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‘टाइगर स्टेट’ मध्यप्रदेश बाघों की मौत में नंबर-1, सुरक्षा वाले सैटेलाइट और रेडियो कॉलर बने शिकारियों के 'टूलकिट'!

मध्यप्रदेश में लगातार बाघों की मौतों से सवालों में वन महकमा

हमें फॉलो करें ‘टाइगर स्टेट’ मध्यप्रदेश बाघों की मौत में नंबर-1, सुरक्षा वाले सैटेलाइट और रेडियो कॉलर बने शिकारियों के 'टूलकिट'!
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विकास सिंह

, गुरुवार, 25 नवंबर 2021 (09:25 IST)
भोपाल। देश में टाइगर स्टेट का दर्जा रखने वाला मध्यप्रदेश अब बाघों की लगातार हो रही मौतों से सुर्खियों में है। बाघों की लगातार हो रही मौत से प्रदेश को हासिल टाइगर स्टेट का दर्जा भी अब खतरे में पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2021 से अब तक देश भर में 107 बाघों की मौत हुई है जिसमें सबसे अधिक मध्यप्रदेश से 36 बाघों की मौत हुई है। 
 
6 साल में 175 बाघों की मौत-अगर बीते सालों में बाघों की मौत के आंकड़ों पर नजर डाले तो गत 6 सालों में 175 बाघों की मौत हो चुकी है। 2021 में अब तक 36, 2020 में 30, 2019 में 29, 2018 में 19, 2017 में 27 और 2016 में 34 बाघों की मौत हुई थी। 
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नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2021 से अब तक देश भर में 107 बाघों की मौत हुई है जिसमें एक तिहाई से अधिक बाघों की मौत केवल मध्यप्रदेश में हुई है। 
 
नेशनल पार्क में भी बाघों की मौत-प्रदेश में लगातार हो रही बाघों की मौत में सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि नेशनल पार्क में रहने वाले बाघ भी सुरक्षित नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बाघों की सबसे ज्यादा मौतें टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुई है।
 
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में 10, कान्हा नेशनल पार्क में 05, पन्ना नेशनल पार्क में 02 और पेंच नेशनल पार्क में 4 बाघों की मौत हुई है। वहीं 15 अन्य बाघों की मौत वन सेंचुरी और वन मंडलों में हुई है। 
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अबतक बाघों के लिए सुरक्षित माने जाने वाले नेशनल पार्क भी अब उनके सुरक्षित आवास नहीं रहे है। वहीं नेशनल पार्क से लेकर टाइगर रिजर्व प्रबंधन बाघों की मौत की मूल वजह तक नहीं पहुंच पाया है। नेशनल पार्को में बाघों की मौत के बाद अब पार्क प्रबंधन की कार्यशैली कठघरे में है। 
 
कोरोनाकाल बना बाघों की कब्रगाह-बीतें दो सालों में जब दुनिया के साथ-साथ भारत कोरोना महामारी से जूझ रहा था तब भी बाघों की मौतों का सिलसिला तेजी से जारी था। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 2020 से अब तक 66 बाघों की मौत हो चुकी है। गौर करने वाली बात यह है कि इस साल मई माह में जब कोरोना संक्रमण अपने चरम पर था तब 08 बाघों की मौत हुई है।
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टाइगर स्टेट का दर्जा छिनने का खतरा-प्रदेश में लगातार हो रही बाघों की मौत से मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का दर्जा छीनने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। गौरतलब है कि 2018 में मध्यप्रदेश ने जब टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल किया था तब प्रदेश में कर्नाटक की तुलना में दो बाघ अधिक पाए गए थे। 2018 के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या 526 और कर्नाटक में 524 थी।
 
वहीं अब एनटीसीए के आंकड़े बताते है कि प्रदेश में एक साल से कम समय में कर्नाटक की तुलना में 20 से अधिक बाघ खो दिए है। जनवरी 2021 से अब तक कर्नाटक में 15 बाघों की मौत हुई है वहीं मध्यप्रदेश में आंकड़ा 36 तक पहुंच गया है। ऐसे में औसतन हर महीने तीन बाघ दम तोड़ रहे है। 
 
