संभवत: द्रौपदी भारत की वह प्रथम महिला है जिसके पांच पति थे? या वह पांच पुरुषों के साथ रमण करती थी? लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या आज के लोग यह समझते हैं कि द्रौपदी ने विवाह तो सिर्फ अर्जुन से ही किया था, तो क्या उसका रिश्ता सभी के साथ नहीं था?
पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था। इस दौरान पांचों पांडव एक कुम्हार के घर में रहा करते थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन-यापन करते थे। ऐसे में भिक्षाटन के दौरान उन्हें द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना मिली।
एक यंत्र में बड़ी-सी मछली घूम रही थी। उसकी आंख में तीर मारना था और वह भी तैलपात्र में उसकी परछाई देखकर। यह भी कि एक नहीं, पूरे पांच तीर मारना थे। अर्जुन ने यह प्रतियोगिता जीत ली। तब जरासंध, शल्य, शिशुपाल तथा दुर्योधन, दुःशासन आदि कौरव भी उपस्थित थे। उस दौरान बहुत विवाद हुआ क्योंकि पांचों पांडव ब्राह्मणवेश धारण कर पहुंचे थे। लेकिन श्रीकृष्ण के दखल से आखिर द्रौपदी का विवाह हो गया।
पांचों पांडवों से उसका विवाह कैसे हुआ या पांचों पांडवों की वह पत्नी कैसे बन गई यह बहुत लंबा किस्सा है। कहते हैं कि द्रौपदी अपने पिछले जन्म में बहुत सुन्दर युवती थी। सर्वगुण संपन्न होने के कारण उसे योग्य वर नहीं मिल रहा था इसलिए उसने भगवान शंकर की तपस्या की और तब शंकरजी प्रकट हुए। उस समय द्रौपदी ने हड़बड़ाहट में पांच बार वर मांगे इसलिए उसे शिवजी के वरदान के कारण इस जन्म में पांच पति प्राप्त हुए। जब भगवान शिव ने द्रौपदी को पांच पति प्राप्त होने का वरदान दिया था. तब वह भी ये जानते थे कि उसे अपने पांचों पतियों के साथ पत्नी धर्म निभाने में समस्या होगी, इसीलिए उन्होंने द्रोपदी को ये वरदान भी दिया कि वह प्रतिदिन कन्या भाव यानी कौमार्य को प्राप्त कर लेगी। इसलिए द्रौपदी अपने पांचों पतियों को कन्या भाव में ही प्राप्त हुई थी।
हालांकि कहा जाता है कि संतान को जन्म देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे ये सुझाव दिया कि हर साल वह पांडवों में से किसी एक के साथ ही समय व्यतीत करे। साथ ही जिस समय वह अपने कक्ष में किसी एक पांडव के साथ हो तो उनके कक्ष में कोई और पांडव प्रवेश न करें। यदि कोई पांडव ऐसा गलती से भी कर लेता है तो उसे एक वर्ष का देश निकाला भुगतना होगा।
माना जाता है कि द्रौपदी, जो पांचों पांडवों की पत्नी थीं, 1-1 साल के समय-अंतराल के लिए हर पांडव के साथ रहती थी। उस समय किसी दूसरे पांडव को द्रौपदी के आवास में घुसने की अनुमति नहीं थी। इस नियम को तोड़ने वाले को 1 साल तक देश से बाहर रहने का दंड था। एक बार यह दंड अर्जुन को भगुतना भी पड़ा था।
अर्जुन और द्रौपदी की 1 वर्ष की अवधि अभी-अभी समाप्त हुई थी और द्रौपदी-युधिष्ठिर के साथ का एक वर्ष का समय शुरू हुआ था। अर्जुन भूलवश द्रौपदी के आवास पर ही अपना तीर-धनुष भूल आए। पर किसी दुष्ट से ब्राह्मण के पशुओं की रक्षा के लिए लिए उन्हें उसी समय इसकी जरूरत पड़ी। अत: क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए तीर-धनुष लेने के लिए नियम तोड़ते हुए वह द्रौपदी के निवास में घुस गए। उस दौरान द्रौपदी-युधिष्ठिर साथ में थे। बाद में इसके दंडस्वरूप अर्जुन 1 साल के लिए राज्य से बाहर चले गए।
इसी एक साल के वनवास के दौरान अर्जुन की मुलाकात उलूपी से हुई और वह अर्जुन पर मोहित हो गईं। ऐसे में वह उन्हें खींचकर अपने नागलोक में ले गई और उसके अनुरोध करने पर अर्जुन को उससे विवाह करना पड़ा। कहते हैं कि दोनों एक वर्ष तक साथ रहे। अर्जुन और नागकन्या उलूपी के मिलन से अर्जुन को एक वीरवार पुत्र मिला जिसका नाम इरावान रखा गया।
द्रौपदी के पांच पुत्र थे:- द्रौपदी ने एक-एक वर्ष के अंतराल से पांचों पांडव के एक-एक पुत्र को जन्म दिया था। लेकिन दुर्भाग्य की इन पाचों पुत्रों को अश्वत्थामा ने मार दिया था।
द्रौपदी और सत्यभामा संवाद-
एक दिन की बात है, पांडव और ब्राह्मण लोग आश्रम में बैठे थे। उसी समय द्रौपदी और सत्यभामा भी आपस में मिलकर एक जगह बैठी थीं। दोनों ही आपस में बातें करने लगीं। सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा- बहिन, तुम्हारे पति पांडवजन तुमसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। मैं देखती हूं कि वे लोग सदा तुम्हारे वश में रहते हैं। तुम मुझे भी ऐसा कुछ बताओ कि मेरे श्यामसुंदर भी मेरे वश में रहें।
तब द्रौपदी बोली- सत्यभामा, ये तुम मुझसे कैसी दुराचारिणी स्त्रियों के बारे में पूछ रही हो। जब पति को यह मालूम हो तो वह अपनी पत्नी के वश में नहीं हो सकता। तब सत्यभामा ने कहा- तो आप बताएं कि आप पांडवों के साथ कैसा आचरण करती हैं?
उचित प्रश्न जानकर तब द्रौपदी बोली- सुनो मैं अहंकार और काम, क्रोध को छोड़कर बड़ी ही सावधानी से सब पांडवों की स्त्रियों सहित सेवा करती हूं। मैं ईर्ष्या से दूर रहती हूं। मन को काबू में रखकर कटु भाषण से दूर रहती हूं। किसी के भी समक्ष असभ्यता से खड़ी नहीं होती हूं। बुरी बातें नहीं करती हूं और बुरी जगह पर नहीं बैठती।
पति के अभिप्राय को पूर्ण संकेत समझकर अनुसरण करती हूं। देवता, मनुष्य, सजा-धजा या रूपवान कैसा ही पुरुष हो, मेरा मन पांडवों के सिवाय कहीं नहीं जाता। उनके स्नान किए बिना मैं स्नान नहीं करती। उनके बैठे बिना स्वयं नहीं बैठती। जब-जब मेरे पति घर में आते हैं, मैं घर साफ रखती हूं। समय पर भोजन कराती हूं। सदा सावधान रहती हूं। घर में गुप्त रूप से अनाज हमेशा रखती हूं। मैं दरवाजे के बाहर जाकर खड़ी नहीं होती हूं। पतिदेव के बिना अकेले रहना मुझे पसंद नहीं। साथ ही सास ने मुझे जो धर्म बताए हैं, मैं सभी का पालन करती हूं। सदा धर्म की शरण में रहती हूं।