महाभारत में एक ओर रिश्तों में प्यार है तो दूसरी ओर खून के रिश्तों का खून कर दिया जाता है। महाभारत की कहानी भी अजीब है। महाभारत में आप परिवार और रिश्तों की उलझनें देख सकते हैं। आओ जानते हैं महाभारत की उन महिलाओं के बारे में जोकि कमाल की थी। इसलिए क्योंकि उन्होंने सबकुछ होने के बावजूद रिश्तों को संभाल कर ही नहीं रखा बल्कि संपूर्ण महाभारत में अद्भुत भूमिका निभाई।
गंगा : गंगा शांतनु की पहली पत्नी थी। गंगा की खूबसूरती से आकर्षित होकर शांतनु के गंगा से शादी करने को कहा, जिसे गंगा ने स्वीकार कर लिया। लेकिन गंगा ने तीन शर्त भी रखी। पहली यह कि वह उनसे कभी भी सवाल नहीं करेंगे। दूसरी यह कि वे गंगा को कभी भी किसी कार्य को करने से नहीं रोकेंगे फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा। तीसरा शर्त यह कि यदि उन्होंने पूर्व की दो शर्तों में से किसी भी एक या दो को तोड़ा तो वह उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाएंगी। अब गंगा से जो भी पुत्र उत्पन्न होते थे गंगा उनको नदी में बहा देती थी। इस तरह 7 पुत्र बहाने के बाद शांतनु से रहा नहीं गया और उन्होंने आठवें पुत्र को बहाने से रोक कर सवाल पूछ लिया। तब गंगा ने बताया कि यह आठों वसु थे जिन्हें एक शाप के चलते धरती पर जन्म लेना पड़ा हलांकि नदी में बहाकर इन्हें मैं मुक्त भी करती गई। लेकिन अब तुमने शर्तों का उल्लघंन किया इसलिए यह आठवां पुत्र तुम्हारा और अब में पुन: स्वर्ग लौट रही हूं। इस तरह आठवें पुत्र का नाम देवव्रत रखा गया जो आगे चलकर भीष्म पितामह कहलाए।
सत्यवती : राजा शांतनु की पत्नी सत्यवती एक निषाद कन्या थी। शांतनु से विवाह से पूर्व उन्होंने पराशर मुनि से सहवास करके महान ऋषि वेदव्यास को जन्म दिया था। शांतनु तो मर गए। शांतनु से सत्यवती को दो पुत्र प्राप्त हुए। पहला पुत्र तो रोगवश मारा गया लेकिन दूसरा पुत्र विचित्रवीर्य की दो पत्नियां अम्बिका और अम्बालिका थीं। दोनों को कोई संतान नहीं हुई तो सत्यवती ने अपने ऋषि पराशर से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास से अम्बिका और अम्बालिका को गर्भधारण करवाया। अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु का जन्म हुआ, जबकि इस दौरान वेदव्यास के कारण एक दासी को भी पुत्र हुआ जिसका नाम विदुर रखा गया। अब आप सोचिए इन्हीं 3 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ। यह सब सत्यवती का कमाल ही था।
कुंति : सत्यवती के बाद गांधारी और कुंति ने ही राजमहल की राजनीति और कूटनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। इसमें कुंति को खास माना जाता है क्योंकि उन्होंने जिस तरह से अपने पांचों पुत्रों के लिए महल में जगह बनाई, वह कथा भी कमाल की है। पांचों पांडव पांडु के पुत्र नहीं होने के बावजूद कुंति ने उन्हें हस्तिनापुर के महल में न केवल जगह दिलाई बल्कि उनकी शिक्षा और दीक्षा का भी प्रबंध कराया था। इसके लिए उसे बहुत लंबी लड़ाई लड़ना पड़ी थी। सबसे पहले तो यह कि जब पांडु एक शाप के चलते अपनी पत्नी कुंति और माद्री से पुत्र उत्पन्न नहीं कर सकते थे। तब कुंति ने देवताओं का आह्वान कर पुत्रों तीन को जन्म दिया। धर्मराज से युद्धिष्ठिर, इंद्र से अर्जुन, पवनदेव से भीम को जन्म दिया। इस रीति से कुंति के विवाहपूर्व ही कर्ण जन्मे थे। कुंति ने माद्री को भी इसके लिए प्रेरित किया और माद्री ने दो अश्विनी कुमारों का आह्वान किया जिसके चलते नकुल और सहदेव का जन्म हुआ। पांडु और माद्री की जंगल में ही मृत्यु हो गई थी। दोनों की मृत्यु के बाद कुंति ने हस्तिनापुर का रुख किया और यहीं से शुरु हुई उसके संघर्ष की नई कहानी।
द्रौपदी : कहते हैं कि स्वयंवर में द्रौपदी कर्ण के गले में वरमाला डालना चाहती थी लेकिन सभा में कर्ण को सूत पुत्र कहे जाने के बाद द्रौपदी ने अपना निर्णय बदल दिया और वह असमंजस की स्थिति में पहुंच गई। अंतत: द्रौपदी का विवाह पांचों पांडवों से हो गया। द्रौपदी के पांचों पांडवों से विवाह की कहानी भी अजीब है, लेकिन इससे ज्यादा अजीब तो यह था कि द्रौपदी ने पांचों पांडवों से विवाह करने के बाद भी खुद की छवि को बरकरार रखा और अंत तक ही अपने वजूद को बचाए ही नहीं रखा बल्कि महाभारत के इतिहास में उसका नाम भी दर्ज हो गया। द्रौपदी के अलावा पांचों पांडवों की ओर भी पत्नियां थीं लेकिन द्रौपदी ने अपना औहदा जमाकर रखा। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे।
भानुमती : दुर्योधन की पत्नी भानुमती दुर्योधन से विवाह नहीं करना चाहती थी। दुर्योधन ने उसका हरण करने विवाह किया था। भानुमती सुंदर होने के साथ साथ युद्ध और कुश्ती कला में भी पारंगत थी। यह भी विख्यात है कि भानुमती कर्ण की मित्र थी। भानुमती के कारण ही यह मुहावरा बना है- कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा। भानुमती का एक पुत्र लक्ष्मण और एक पुत्री लक्ष्मणा थी। लक्ष्मणा ने तो श्रीष्ण के पुत्र साम्भ से विवाह कर लिया था और लक्ष्मण बलराम की पुत्री वत्सला को चाहता था लेकिन वह उससे विवाह नहीं कर पाया। वत्सला का विवाह श्रीकृष्ण के भांजे अभिमन्यु के साथ हुआ था। बलराम चाहते थे कि वत्सला की शादी दुर्योधन के बेटे लक्ष्मण से हो।
गंधारी ने सती पर्व में बताया है की भानुमती दुर्योधन से खेल-खेल में ही कुश्ती करती थी जिसमें दुर्योधन उससे कई बार हार भी जाता था। भानुमती को दुर्योधन और पुत्र लक्ष्मण की मौत का गहरा धक्का लगा था। लेकिन उसके बाद ऐसी किवदंति भी सुनने को मिलती है कि भानुमती ने पांडवों में से एक अर्जुन से शादी कर ली थी।
व्रूशाली और सुप्रिया : कर्ण की दो पत्नियां थी। दुर्योधन के रथ के सारथी सत्यसेन की बहन व्रूशाली कर्ण की पत्नी थी जिससे कर्ण की मृत्यु के बाद चिता पर ही समाधि ले ली थी। वह बेहत चरित्रवान और पतिव्रता थी। कर्ण की दूसरी पत्नी सुप्रिया थी। यह दुर्योधन की पत्नी भानुमती की अच्छी सहेली थी। व्रूशाली के मारे में मान्यता है कि उसने द्रौपदी को सलाह दी थी कि तुम महल छोड़कर अपने पिता या भाई के यहां चली जाओ। लेकिन द्रौपदी ने उसकी सलाह नहीं मानी। कुछ दिन बाद ही द्रौपदी का चीरहरण हो गया।
पांडवों की अन्य पत्नियां : द्रौपदी के अलावा पांडवों की अलग-अलग अन्य पत्नियां भी थी। युधिष्ठिर की दूसरी पत्नी देविका थी। देविका से धौधेय नाम का पुत्र जन्मा। अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक तीन और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ। भीम की हिडिम्बा और बलन्धरा नामक दो और पत्नियां थीं। हिडिम्बा से घटोत्कच और बलन्धरा से सर्वंग का जन्म हुआ। नकुल की करेणुमती नामक पत्नी थीं। करेणुमती से निरमित्र नामक पुत्र का जन्म हुआ। सहदेव की दूसरी पत्नी का नाम विजया था जिससे इनका सुहोत्र नामक पुत्र मिला।
सुभद्रा : सुभद्रा तो कृष्ण की बहन थी जिसने कृष्ण के मित्र अर्जुन से विवाह किया था, जबकि बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो। बलराम के हठ के चलते ही तो कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ। विवाह के बाद वे एक वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इंदप्रस्थ लौट आए। कृष्ण की बहन सुभद्रा और पत्नी सत्यभामा का महाभारत में अहम रोल था।