क्या कहते हैं वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट- मध्यप्रदेश में लगातार हो रही बाघों की मौत पर जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाले वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे कहते हैं कि मध्यप्रदेश में देश में सबसे अधिक टाइगर है लेकिन कई सालों से मध्यप्रदेश में सबसे अधिक टाइगरों की मौत भी हो रही है।
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इनमें सबसे चौंकाने वाला विषय यह है जो टाइगर सबसे लेटेस्ट सैटेलाइट कॉलर और रेडियो कॉलर पहने हुए है उनका भी शिकार हो रहा है। इससे यह प्रतीत होता है कि सैटेलाइट कॉलर और रेडियो कॉलर में गले में पहनाने के बाद बाघों की सुरक्षा की बजाए शिकारियों के टूल किट बन गए है। यानि शिकारियों के लिए आसान हो गया है कि रेडियो कॉलर और सैटेलाइट कॉलर पहने हुए बाघों का शिकार करना और वन विभाग की अक्षमता और लापरवाही से यह स्थिति हो गई है।

अजय दुबे आगे कहते हैं कि बाघों की मौत मामले में अधिकारियों की अपराधिक लापरवाही है। वह पन्ना में बाघों की मौत मामले में जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि उसमें वन विभाग के अधिकारियों के नाम आए थे कि वह शिकारियों के साथ मिले है। अभी इंदौर में तेदुएं की खास पकड़ी गई जिसमें एक सरकारी कर्मचारी पकड़ा गया। वही आठ साल पहले सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में रेडियो कॉलर को हैक करने की कोशिश हुई थी।

इसका आशय यह है कि जो रेडियो कॉलर, सैटेलाइट कॉलर बाघों की सुरक्षा के लिए वनविभाग का औजार है वह शिकारियों के लिए अब टूल किट बन गया है। अब इसकी जांच होनी चाहिए कि इतनी बड़ी तदाद में रेडियो कॉलर और सैटेलाइट कॉलर पहले बाघों की मौत कैसे हो रही है, क्या वह मिलीभगत से मर रहे है या उसको हैकर किया जा रहा है, यह एक प्रश्न है।  

जिम्मेदारों का गैरजिम्मेदाराना जवाब-वहीं बाघों की मौत को लेकर जिम्मेदार भी गैरजिम्मेदाराना जवाब दे रहे है। वाइल्ड लाइफ पीसीसीएफ आलोक कुमार बाघों की मौत को प्राकृतिक घटना बताते है। वह कहते हैं कि ये सही है कि राज्यों में बाघों की मौत की संख्या तेजी से बढ़ रही है लेकिन इसकी वजह बाघों के बीच होने वाली टेरिटोरियल फाइट है जिसमें कमजोर बाघ घायल होकर मर जाते है। 
 
वनप्रणियों की सुरक्षा में किस तरह जिम्मेदारों की ओर लचर रवैया अपनाया जा रहा है इसको खुद महकमे का पिछले साल 17 नवंबर को जारी पत्र बताता है। जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वन्यप्रणियों की सुरक्षा में लापरवाही पाई जा रही है। पत्र में पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ के शिकार की घटना का हवाला दिया गया है। 
 
विशेषज्ञों के मुताबिक बाघों की टेरिटोरियल फाइट की बड़ी वजह वन क्षेत्रफल का लगातार घटता रकबा है। वैसे तो टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश 77,482 वर्ग किलोमीटर के साथ सार्वक्षिक वन क्षेत्रफल वाला राज्य है लेकिन वनक्षेत्रफल का लगातार घटता रकबा और अतिक्रमण इसकी बड़ी वजह है।

प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही अक्सर मंचों पर टाइगर अभी जिंदा है कि बात कहते नजर आते है लेकिन उनकी ही सरकार में टाइगरों की रिकॉर्ड मौतों ने पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लगा दिया है।

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