ही संपत्ति, वस्तु या विचारों का संग्रह करने हैं। संग्रह नहीं करना ही अपरिग्रह है।