Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

युद्ध में बभ्रुवाहन ने अर्जुन को मार दिया था, यदि उलूपी नहीं होती तो गजब हो जाता

हमें फॉलो करें arjun and babruvahana yudh

अनिरुद्ध जोशी

अर्जुन  के 3 पुत्र थे। द्रौपदी से जन्मे अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा था। द्रौपदी के अलावा अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक 3 और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावन, चित्रांगदा से बभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ। कहते हैं कि अपने ही पुत्र द्वारा अर्जुन मारे गए। यह कैसे हुआ? इसके पीछे भी एक कथा है।
 
 
एक दिन महर्षि वेदव्यास और श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ करने का विचार किया। पांडवों ने शुभ मुहूर्त देखकर यज्ञ का शुभारंभ किया और अर्जुन को रक्षक बनाकर घोड़ा छोड़ दिया। वह घोड़ा जहां भी जाता, अर्जुन उसके पीछे जाते। अनेक राजाओं ने पांडवों की अधीनता स्वीकार कर ली वहीं कुछ ने मैत्रीपूर्ण संबंधों के आधार पर पांडवों को कर देने की बात मान ली।
 
 
वह घोड़ा घूमते-घूमते मणिपुर जा पहुंचा। मणिपुर नरेश बभ्रुवाहन ने जब सुना कि मेरे पिता आए हैं, तब वह गणमान्य नागरिकों के साथ बहुत-सा धन साथ में लेकर बड़ी विनय के साथ उनके दर्शन के लिए नगर सीमा पर पहुंचा। मणिपुर नरेश को इस प्रकार आया देख अर्जुन ने धर्म का आश्रय लेकर उसका आदर नहीं किया। उस समय अर्जुन कुछ कुपित होकर बोले, बेटा! तेरा यह ढंग ठीक नहीं है। जान पड़ता है, तू क्षत्रिय धर्म से बहिष्‍कृत हो गया है पुत्र। मैं महाराज युधिष्‍ठिर के यज्ञ संबंधी अश्व की रक्षा करता हुआ तेरे राज्‍य के भीतर आया हूं। फिर भी तू मुझसे युद्ध क्‍यों नहीं करता? क्षत्रियों का धर्म है युद्ध करना।
 
 
अर्जुन ने क्रोधित होकर कहा, तुझ दुर्बुद्धि को धिक्‍कार है। तू निश्‍चय ही क्षत्रिय धर्म से भ्रष्‍ट हो गया है, तभी तो एक स्‍त्री की भांति तू यहां युद्ध के लिए आए हुए मुझको शांतिपूर्वक साथ लेने के लिए चेष्‍टा कर रहा है। इस तरह अर्जुन ने अपने पुत्र को बहुत खरी-खोटी सुनाई।
 
 
उस समय अर्जुन की पत्नी नागकन्‍या उलूपी भी उस वार्तालाप को सुन रही थीं। तब मनोहर अंगों वाली नागकन्‍या उलूपी धर्म निपुण बभ्रुवाहन के पास आकर यह धर्मसम्‍मत बात बोली- बेटा तुम्‍हें विदित होना चाहिए कि मैं तुम्‍हारी विमाता नागकन्‍या उलूपी हूं। तुम मेरी आज्ञा का पालन करो। इससे तुम्‍हें महान धर्म की प्राप्‍ति होगी। तुम्‍हारे पिता कुरुकुल के श्रेष्‍ठ वीर और युद्ध के मद से उन्‍मत्त रहने वाले हैं। अत: इनके साथ अवश्‍य युद्ध करो। ऐसा करने से ये तुम पर प्रसन्‍न होंगे। इसमें संशय नहीं है। यह सुनकर बभ्रुवाहन ने अपने पिता अर्जुन से युद्ध करने का निश्‍चय किया। तब अर्जुन और बभ्रुवाहन के बीच घोर युद्ध हुआ।
 
 
कहते हैं कि इस युद्ध में युद्ध में बभ्रुवाहन मूर्छित हो गए थे और अर्जुन मारे गए थे। अर्जुन के मारे जाने का समाचार सुनकर युद्ध भूमि में अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा पहुंचकर विलाप करने लगी। वह उलूपी से कहने लगी कि तुम्हारी ही आज्ञा से मेरे पुत्र बभ्रुवाहन ने अपने पिता से युद्ध किया। चित्रांगदा ने रोते हुए उलूपी से कहा कि तुम धर्म की जानकार हो बहन। मैं तुमसे अर्जुन के प्राणों की भीख मांगती हूं। चित्रांगदा ने उलूपी को कठोर और विनम्र दोनों ही तरह के वचन कहे। अंत में उसने कहा कि तुम्हीं ने बेरे बेटों को लड़ाकर उनकी जान ली है। मेरा बेटा भले ही मारा जाए लेकिन तुम अर्जुन को जीवित करो अन्यथा मैं भी अपने प्राण त्याग दूंगी।
 
