The Mystery of Kavach Kundal: सूर्य पुत्र कर्ण के पास ऐसे कवच कुंडल थे कि यदि महाभारत के युद्ध में भी ये कवच कुंडल होते तो वह अजेय योद्धा होता और उसे तब कोई मार नहीं सकता था। यह कवच कुंडल उसे जन्म से ही सूर्यदेव से प्राप्त हुए थे। लेकिन एक युक्ति से उसके कवच कुंडलों को दान में मांग लिया गया और फिर उस कवच कुंडल को कहीं छुपा कर रख दिया गया। आखिर यह किस तरह हुआ और कहां छुपाकर रखा गया जानिए संपूर्ण कथा।
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भगवान कृष्ण यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल है, तब तक उसे कोई नहीं मार सकता। ऐसे में अर्जुन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। उधर, देवराज इन्द्र भी चिंतित थे, क्योंकि अर्जुन उनका पुत्र था। भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदाइश कवच और कुंडल है, वह युद्ध में अजेय रहेगा।
दोनों ने मिलकर योजना बनाई और इंद्र एक विप्र के वेश में कर्ण के पास पहुंच गए और उनसे दान मांगने लगे। कर्ण ने कहा मांगों। विप्र बने इंद्र ने कहा, नहीं पहले आपको वचन देना होगा कि मैं जो मांगूगा आप वो दे देंगे। कर्ण ने तैश में आकर जल हाथ में लेकर कहा- हम प्रण करते हैं विप्रवर! अब तुरंत मांगिए। तब क्षद्म इन्द्र ने कहा- राजन! आपके शरीर के कवच और कुंडल हमें दान स्वरूप चाहिए।
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एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। कर्ण ने इन्द्र की आंखों में झांका और फिर दानवीर कर्ण ने बिना एक क्षण भी गंवाएं अपने कवच और कुंडल अपने शरीर से खंजर की सहायता से अलग किए और विप्रवर को सौंप दिए। इन्द्र ने तुंरत वहां से दौड़ ही लगा दी और दूर खड़े रथ पर सवार होकर स्वर्ग की ओर भागने लगे। लेकिन कुछ मील जाकर इन्द्र का रथ नीचे उतरकर भूमि में धंस गया। तभी आकाशवाणी हुई, 'देवराज इन्द्र, तुमने बड़ा पाप किया है। अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए तूने छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी है। अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और तू भी यहीं धंस जाएगा। जब तक की इस छल की भरपाई नहीं करता है।
यह सुनकर इंद्र पुन: कर्ण के पास गए और वे कर्ण को कवच कुंडल देने लगे। कर्ण ने कहा कि दान में दी हुई चीज वापस नहीं लेता। तब इंद्र ने कहा कि तुमने अपनी सबसे बड़ी सुरक्षा को दिया है। इसलिए मैं तुम्हें कवच कुंडल के बदले एक अमोघ अस्त्र देता हूं जो तू किसी पर भी चलाएगा तो यह खाली नहीं जाएगा। उसकी मौत तय है। लेकिन तू इसका उपयोग एक बार ही कर सकता है दूसरी बार नहीं। कर्ण ने उसे ले लिया।
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इसके बाद इंद्रदेव उस कवच कुंडल को स्वर्ग नहीं ले जा पाए क्योंकि उन्होंने इसे झूठ से प्राप्त किया था। ऐसे में उन्होंने इस कवच कुंडल को किसी समुद्र के किनारे छुपा दिया। इंद्र को छुपाते हुए चंद्रदेव ने देख लिया। बाद में चंद्रदेव उस कवच कुंडल को निकालकर भागने लगे लेकिन समुद्र देव ने उन्हें रोक दिया और कहा कि यह मेरी सुरक्षा में है। तभी से वह कवच कुंडल समुद्र देव और सूर्यदेव की सुरक्षा में है।
कहा जाता है कि इस कवच और कुंडल को ओडिशा के पुरी के पास स्थित कोणार्क के समुद्र के पास कहीं छिपाया गया है। कोई भी यहां तक पहुंच नहीं सकता है क्योंकि अगर किसी ने इस कवच और कुंडल को ढूंढ लिया तो वह उसका गलत फायदा उठा सकता है।
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