-कुंवर राजेन्द्रपालसिंह सेंगर (कुसमरा)
मध्यप्रदेश में देवास जिले के बागली के मुख्य बाजार में स्थित श्री छत्रपति हनुमानजी मंदिर क्षेत्र में श्रद्धा व भक्ति का एक प्राचीन केन्द्र है। मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान हनुमानजी की त्वचा रंग के अत्यंत ही दुर्लभ पत्थर से निर्मित आदमकद प्रतिमा रामायणकाल की चार घटनाओं का विवरण देती है। हनुमानजी का चेहरा आकर्षण व तेज लिए हुए है जिससे दिव्यता व असीम शांति का अनुभव होता है।
किंवदंतियों को मानें तो भगवान ने अपना प्रतिष्ठा स्थल स्वयं चयनित किया था। रियासतकाल में बैलगाड़ी को जहां पर रखा गया वहां से बैलगाडी एक इंच भी नहीं हिली और कालांतर में वहीं पर मंदिर निर्मित किया गया। ढेर सारी विशेषताओं को समेटे हुए भगवान का सीएम कनेक्शन भी बहुत खास है।
क्यों विशेष है भगवान की प्रतिमा : मंदिर के पुजारी परिवार के पंडित दीपक शर्मा बताते हैं कि भगवान की आदमकद प्रतिमा 9 फुट ऊंची और साढ़े तीन फुट चौड़ी है। भगवान के कंधों पर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण हैं, एक हाथ में गदा तो एक हाथ में संजीवनी पर्वत है। पैरों में अहिरावण की आराध्य देवी हैं और जंघा पर भरतजी द्वारा चलाए गए बाण का चिन्ह है। सबसे बड़ी बात है कि प्रतिमा एक ही पत्थर में तराशी गई है।
राजस्थान से लाई गई थी प्रतिमा : प्रतिमा के विषय में कहा जाता है कि रियासतकाल में लगभग 250 से 300 वर्ष पूर्व राजस्थान का एक व्यापारी बैलगाड़ी में रखकर हनुमानजी की प्रतिमा को विक्रय के लिए ले जा रहा था। व्यापारी ने रात्रि विश्राम नगर में किया। बैलगाड़ी में रखी 9 फुट लंबी व साढ़े तीन फुट चौड़ी प्रतिमा को देखकर नगरवासी श्रद्धावनत हो गए और बागली रियासत के तत्कालीन राजा को प्रतिमा क्रय कर प्रतिष्ठा करवाने का निवेदन किया। इस पर राजाजी ने स्वयं आकर प्रतिमा को निहारा और व्यापारी से दाम बताने के लिए कहा।
लेकिन, व्यापारी ने प्रतिमा का सौदा अन्य किसी से होना बताया व प्रतिमा को विक्रय करने से इंकार कर दिया। व्यापारी ने रवानगी की तैयारी की, लेकिन बैलगाड़ी अपने स्थान से एक इंच भी नहीं हिली। जिस पर राजाजी ने हाथी बुलवाकर हाथियों से भी बैलगाडी को खिंचवाया। लेकिन बैलगाडी को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। इसके बाद व्यापारी ने स्वर्ण मुद्राओं के बदले प्रतिमा का सौदा किया और बागली रियासत ने छत्रपति हनुमानजी मंदिर बनवाया।
तीन बार रूप बदलते हैं भगवान : वर्तमान में मंदिर का पूजन पंडित मधुसूदन शर्मा कर रहे हैं। उनकी जानकारी के वे पूजन कर रहे परिवार की चौथी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। उनके अनुसार सबसे पहले रियासतकाल में पंडित श्रीराम शर्मा ने मंदिर का पूजन आरंभ किया था। पंडित शर्मा बताते हैं कि भगवान ने स्वयं अपना ठिकाना चुना था। बैलगाड़ी को आगे बढ़ाया नहीं जा सका और मंदिर यहीं पर निर्मित हुआ।
उन्होंने यह भी बताया कि प्रतिमा का रंग प्राकृतिक रूप से त्वचा का है और यह लगातार निखरता जा रहा है। यहां पर भगवान दिन भर में तीन बार रूप बदलते है। सुबह के समय जहां भगवान के चेहरे पर बाल्यावस्था नजर आती है वहीं दोपहर में युवा अवस्था लिए हुए गंभीरता नजर आती है और शाम के समय बुजुर्ग अवस्था दिखाई देती है। जिसमें भगवान अभिभावक की तरह नजर आते हैं। पंडित शर्मा ने यह भी बताया कि यहां पर सच्चे भक्तों द्वारा सच्चे मन से की गई मुराद अवश्य पूरी होतीहै।
प्रतिमा में रामायणकाल की चार घटनाएं : बागली के राजा छत्रसिंहजी ने चर्चा करते हुए बताया कि मुझसे मिलने आने वाले अनेक विद्वानों को मैंने भगवान के दर्शन करवाए और जिस दुर्लभ पत्थर पर प्रतिमा को उकेरा गया है उसके विषय में पूछा। कुछ लोगों का मत यह था कि यह पत्थर भारत में तो कहीं नहीं मिलता है। वास्तव में यह पत्थर मध्यप्रदेश में तो नहीं मिलता है। यदि राजस्थान में मिलता भी हो तो मुझे लगता है कि अब इस पत्थर की खदानें बंद हो चुकी हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि भगवान की प्रतिमा को एक ही पत्थर पर उकेरा गया है। जिसमें रामायणकाल की चार घटनाएं निहित हैं। भगवान के एक हाथ में संजीवनी पर्वत है। कंधों पर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण बैठे हैं। भगवान की जंघा पर भरतजी द्वारा चलाए गए बाण का प्राकृतिक निशान हैं। साथ ही पैरों में पाताल लोक के राजा अहिरावण की आराध्य देवी हैं।
खास है सीएम कनेक्शन : वैसे तो भगवान के दर्शन प्रदेश व देश की कई जानी-मानी हस्तियों ने किए हैं। जिसमें हिंदी फिल्मों के सुप्रसिद्ध गायक स्वर्गीय मुकेश व अभिनेता शम्मू कपूर, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी बाजपेयी, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुनसिंह व कैलाश जोशी एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह आदि प्रमुख हैं। लोग नाम न छापने की शर्त पर यह भी कहते हैं कि मुख्य बाजार में छत्रपति हनुमानजी विराजित हैं, इसलिए जो भी मुख्यमंत्री यहां पर बागली-चापड़ा मुख्य मार्ग से होकर आता है। उसे फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिलती है।
उदाहरण के दौर पर सबसे पहले पं. द्वारका प्रसाद मिश्र का नाम लिया जाता है। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने बागली में एक सभा संबोधित की थी उसके बाद उनकी सरकार गिर गई और संविद सरकार बनी। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह, दिग्विजयसिंह व कैलाश जोशी का भी उदाहरण दिया जाता है।
भाजपा नेता जगदीश गुप्ता बताते हैं कि गुप्ता बताते है कि वर्ष 1990 तक कक्षा पांचवीं के भूगोल विषय में पेज क्रमांक 18 पर हनुमानजी के चित्र के साथ उनका इतिहास पढ़ाया जाता रहा है।
वर्ष 2005 में हुआ था जीर्णोद्धार : मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 2005 में हुआ था। जिसमें जनसहयोग से राशि एकत्र कर मंदिर का निर्माण कर साज-सज्जित किया गया। जटाशंकर तीर्थ के ब्रह्मलीन संतश्री केशवदासजी त्यागी (फलाहारी बाबा) के मार्गदर्शन में वृहद भंडारा आयोजित हुआ था। उस समय निर्माण व यज्ञ आदि में लगभग 22 लाख रुपए से अधिक का खर्च आया था।
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन : इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन व कर्फ्यू के कारण चल समारोह निरस्त कर दिया गया। रात्रि में पंडित मधुसूदन शर्मा व पंडित दीपक शर्मा द्वारा बेहद सीमित संख्या में श्रद्धालुओं के साथ भगवान का लघुरुद्राभिषेक, श्रृंगार व महाआरती की गई, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हुआ। बारी-बारी से श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए और उन्हें उनके खड़े होने के स्थान पर जाकर आरती व प्रसादी दी गई।