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इन 5 योद्धाओं ने महाभारत का युद्ध नहीं लड़ा परंतु युद्ध को गंभीर रूप से किया प्रभावित

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अनिरुद्ध जोशी

महाभारत में युद्ध में लगभग 45 लाख लोगों ने भाग लिया था। हालांकि ऐसे भी हजारों योद्धा या लोग थे जिन्होंने युद्ध में तो भाग नहीं लिया था लेकिन उन्होंने युद्ध को भयंकर रूप से प्रभावित किया। ऐसे ही 5 योद्धा थे जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से युद्ध नहीं लड़ा लेकिन युद्ध को अपने तरीके से प्रभावित किया।
 
 
1. श्रीकृष्ण : युद्ध में सभी हाथी और रथों के सारथियों में से बुहतों ने प्रत्यक्ष रूप से कभी युद्ध नहीं लड़ा। वे बस योद्धाओं के रथ या हाथी को चलाते रहे। उनमें से बहुत तो पहले ही मारे जाते थे जिनके स्थान पर दूसरे सारथी की नियुक्ति हो जाती थी। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी थे। कर्ण के सारथी शल्य थे। शल्य ने युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई परंतु श्रीकृष्ण ने युद्ध में कभी हथियार नहीं उठाया और ना ही उन्होंने किसी योद्धा का वध किया फिर भी उन्होंने सबसे ज्यादा युद्ध को प्रभावित किया।
 
2. बर्बरीक : भीम पौत्र और घटोत्कच के पुत्र दानवीर बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने दान में उसका शीश मांग लिया था। उसकी इच्‍छा थी कि वह महाभारत का युद्ध देखे तो श्रीकृष्‍ण ने उसको वरदान देकर उसका शीश एक जगह रखवा दिया। जहां से उसने महाभारत का संपूर्ण युद्ध देखा। कहते हैं कि जब वे कौरव की सेना को देखते थे तो उधर तबाही मच जाती थी और जब वे पांडवों की सेना की ओर देखते थे तो उधर की सेना का संहार होने लगता था। ऐसे में उनका शीश दूर पहाड़ी पर स्थापित कर दिया गया था। युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी तनाव हुआ कि युद्ध में विजय का श्रेय किस को जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अत: उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। इसे पर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि उन्हें तो युद्ध युद्धभूमि में चारों ओर सिर्फ श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ही घूमता हुआ दिखायी दे रहा था, जो कि शत्रु सेना को काट रहा था, महाकाली दुर्गा कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।
 
3. इंद्र : जब इंद्र को पता चला कि उनके पुत्र अर्जुन को कर्ण से बहुत बड़ा खतरा है तो वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। श्रीकृष्ण ने उनको सलाह दी की कर्ण बहुत ही बड़ा दानवीर है आप उसके दान देने के समय पर ब्राह्मण के वेश में पहुंचकर उससे दान लेने का संकल्प कराने के बाद उससे कवच और कुंडल मांग ले। इंद्र ने ऐसा ही किया। लेकिन कवच कुंडल ले जाने के बाद आकाशवाणी हुई कि तुमने धोखे से कर्ण के कवच कुंडल ले लिए हैं इसके बदले तुम्हें भी कुछ देना होगा अन्यथा तुम्हारा यह रथ भूमि में ऐसा ही धंसा रहेगा और तुम भी धंस जाओगे। तब इंद्र ने वापस लौट कर कर्ण को अपना अमोघ अस्त्र देकर कहा कि इसे जिस पर भी चलाओगे वह निश्चित ही मारा जाएगा। यह अचूक है, लेकिन इसका उपयोग एक बार ही कर सकते हो। कर्ण उस अस्त्र से अर्जुन को मारना चाहता था लेकिन दुर्योधन और कृष्ण के कहने पर उसे मजबूरन यह अस्त्र घटोत्कच पर चलाना पड़ा।
 
4. हनुमानजी : भीम और हनुमानजी दोनों ही पवन पुत्र माने जाते हैं। भीम ने हनुमानजी की पूंछ उठाने के साहस किया था लेकिन उनको क्षमा मांगना पड़ी थी। दूसरा हनुमानजी ने अर्जुन का भी घमंड चूर कर दिया था। बाद में श्रीकृष्ण की युक्ति के अनुसार हनुमानजी से पांडवों ने जीत का आश्‍वासन ले लिया था। इसी के चलते वे युद्ध में अर्जुन के रथ के उपर ध्वज में विराजमान हो गए थे। हनुमानजी की शक्ति के चलते ही श्रीकृष्‍ण का रथ युद्धभूमि में टिका रहा और अप्रत्यक्ष रूप से अर्जुन की सहायता की थी।
 
5. युयुत्सु : कौरवों का सौतेला भाई जिसने युधिष्ठिर के समझाने पर युद्ध के एन वक्त पर कौरवों को छोड़कर पांडवों का साथ देने का निश्‍चिय किया। अपने खेमे में आने के बाद युधिष्ठिर ने एक विशेष रणनीति के तहत युयुत्सु की योग्यता को देखते हुए उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसद की आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया। इस तरह कौरवों की सेना कमजोर हो गई थी, क्योंकि वे कौरवों की सेना और उसकी शक्ति का संपूर्ण ज्ञान रखते थे। जब युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग जाने लगे तब उन्होंने परीक्षित को राजा और युयुत्सु को उनका संरक्षक बना दिया था।

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