 
तभी मूर्छित बभ्रुवाहन को होश आ गया और उसने देखा कि उसकी मां अर्जुन के पास बैठकर विलाप कर रही है और विमाता उलूपी भी पास ही खड़ी है। बभ्रुवाहन अपने पिता अर्जुन के समक्ष बैठकर विलाप करने लगा और प्रण लिया कि अब मैं भी इस रणभूमि पर आमरण अनशन कर अपनी देह त्याग दूंगा।
 
 
पुत्र और मां के विलाप को देख-सुनकर उलूपी का हृदय भी पसीज गया और उसने संजीवन मणिका का स्मरण किया। नागों के जीवन की आधारभूत मणि उसके स्मरण करते ही वहां आ गई। तब उन्होंने बभ्रुवाहन से कहा कि बेटा उठो, शोक मत करो। अर्जुन तुम्हारे द्वारा परास्त नहीं हुए हैं। ये मनुष्यमात्र के लिए अजेय हैं। लो, यह दिव्य मणि अपने स्पर्श से सदा मरे हुए सर्पों को जीवित किया करती है। इसे अपने पिता की छाती पर रख दो। इसका स्पर्श होते ही वे जीवित हो जाएंगे। बभ्रुवाहन ने ऐसा ही किया। अर्जुन देर तक सोने के बाद जागे हुए मनुष्य की भांति जीवित हो उठे। फिर उसने अश्वमेध का घोड़ा अर्जुन को लौटा दिया और अपनी माताओं चित्रांगदा और उलूपी के साथ युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में शामिल हुए।
 
 
कैसे मिली अर्जुन को उलूपी?
अर्जुन की चौथी पत्नी का नाम जलपरी नागकन्या उलूपी था। उन्हीं ने अर्जुन को जल में हानिरहित रहने का वरदान दिया था। महाभारत युद्ध में अपने गुरु भीष्म पितामह को मारने के बाद ब्रह्मा-पुत्र से शापित होने के बाद उलूपी ने ही अर्जुन को शापमुक्त भी किया था और अपने सौतेले पुत्र बभ्रुवाहन के हाथों मारे जाने पर उलूपी ने ही अर्जुन को पुनर्जीवित भी कर दिया था। विष्णु पुराण के अनुसार अर्जुन से उलूपी ने इरावन नामक पुत्र को जन्म दिया। इसी इरावन को भारत के सभी हिजड़े अपना देवता मानते हैं। उलूपी अर्जुन के सदेह स्वर्गारोहण के समय तक उनके साथ थी।
 
 
माना जाता है कि द्रौपदी, जो पांचों पांडवों की पत्नी थीं, 1-1 साल के समय-अंतराल के लिए हर पांडव के साथ रहती थी। उस समय किसी दूसरे पांडव को द्रौपदी के आवास में घुसने की अनुमति नहीं थी। इस नियम को तोड़ने वाले को 1 साल तक देश से बाहर रहने का दंड था।
 
 
अर्जुन और द्रौपदी की 1 वर्ष की अवधि अभी-अभी समाप्त ही हुई थी और द्रौपदी-युधिष्ठिर के साथ का 1 वर्ष का समय शुरू हुआ था। अर्जुन भूलवश द्रौपदी के आवास पर ही अपना तीर-धनुष भूल आए। पर किसी दुष्ट से ब्राह्मण के पशुओं की रक्षा के लिए लिए उन्हें उसी समय इसकी जरूरत पड़ी। अत: क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए तीर-धनुष लेने के लिए नियम तोड़ते हुए वे द्रौपदी के निवास में घुस गए। बाद में इसके दंडस्वरूप वे 1 साल के लिए राज्य से बाहर चले गए। इसी दौरान अर्जुन की मुलाकात उलूपी से हुई और वे अर्जुन पर मोहित हो गईं। दोनों ने विवाह किया और 1 वर्ष तक साथ रहने के बाद अर्जुन पुन: अपने राज्य लौट आए।
 
 
(संदर्भ : महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व)
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi