इंदौर। आज का युवा फैशन और ग्लैमर की चकाचौंध में डूबा हुआ है। सोशल मीडिया की आभासी दुनिया ने उसे अपने जाल में जकड़ रखा है, ऐसे में परिवार और समाज से वह दूर होता जा रहा है। जल्द पैसा कमाने और प्रसिद्धि पाने की अंधी दौड़ में वह शामिल हो चुका है। इसी समाज में बिरले लोग अपने कार्यों से इस समाज और देश के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। ऐसे ही एक युवा हैं यश पाराशर। यश पाराशर स्वामी विवेकानंद के उस कथन को चरितार्थ करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि 'मैं उस भगवान की सेवा करता हूं जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं।'
पेशे से शेयर ब्रोकर यश पाराशर बुजुर्गों की सेवा कर अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं। बेसहारा बुजुर्गों की सेवा करने का जज्बा उन्हें अन्य युवाओं से अलग करता है। यश पाराशर सिर्फ 23 साल के हैं, लेकिन उनका काम इससे कहीं बड़ा है। यश बेसहारा और परिवार से निकाले गए बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम चलाते हैं। डेढ़ साल से वे किराए का घर लेकर उसमें बुजुर्गों के लिए निराश्रित आश्रम चला रहे हैं।
बुजुर्गों के खाने और उनकी अन्य व्यवस्थाओं के लिए यश ने 4,000 रुपए के वेतन पर महिला को भी रखा है। वे अपनी कमाई का 70 प्रतिशत हिस्सा बुजुर्गों की सेवा पर खर्च करते हैं। यश पाराशर के मुताबिक उनके परिवार में मां और एक बहन ही है। उन्हें दादा-दादी की कमी खलती थी और जब वे बुजुर्गों को घर लाए तो मां ने भी साथ दिया।
किराए के मकान से आश्रम का संचालन : इंदौर के गांधीनगर में बिना किसी से आर्थिक सहायता लिए वे 'श्रीराम निराश्रित आश्रम' का संचालन कर रहे हैं। उन्होंने 10X50 का छोटा-सा मकान किराए पर लिया है और इसी में वे रह रहे बुजुर्गों के लिए खाने के साथ ही इलाज की व्यवस्था भी जुटाते हैं। जो परिवार अपने बुजुर्गों को घर से बेदखल कर देते हैं, उन्हें भी बुजुर्गों को साथ रखने के लिए समझाइश देते हैं।
ऐसे मिली प्रेरणा : यश पाराशर ने अपने कार्य के बारे में बताया कि एक घटना ने उन्हें इस समाजसेवा के कार्य के लिए प्रेरित किया। एक बार रक्तदान करने के लिए वे एमवाय अस्पताल गए थे, जहां उन्हें बेसहारा वृद्धा दिखाई दी। वे उसे देखकर चले गए किंतु उनके अंतरमन से कुछ आवाज आई और उसे वे अपने स्कूटर पर बैठाकर अपने घर ले आए और यहीं से यह समाजसेवा का सिलसिला शुरू हो गया।
'रक्तमित्र' की उपाधि : यश के इस कार्य को देखते हुए उनके कई मित्र भी उनके साथ आए। संदीप शर्मा, पुरुषोत्तम बड़ोदिया, पंकज शुक्ला, भरत ननकानी, सोनम राजपूत, अन्नपूर्णा गोले, ज्योति सोनी, मोहित उपाध्याय जैसे युवा यश के साथ इस सेवा के काम में शामिल हैं। वे समय आने पर पैसे भी इकट्ठा करने में पीछे नहीं रहते हैं। इसके साथ ही ये युवा समय-समय पर रक्तदान भी करते हैं। यश पाराशर भी रक्तदान में पीछे नहीं हैं और उन्हें 'रक्तमित्र' कहा जाता है।
परिवारों को देते हैं समझाइश : यश ने बताया कि जो परिवार बुजुर्गों को बेदखल कर देते हैं, उनके परिवारों को वे बुजुर्गों को घर में रखने की समझाइश देते हैं। यदि कोई बुजुर्ग अपने घर का पता भूल गया है या भटक गया तो सोशल मीडिया के माध्यम से वे उसके परिवार को खोजने का कार्य भी करते हैं। ऐसे कई मामले हैं जिनमें वे बिछड़े बुजुर्गों को अपने परिवार से मिला चुके हैं। वे अभिभावक और बच्चों के विवाद काउंसलिंग से सुलझाकर उन्हें बुजुर्गों को साथ रखने के लिए राजी भी करते हैं।
सिर्फ मिला आश्वासन : यश बताते हैं कि नेता, मंत्री और संस्थाएं आश्रम में आकर सिर्फ कोरे वादे करते चले जाते हैं। ऐसे लोग मीडिया में प्रचार पाने लिए आश्रम आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं। यश का कहना है कि संवेदनहीन हो चुके समाज में जागृति लाने के लिए युवाओं को आगे आना होगा। सोशल मीडिया और ग्लैमर की दुनिया से निकलकर समाज के प्रति अपने दायित्व को समझना होगा। यश ने फेसबुक पर 'श्रीराम निराश्रित आश्रम' नाम से पेज बना रखा है। यश का कहना है कि यदि हर व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ एक बुजुर्ग की जिम्मेदारी उठा ले तो वृद्धाश्रम खत्म हो जाएंगे।