इंदौर के संगम नगर सरकारी माध्यमिक स्कूल के छात्रों का समूह अपने एक प्रोजेक्ट “विज्ञान की खोज” के अंतर्गत सनावादिया स्थित जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर आया।
संक्षिप्त परिचय देते हुए सेंटर की डायरेक्टर जनक पलटा मगिलिगन ने बताया कि “ मैं केवल चंडीगढ़ के एक सरकारी स्कूल में हाई स्कूल तक पढ़ने गई थी, लेकिन विज्ञान विषय पढ़ा नहीं था। परंतु भारतीय संस्कृति, धर्म व विज्ञान के माध्यम से सकारात्मक सामाजिक विकास में बहुत रूचि रही। बचपन से सुनती थी, "प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो"। इस वाक्य में अपनी भूमिका को जानते, समझते हुए मैं आज तक प्रयासरत हूं और उम्र के 70 वें साल में भी विज्ञान की खोज जारी है।
उन्होंने बताया कि मेरे पति जिम्मी मगिलिगन भी उत्तरी आयरलैंड के एक साधारण से हायर सेकंड्री स्कूल तक पढ़े थे, लेकिन बहुत बड़े वैज्ञानिक, शिल्पी, इंजीनियर व कर्मठ कार्यकर्ता थे। हम दोनों पहले से बहाई धर्म को मानते थे और यह समझ लिया था कि हम अपने जीवन में विज्ञान से वही करेंगे जिससे “प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो” और हम पांच तत्वों का सरंक्षण कर सकें।
हम दोनों ने आध्यात्मिक और सामाजिक प्राणी होने के नाते विज्ञान के माध्यम से प्रयोग व अनुभव से प्रमाणित किया है कि प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग से मानव जगत सुख और आराम की प्राप्ति कर सकता है। विज्ञान का वरदान या अभिशाप होना इस पर निर्भर करता है कि इंसान किस उदेश्य से खोज करता है और कैसे उसका उपयोग करता है। विनाशकारी अभिशाप व विकासकारी वरदान होता है।
सेंटर के प्रशिक्षक श्रीमती नंदा चौहान और श्री राजेंद्र चौहान के साथ जिम्मी मगिलिगन सेंटर के परिसर सोलर व पवन ऊर्जा संचालित बिजली, सोलर किचन में कागज़ को एक पल में जलता देख, दर्जन सोलर कुकरों में खौलता हुआ पानी, दिवाली के पकवानों- मिठाईयों, होली के लिए प्राक्रतिक रंग, दर्द ठीक करने लिए तेल बनाने की विधि, रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, गाय पालन, हरा भरा जैविक फार्म, स्वाद के लिए सभी मसाले, फूल, फल, पशु पक्षी एवं पूर्ण रूप से जैविक संसाधनों पर आधारित जीवनशैली को देखकर वे हैरान रह गए।
फिर जनक पलटा ने जब सोलर कैंडल, लैंप, लैपटॉप व फ़ोन चार्जर प्रैक्टिकल कर दिखाया, सोलर से बजता रेडियो सुनाया, तो उनके चेहरों की चमक देखते बनती थी। विद्यार्थियों के समूह ने कहा कि “हमारा सौभाग्य है कि हमें एक स्मार्ट शहर इंदौर से गांव में आकर, रोचक जानकारियां प्राप्त कर एवं आंखों से सब देखकर विज्ञान का सही मतलब पता चला और पहली बार इतनी सारे उपकरण उपयोग में देख कर बहुत मज़ा भी आया और हमारी खोज सफल रही।”