सत्यभामा : सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी थीं। राजा सत्राजित की पुत्री श्रीकृष्ण की 3 महारानियों में से 1 बनीं। सत्यभामा के पुत्र का नाम भानु था। सत्यभामा को एक और जहां अपने सुंदर होने और श्रेष्ठ घराने की राजकुमारी होने का घमंड था वहीं देवमाता अदिति से उनको चिरयौवन का वरदान मिला था जिसके चलते वह और भी अहंकारी हो चली थी। महाभारत में उसका चरित्र इसीलिए उभरकर सामने आते है क्योंकि वह राजकार्य और राजनीति में रुचि लेती थी। नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गए और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था। तभी नारदजी आए और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उस पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी थी। इस तरह सत्यभामा के कई किस्से प्रचलित है। सत्यभामा का घमंड अनुमानजी ने तोड़ा था।
उर्वशी : महाभारत में उर्वशी का उल्लेख मिलता है। उर्वशी एक अस्सरा थी। अर्जुन के पुर्वज पुरुरवा से उर्वशी ने प्यार किया था। ऊर्वशी और पुरुरवा बहुत समय तक पति पत्नी के रूप में साथ-साथ रहे। इनके नौ पुत्र आयु, अमावसु, श्रुतायु, दृढ़ायु, विश्वायु, शतायु आदि उत्पन्न हुए। एक बार अर्जुन इंद्र की सभा में अस्त्री विद्या सीखने हेतु उपस्थित थे। वहीं पर उर्वशी ने अर्जुन को देखा और वह मुग्ध हो गई। उर्वशी ने अर्जुन के समक्ष प्रणय निवेदन किया कुंति अर्जुन ने यह कहकर निवेदन ठुकरा दिया कि मैं तुम्हें माता समान समझता हूं। यह सुनकर उर्वशी को क्रोध आ गया। अत: अपनी इच्छापूर्ति न करने के कारण उर्वशी ने अर्जुन को शाप दे दिया कि तुम नपुंसक बनकर एक वर्ष तक रहोगे।
उलूपी : अर्जुन की चौथी पत्नी का नाम उलूपी था। कहते हैं कि उलूपी जलपरी नागकन्या थी। उन्हीं ने अर्जुन को जल में हानिरहित रहने का वरदान दिया था। महाभारत युद्ध में अपने गुरु भीष्म पितामह को मारने के बाद ब्रह्मा-पुत्र से शापित होने के बाद उलूपी ने ही अर्जुन को शापमुक्त भी किया था और इसी युद्ध में अपने पुत्र के हाथों मारे जाने पर उलूपी ने ही अर्जुन को पुनर्जीवित भी कर दिया था। विष्णु पुराण के अनुसार अर्जुन से उलूपी ने इरावत नामक पुत्र को जन्म दिया। इसी इरावन को भारत के सभी हिजड़े अपना देवता मानते हैं। उलूपी अर्जुन के सदेह स्वगारोहण के समय तक उनके साथ थी।
चित्रांगदा : मणिपुर देश के राजा चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा थी। जब अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो वे चित्रांगदा को देखकर उस पर मोहित हो उठे। उन्होंने राजा से उसकी कन्या का हाथ मांगा। राजा चित्रवाहन ने अर्जुन से का कि यह विवाह इस शर्त पर होगा कि विवाह के बाद जो भी संतान होगी वह मेरे ही पास रहेगी। क्योंकि हमारे कुल खानदान में एक ही संतान होती है। यह मेरी पुत्री है। अब इससे उत्पन्न संतान ही हमारे राज्य की गद्दी पर विराजमान होगी। दरअसल, पूर्व युग में हमरे पूर्वजों में प्रभंजन नामक राजा हुए। उन्होंने पुत्र की कामना से तपस्या की थी तो शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्त करने का वरदान देते हुए यह भी कहा था कि हर पीढ़ी में एक ही संतान हुआ करेगी। अत: मेरी संतान ये कन्या ही ही है। अर्जुन ने शर्त स्वीकार करके चित्रांगदा से विवाह कर लिया। कुछ काल बाद उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'बभ्रुवाहन' रखा गया। पुत्र-जन्म के बाद अर्जुन उसके पालन का भार चित्रांगदा पर ही छोड़ अपने राज्य लौट आए।